Page 141 of 225
PDF/HTML Page 154 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १४१
समयसार, गाथा ७प, आंही.. आंही सुधी तो आव्युं छे. ज्ञानी केम ओळखाय एवो प्रश्न छे. आ जीवने ज्ञान थयुं. सम्यक् थयुं एनां एंधाण शुं? एनां लक्षण शुं? एनां चिन्ह शुं? एम प्रश्न करवामां आव्यो छे, एना उत्तरमां अहींया कह्युं! (टीकामां) छेल्लुं!
आहा...! ‘जे समस्त कर्मनोकर्मरूप पुद्गलपरिणाम’ (टीकामां) नीचेथी छे. (शुं कहे छे?) के जेटला आत्मामां दया-दान-व्रत-भक्ति-पूजाना भाव थाय ए बधां परिणाम पुद्गलना छे.
केमके अहींया आत्मा छे ए तो अनंतगुणनो पिंडप्रभु! एमां कोई गुण विकार करे एवो (कोई) गुण नथी. तेथी अनंत गुण जे शुद्ध छे, तेनुं जेने ज्ञान थयुं भान! ए जीवने राग एनुं कार्य नथी. केमके द्रव्य जे स्वभाव छे ए शुद्धचैतन्य पवित्र स्वभावथी भरेलो भगवान! एनी जेने द्रष्टि थई छे तेने शुद्ध परिणामनो कर्ता कहेवाय, उपचारथी-शुद्धपरिणाम जे सम्यग्दर्शनज्ञान- चारित्रनाए परिणामनो स्वभावना द्रष्टिवंतने उपचारथी कर्ता कहेवाय, अने ते शुद्ध परिणामने उपचारथी तेनुं कार्य कहेवाय एम, भेद पडयोने!
खरेखर तो ए शुद्धपरिणाम जे छे. शुद्धचैतन्य द्रव्यनी द्रष्टि थतां, ए शुद्ध परिणाम छे ते षट्कारकरूपे परिणमतां ऊभां थया छे. शुं कह्युं ई...? शुद्ध द्रव्यने शुद्धगुण स्वभाव छे एवी द्रष्टि थई तो ई द्रष्टिना जे परिणाम छे ए खरेखर तो षट्कारकपणे परिणमतां उत्पन्न थाय छे ए परिणामने द्रव्यगुणनी अपेक्षा नथी, निमित्तनी अपेक्षा नथी! झीणुं छे भाई...!
आहा..! अज्ञानमां पुण्यने पापना भाव अशुद्धनिश्चयथी एटले व्यवहारथी तेनी पर्यायमां छे अने तेना जन्मक्षणे ते काळे विकार थाय- ते उत्पन्न थाय तेनो अज्ञानी कर्ता छे ने अज्ञानीनुं ते कार्य छे.
केमके एने जे द्रव्यस्वभाव गुण पवित्र छे एनी द्रष्टि थई नथी अने द्रष्टि त्यां रागना परिणाम उपर होवाथी अज्ञानी रागनो कर्त्ता ने राग तेनुं छे, अने खरेखर तो... रागनुं कार्य पर्यायनुं छे, एनो कर्ता रागपर्याय छे. रागनो कर्ता राग छे. रागनुं कार्य राग छे, रागनुं साधन राग छे. जेनी द्रष्टि राग उपर ने विकार उपर छे तेनां परिणाम विकारना षट्कारकपणे परिणमतां उत्पन्न थाय छे.
आहा... हा! जेनी द्रष्टि द्रव्यस्वभाव उपर छे. भगवान आत्मा शुद्ध अनंत... अनंत... अनंत जेनो पार नहीं एटला गुणो छे, पण कोई गुण विकारने करे एवो कोई गुण नथी (आत्मामां) तेथी... ते गुणना धरनारने द्रष्टिमां लीधो तेनुं कार्य, दया-दान-व्रत-भक्तिना परिणाम, ई एनुं कार्य नथी. ए (कार्य तो) पुद्गल स्वतंत्रपणे कर्ता थईने कर्म, ए विकारी परिणामनो कर्ता छे.
(जुओ.. !) एक कोर एम कहेवुं के अशुद्ध उपादानथी जीवमां विकार थाय! ए तो, एनी पर्यायनी सिद्धि करवा.
पण.. ज्यारे, आत्मानी द्रष्टि ज्यां पर्याय परथी हठी,.. अने जे पर्याय ज्ञाननी छे, तेने
Page 142 of 225
PDF/HTML Page 155 of 238
single page version
१४२ श्री प्रवचन रत्नो-१ अंतरस्वभावमां लई जई ध्रुवमां लई जई ने अनुभव थयो. आहा.. हा! एने द्रष्टिना विषयमां ए द्रव्यस्वभाव आव्यो! एनुं कार्य तो... निश्चयथी ए.. शुद्धपरिणाम पण तेनुं कार्य नथी थयुं. शुद्धपरिणाम, परिणामनुं कार्य छे!
