Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] ८१

‘मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी,
मंगलं कुंदकुंदार्यो, जैन धर्मोऽस्तु मंगल.’

अहीं मंगलाचरणमां प्रथम तीर्थंकरदेव, बीजा गणधरदेव अने तरत ज त्रीजा स्थाने श्री कुंदकुंदाचार्यदेव छे. तेओ कहे छे के मने मारा आत्मानो निजवैभव प्रगटयो छे. ए सर्व वैभव वडे में स्वथी एकत्व अने परथी भिन्न आत्माने बताववानो निश्चय कर्यो छे.

केवो छे मारा आत्मानो निजवैभव? आ लोकमां प्रगट समस्त वस्तुओनो प्रकाश करनार अने ‘स्यात्’ पदनी मुद्रावाळो जे शब्दब्रह्म-अर्हंतनां परमागम-तेनी उपासनाथी जेनो जन्म छे. शरूआत करतां पोताने जे निजवैभव प्रगटयो तेमां निमित्त कोण हतुं ए कहे छे. त्रिलोकनाथ सर्वज्ञदेव अर्हंत परमात्माए ॐध्वनि- दिव्यध्वनि द्वारा जे उपदेश कर्यो ते अनुसार परमागमनी रचना थई. ते परमागमनी उपासनाथी-सेवा करवाथी मने आत्म-वैभव प्रगट थयो छे. भगवाननी वाणीने शब्दब्रह्म कहे छे केमके ब्रह्मस्वरूप जे पूर्णानंदनो नाथ आत्मा तेने बतावनारो छे. वळी ते ‘स्यात्’ पदनी मुद्रावाळो छे अने लोकमां प्रगट समस्त वस्तुओनो प्रकाश करनार छे. परमागमने शब्दब्रह्म कह्यां तेनुं कारणः अर्हंतना परमागममां सामान्य धर्मो-वचनगोचर सर्व धर्मोनां नाम आवे छे. अस्तित्व, वस्तुत्व, ज्ञान, दर्शन, आनंद ईत्यादि धर्मोनां नाम आवे छे. अने वचनथी अगोचर जे कोई विशेषधर्मो छे तेमनुं अनुमान कराववामां आवे छे. ए रीते ते सर्व वस्तुओना स्वरूपना प्रकाशक छे माटे सर्वव्यापी कहेवामां आवे छे, अने तेथी भगवाननां परमागमने शब्दब्रह्म कहेवामां आवे छे.

स्यात् पदनी मुद्रावाळो शब्दब्रह्म छे. स्यात् एटले कथंचित्-एटले के कोई अपेक्षाथी कहेवुं ते. भगवाननी वाणी अनेकांत वस्तुनुं कोई अपेक्षाथी कथन करे छे. तेने स्यात्-पदनी मुद्रा कहेवाय छे. भगवान सर्वने जाणे माटे ते सर्वव्यापी कहेवाय छे. अने वाणी सर्व तत्त्वने कहेनारी छे तेथी तेने शब्दब्रह्म कहेवामां आवे छे. आचार्य कहे छे मने जे निजवैभव प्रगट थयो एमां आ शब्दब्रह्मरूपी परमागम निमित्त छे. एटले के अज्ञानी अन्यवादीओनी वाणी एमां निमित्त होई शके नही.

वळी ते निजवैभव केवो छे? समस्त जे विपक्ष-अन्यवादीओथी ग्रहण करवामां आवेल सर्वथा एकांतरूप नयपक्ष-तेमना निराकरणमां समर्थ जे अति निस्तुष निर्बाध युक्ति तेना अवलंबनथी जेनो जन्म छे.