सर्वथा एकांतरूप जे नयपक्ष तेना निराकरणमां समर्थ जे अति निस्तुष निर्बाध युक्ति-एटले के फोतरां विनानी मालवाळी जे पुष्ट अने सफळ युक्ति तेना अवलंबनथी मने निजवैभव प्रगट थयो छे. सम्यक् युक्ति वडे एकांतपक्षनुं खंडन करी तेनुं निराकरण करी नाख्युं छे. तथा सर्वज्ञदेवनी वाणीमां जे वीतरागमार्ग कह्यो छे ते अमे ग्रहण करी लीधो छे.
कुंदकुंदाचार्यना समयथी सो वर्ष पहेलां श्वेतांबरमत नीकळी चूकेलो. दिगंबर सनातन मतमांथी जुदा पडी नवो श्वेतांबरमत शरू करेलो. हमणां केटलाक समन्वयनी वातो करे छे, पण समन्वय कोनी साथे करवो? भाई! अमारे कोई साथे वेर-विरोध नथी. सौ भगवान आत्मा छे. अमने तो सत्त्वेषु मैत्री छे, पण पर्यायमां जे भूल छे ते बराबर जाणवी जोईए. निर्बाध युक्तिना अवलंबनथी अमे एकांतवादी अन्यमतनुं निराकरण करी नाख्युं छे. एटले के एकांतवाद ते सत्यमार्ग नथी, कल्पित छे एम नक्की करी अमे यथार्थ अनेकांतरूप वीतरागमार्गने धारण कर्यो छे. आ रीते अमने निजवैभव प्रगट थयो छे.
वळी ते केवो छे? निर्मळ विज्ञानघन जे आत्मा तेमां अंतर्निमग्न परमगुरु सर्वज्ञदेव अने अपरगुरु-गणधरादिकथी मांडी अमारा गुरु पर्यंत, -तेमनाथी प्रसादरूपे अपायेल जे शुद्धात्मतत्त्वनो अनुग्रहपूर्वक उपदेश तथा पूर्वाचार्यो अनुसार जे उपदेश, तेनाथी जेनो जन्म छे.
सर्वज्ञदेव विज्ञानघन ध्रुव जे आत्मा तेमां अंतर्निमग्न छे. भगवान गणधरदेव तथा अमारा गुरु पण पोताना विज्ञानघन ध्रुव आत्मामां अंतर्निमग्न हता. चैतन्यप्रकाशना नूरनुं पूर एवो जे भगवान आत्मा तेमां अंतर्निमग्न एवा देव अने गुरुए प्रसादरूपे शुद्धात्मतत्त्वनो अनुग्रहपूर्वक जे उपदेश आप्यो एनाथी आ अमारा निजवैभवनो जन्म थयो छे.
अहाहा...! शुं टीका छे! सर्वज्ञथी मांडी अमारा गुरु पर्यंत सघळा शुद्ध विज्ञानघनस्वरूप आत्मामां अंतर्निमग्न एटले विशेष निमग्न हता. अमने एनुं ज्ञान थयुं छे, अने एनुं भान वर्ते छे. बीजाने सम्यग्दर्शन थाय तेनी खबर न पडे एम कोई कहे छे ए वात बराबर नथी. विज्ञानघन आत्मामां अमारा गुरु अंतर्निमग्न हता एम कुंदकुंदाचार्यदेव अहीं जगत समक्ष जाहेर करे छे. कहे छे. अमने यथार्थ निमित्तनुं बराबर ज्ञान थयुं छे. ते आत्मज्ञानी गुरुना प्रसादरूप उपदेशना निमित्ते अमारा निजवैभवनो जन्म थयो छे.