पण जेनी द्रष्टि राग उपर छे ने स्वभाव उपर नथी, तेने रागनो कर्ता, करण ने साधन कहेवामां आवे छे.
ज्ञानीने परमार्थे समस्त कर्मनो कर्म पुद्गल परिणाम! पुद्गलपरिणाममां दया-दान-व्रत- भक्ति-काम-क्रोध, बधां लेवां.
आहा.. हा! ‘जे समस्त कर्मनोकर्मरूप पुद्गलपरिणाम तेने जे आत्मा (करतो नथी) ‘पुद्गलपरिणामने अने आत्माने घट अने कुंभारनी जेम व्याप्यव्यापकभावनो असद्भाव होवाथी’ - आहा...हा! जेम कुंभार घटनो कर्ता नथी एटले कुंभार व्यापक थईने घट एनुं व्याप्य थाय एम नथी.
ए तो माटी पोते कर्ता थईने धडो एनुं व्याप्य नाम कार्य छे. एम बधां पुण्य-पापना परिणाम अने आत्माने छे? आ ‘पुद्गलपरिणामने अने आत्माने घट अने कुंभारनी जेम’ -जेम घटनुं कार्य कुंभारनुं नथी एम जीवमां थतां विकारी परिरणामए ज्ञानीनुं व्याप्य-कार्य नथी.
आहा...! आवी वातुं! समजाणुं कांई..? आहा.. हा! ‘पुद्गलपरिणाने अने आत्माने’ -पुद्गलपरिणाम एटले राग-द्वेष, पुण्य- पापना परिणाम, बधा विकार. एने अने आत्माने ‘पुद्गलपरिणाम अने आत्माने घट अने कुंभारनी जेम’ (एटले) जेम कुंभार घटना कार्यनो कर्ता नथी तेम ज्ञानी पुण्य-पापना परिणामनो कर्ता नथी.
आहा.. हा! ‘जेम व्याप्यव्यापकभावना अभावने लीधे कर्ताकर्मपणानी असिद्धि होवाथी’ ... परमार्थे करतो नथी’ आहा.. हा! जेनी द्रष्टि द्रव्यस्वभाव उपर पडी ते द्रष्टिवंतने जे कांई पुण्य- पापना भाव थाय तेनुं तेने-ज्ञानीने व्याप्यव्यापकपणुं- कर्तापणुं नथी, एनुं (विकारनुं) व्याप्यव्यापकपणुं पुद्गलमां जाय छे.
आहा...! उपादानवाळा विरोध करे, के थाय विकार पर्यायमां ने आ कहे के कर्मने लईने थाय! आहाहा! आरे... थाय छे एनां उपादाननी पर्यायमांज, पण.. ए अशुद्ध उपादान छे. एथी तेनी (जेनी) द्रष्टि शुद्ध उपादान उपर गई छे, एनां ए परिणामने-विकारना परिणामनो कर्ता, ए द्रव्यस्वभाव नथी एम छे तेथी जे (विकारपरिणाम) पर्यायमां उत्पन्न थाय अद्धरथी ए पुद्गल स्वतंत्रपणे व्यापक थईने विकार थाय छे ए एनुं कार्य छे!
(श्रोताः) जीवमां थाय ने कहेवुं पुद्गलमां?! (उत्तरः) ए कह्युं ने...! पर्यायमां- अशुद्ध उपादानथी एनामां छे पण.. द्रष्टि स्वभाव उपर पडी छे ज्यां! एथी ए पर्यायमां उत्पन्न थाय, ए ‘द्रव्यनुं कार्य’ नथी, तेथी एने कर्मनो स्वतंत्रपणे कर्ता कहीने विकार तेनुं व्याप्य छे-तेनुं कार्य छे. आहा..! को ‘भाई? आवुं छे! आवो मारग छे बापा!
एककोर एम कहेवुं... जीवनी जे विकारनी पर्याय थाय छे तेनी ते ते पर्यायनो तेनो जन्मक्षण-तेनो ते ते छे परथी नहीं.
Page 143 of 225
PDF/HTML Page 156 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १४३
अने एककोर एम कहेवुं.. के.. पुण्यने पापनुं परिणमन षट्कारकरूपे परिणमे पर्यायमां, षट्कारकपणे पर्यायथी थाय छे, द्रव्यगुणथी नहीं, निमित्तथी नहीं.
