अनुमान कराववामां आवे छे; ए रीते ते सर्व वस्तुओना प्रकाशक छे माटे सर्वव्यापी कहेवामां आवे छे, अने तेथी तेमने शब्दब्रह्म कहे छे.) वळी ते निजविभव केवो छे? समस्त जे विपक्ष-अन्यवादीओथी ग्रहण करवामां आवेल सर्वथा एकांतरूप नयपक्ष- तेमना निराकरणमां समर्थ जे अतिनिस्तुष निर्बाध युक्ति तेना अवलंबनथी जेनो जन्म छे. वळी ते केवो छे? निर्मळविज्ञानघन जे आत्मा तेमां अंतर्निमग्न परमगुरु- सर्वज्ञदेव अने अपरगुरु-गणधरादिकथी मांडीने अमारा गुरु पर्यंत, तेमनाथी प्रसादरूपे अपायेल जे शुद्धात्मतत्त्वनो अनुग्रहपूर्वक उपदेश, तेनाथी जेनो जन्म छे. वळी ते केवो छे? निरंतर झरतो-आस्वादमां आवतो, सुंदर जे आनंद तेनी छापवाळुं जे प्रचुरसंवेदनस्वरूप स्वसंवेदन, तेनाथी जेनो जन्म छे. एम जे जे प्रकारे मारा ज्ञाननो विभव छे ते समस्त विभवथी दर्शावुं छुं. जो दर्शावुं तो स्वयमेव (पोते ज) पोताना अनुभव-प्रत्यक्षथी परीक्षा करी प्रमाण करवुं; जो क्यांय अक्षर, मात्रा, अलंकार, युक्ति आदि प्रकरणोमां चूकी जाउं तो छल (दोष) ग्रहण करवामां सावधान न थवुं. शास्त्रसमुद्रनां प्रकरण बहु छे माटे अहीं स्वसंवेदनरूप अर्थ प्रधान छे; तेथी अर्थनी परीक्षा करवी.
उपदेश अने स्वसंवेदन-ए चार प्रकारे उत्पन्न थयेल पोताना ज्ञानना विभवथी एकत्व-विभक्त शुद्ध आत्मानुं स्वरूप देखाडे छे. तेने सांभळनारा हे श्रोताओ! पोताना स्वसंवेदन-प्रत्यक्षथी प्रमाण करो; क्यांय कोई प्रकरणमां भूलुं तो एटलो दोष ग्रहण न करवो एम कह्युं छे. अहीं पोतानो अनुभव प्रधान छे; तेनाथी शुद्ध स्वरूपनो निश्चय करो-एम कहेवानो आशय छे.
हवे आचार्य कहे छे के तेथी ज जीवोने ते भिन्न आत्मानुं एकत्व अमे दर्शावीए छीए.
प्रवचन नंबर १२–१४, तारीख ११–१२–७प थी १३–१२–७प
ते एकत्वविभक्त आत्माने हुं आत्माना निजवैभव वडे देखाडुं छुं; जो हुं देखाडुं तो प्रमाण करवुं अने जो कोई ठेकाणे चूकी जाउं तो छळ न ग्रहण करवुं.
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के परथी भिन्न अने स्वथी एकत्वरूप एवा आनंदमूर्ति भगवान आत्माने निजवैभव वडे देखाडुं छुं. जो हुं देखाडुं अर्थात् देखाडवामां आवे तो स्वानुभवथी परीक्षा करीने प्रमाण करवुं. मात्र उपर-उपरथी हा पाडजे एम कह्युं नथी, पण स्वसंवेदनज्ञान द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव करी प्रमाण करजे एम कह्युं छे. आ आत्मा