शुभरागने विषकुंभ एटले के झेरनो घडो कह्यो छे. अशुभथी बचवा शुभराग आवे खरो, पण ए सर्व हेय छे.
अहो! देवाधिदेव जिनेन्द्रदेवनी वाणी झीलीने भगवानना आडतिया थईने कुंदकुंदाचार्य जाहेर करे छे के भगवाननो माल आ छे. अमने जे धर्म के चारित्र प्रगटयुं ते शुं चीज छे? कहे छे के निरंतर झरतो-आस्वादमां आवतो एवो सुंदर जे आनंद तेनी छापवाळुं प्रचुरसंवेदनस्वरूप जे संवेदन ते अमारो निजवैभव एटले के चारित्र छे. अहो! धर्मनी मुद्रा शुं? तो जेम चलणी नोट पर मुद्रा मुख्य छे तेम सुंदर आनंद-अतीन्द्रिय आनंद ए धर्मनी मुद्रा छे अने ए मुख्य छे. अहो! अतीन्द्रिय आनंदमां झूलतां दिगंबर संतोए कहेलो वीतरागमार्ग अपूर्व छे. तेमनां रचेलां आ शास्त्रो ते परमागम छे.
सम्यग्दर्शनमां रागथी भिन्न अने स्वभावथी अभिन्न एवा एकत्वविभक्त आत्मानी द्रष्टि होय छे. त्यां पण अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद अल्प प्रमाणमां होय छे. चोथा गुणस्थानमां सुंदर आनंदनो स्वाद अल्प आवे छे तो पांचमा गुणस्थानवर्ती श्रावकने ते विशेष आवे छे. तेना करतां मुनिओने तो प्रचुर स्वसंवेदन होय छे एटले प्रचुर आनंद होय छे. आचार्य कहे छे आवा प्रचुर आनंदनी मुद्रावाळुं जे चारित्र-धर्म ते वडे अमारा निजवैभवनो जन्म छे.
एम जे जे प्रकारे मारा ज्ञानने विभव छे ते समस्त विभवथी दर्शावुं छुं. जो दर्शावुं तो स्वयमेव पोताना अनुभव-प्रत्यक्षथी परीक्षा करी प्रमाण करवुं. आचार्यदेव जिज्ञासु श्रोताने कहे छे के पुण्य-पापना भावोथी भिन्न अने पोताना स्वरूपचैतन्यथी अभिन्न एवा एकत्वविभक्त आत्माने हुं सर्व वैभवथी बतावुं छुं ते तुं प्रत्यक्ष अनुभव करीने प्रमाण करजे. अमे कहीए छीए माटे नहीं, पण अंतरमां जे ‘शुद्ध, बुद्ध, चैतन्यघन, स्वयंज्योति, सुखधाम’ एवो आत्मा बिराजे छे तेनो स्वानुभव प्रत्यक्षथी निश्चय करजे, तेथी तने सुख थशे, मोक्ष थशे. समयसार नाटकमां कह्युं ने-
अनुभव मारग मोखकौ, अनुभव मोखस्वरूप.
अमारो वैभव तो अमारी पासे रह्यो. तेथी तुं रागादिथी भिन्न पडी स्वयं पोते ज शांति अने आनंदनुं प्रत्यक्ष वेदन करी प्रमाण करजे. तेथी तने धर्म थशे. आठ वर्षनी बालिका पण अंतरमां भान करी आवो अनुभव करी शके छे.