Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] ७प

जीव खातो (भोगवतो) नथी, ए क्रिया तो जडनी छे. ए उपर लक्ष जाय एटले रागने भोगवे छे. जडने शुं भोगवे? आत्मा तो अरूपी छे, रूपीने ते कई रीते भोगवे? अरे! कोई दिवस सांभळ्‌युं नथी. जेम कूतरो सूकुं हाडकुं चावे ने दाढमां लोही नीकळे. त्यां एने एम थाय के हाडकामांथी लोही आवे छे. तेम अज्ञानी देह, वाणी, लाडुं, दाळ, भात खाय त्यां एना रागनो स्वाद जणाय छे, पण ते एम माने के देह, वाणी आदिमांथी स्वाद आवे छे. एने खबर नथी के शुं भोगवाय छे. आंधळे आंधळो हाल्यो जाय छे. एणे कदी आत्मानी वात सांभळी ज नथी.

अरे! आ सांभळवानी जे ईच्छा छे ए पण विषय छे. त्यां एनी प्रीतिमां रोकाई जाय छे ए पण विषय छे. भाई! ऊंडी वात छे. आ तो अध्यात्मनी कथा छे. बापु! जीवनी भूल शुं छे अने ए केम थाय छे ए बतावे छे. एकेन्द्रियथी मांडीने पंचेन्द्रिय सुधीना जीवो-देवो, शेठिया, करोडपतिओ, जे बधा धूळना (संपत्तिना) धणी कहेवाय छे ते बधाए रागनी वातो सांभळी छे अने रागने भोगवी रह्या छे. तेथी ते तो ए सौने सुलभ छे. परंतु रागथी भिन्न सहज शुद्ध आत्मानुं एकपणुं सुलभ नथी.

निर्मळ भेदज्ञानरूप प्रकाशथी स्पष्ट भिन्न देखवामां आवे छे एवुं आ भिन्न आत्मानुं एकपणुं ज सुलभ नथी. जुओ, रागथी भिन्न अने परलक्षी ज्ञानथी पण भिन्न अने पोताथी अभिन्न एवा आत्मानुं एकपणुं, निर्मळ भेदज्ञानरूप प्रकाशथी स्पष्ट भिन्न देखवामां आवे छे. जीवे परलक्षी ज्ञान पण अनंत वार कर्युं छे. अगियार अंग अने नवपूर्वनुं ज्ञान छे ए पण परलक्षी ज्ञान छे, एनाथी आत्मानुं एकपणुं भिन्न देखातुं नथी. राग अने परनुं लक्ष छोडी स्वद्रव्यना ध्येय अने लक्षे जे भेदज्ञान थाय ए भेदज्ञानथी आत्मानुं एकपणुं देखवामां आवे छे. जेम प्रकाशमां ज चीज स्पष्ट देखाय तेम भेदज्ञानप्रकाशमां ज आत्मवस्तु स्पष्टपणे भिन्न देखाय छे. निर्मळ भेदज्ञानप्रकाश वडे आत्मानुं एकपणुं स्पष्ट देखवुं ए मुदनी वात छे, भाई! बाकी दया पाळो, भक्ति करो, व्रत करो ईत्यादि बधां थोथां छे.

अहो! मात्र आ भिन्न आत्मानुं एकपणुं स्वभावथी ज सदा प्रगटपणे अंतरंगमां प्रकाशमान छे, ते भेदज्ञानप्रकाशथी देखाय छे. आनंदनो नाथ चैतन्यचमत्कार प्रभु अंदरमां प्रकाशमान छे तेने भेदज्ञानप्रकाशथी जोवा कदी दरकार करी नथी. आवुं अंदरमां चकचकाट करती आत्मवस्तुनुं एकपणुं कषायचक्र साथे एकरूप जेवुुं करवामां आवतुं होवाथी अत्यंत तिरोभाव पाम्युं छे, ढंकाई गयुं छे. दया. दान, भक्ति आदि शुभ विकल्पो अने हिंसादि अशुभ विकल्पोमां एकरूप थतां (मानतां) भगवान आत्मानुं एकपणुं ढंकाई गयुं छे.