आहा..! एककोर एम कहेवुं... द्रव्यमां ते समयनी जे पर्याय छे, ते (तेनी) काळलब्धि छे, ते ते काळे थवानो ते काळलब्धि छे. त्रण (प्रकारो थया)
चोथुं एम कहेवुं.. आहा.. हा.. हा! भाई..! आ बधी आवी वातुं छे! (श्रोताः) गूंचवणमां मूकी दे! (उत्तरः) गूंचवण नीकळी जाय एवी वात छे. (कहे छे) के जेनी पर्याय उपर द्रष्टि छे, तेने जे विकार थाय छे ते षट्कारकपणे परिणमता जीवनुं कार्य छे एम व्यवहारे कहेवाय छे. निश्चयथी तोए पर्यायनुं कार्य छे.
आहा.. हा! पण.. जेनी द्रष्टि पर्याय उपरथी हठी.. अने जे पर्याय रागमां जती हती ते पर्यायने ध्रुवमां वाळी छे-द्रव्य जे ज्ञायकभाव छे तेमां ते पर्यायने अंदर वाळी छे, एवा धर्मी जीवने दया-दान-व्रतादिना परिणाम जे छे ते पुद्गलना परिणाम छे जीवना नहीं एम कहेवामां आव्युं छे!
(श्रोताः) आम ज ज्ञानी माने! (उत्तरः) ज्ञानी एम ज जाणे छे अने एम छे. कारण तो कह्युं! ए द्रष्टि द्रव्य उपर छे अने द्रव्यस्वभवमां एवो कोई गुण नथी के विकार करे!
आहा.. हा! भाई! मारगडा जुदा छे प्रभु! ए वात सर्वज्ञभगवान सिवाय क्यांय छे नहीं, संप्रदायमां य आ वात नथी!! भाई...?
अहा..! एककोर एम कहेवुं के उपादान एनुं छे तो एनाथी थाय छे, ते तो पर्यायमां छे ने पर्यायनी सिद्धि करवी छे, अस्तिकाय सिद्ध करवुं छे. ‘पंचास्तिकायमां’ ज्यां लीधुं छे त्यां विकारना परिणाम षट्कारकपणे, विकारना तेना छे. द्रव्यगुण नहीं, निमित्त नहीं.
पण... अहींयां तो प्रश्न ए छे के ज्ञानीना ज्ञाननुं लक्षण शुं? एंधाण शुं? चिन्ह शुं? एटले के... जेनी द्रष्टि द्रव्यस्वभाव उपर थई छे अने पर्यायनी द्रष्टि जेने उठी गई छे, एवो जे ज्ञानी एना जे परिणाम राग ने द्वेषना छे, ई पुद्गल कर्म स्वतंत्रपणे कर्ता थईने ते विकारनुं-रागनुं कार्य तेनुं छे आहा.. हा! समजाय छे कांई...?
अटपटी वात छे कहे छे! आहा..! मारग तो ए छे भाई..! आहा.. हा! ‘कर्ताकर्मपणानी असिद्धि होवाथी परमार्थे करतो नथी’ जोयुं...? द्रव्यस्वभावना द्रष्टिवंत ज्ञानीने ते रागना परिणामने घट अने कुंभारनी जेम व्याप्यव्यापक भावनो अभाव होवाथी ते विकारने परमार्थे ज्ञानी करतो नथी.
आहा.. हा’ को’ भाई...? आवुं छे. भाषा तो आवे छे, समजाणुं? के जेनी द्रष्टि अनंतगुणनो पिंड पवित्र छे (आत्माद्रव्य) एना उपर गई नथी- एनो स्वीकार थयो नथी, एने तो वर्तमान पर्यायमां थता रागनो अने द्वेषनो स्वीकार छे एथी तेने व्याप्यव्यापक (संबंध) छे, राग-द्वेष तेनामां छे.
शुभ ने अशुभ-बेय अने दया-दान-भक्ति-व्रत-अपवासनो जे विकल्प थयो ए राग, द्रष्टि- द्रव्यद्रष्टिवंतने रागनो एनो स्वभाव नथी, एनी द्रष्टि स्वभाव उपर छे तेथी ते रागनुं व्याप्य
Page 144 of 225
PDF/HTML Page 157 of 238
single page version
१४४ श्री प्रवचन रत्नो-१ कर्मपुद्गल स्वतंत्र थईने कर्ताव्यापक थईने करे छे. समजाणुं कांई..? हवे आवी वातुं! लोकोने सत् मळ्युं नथी, आ वाडा बांधीने बेठा ई पोताना पंथ करवा आ ए नथी ‘आ’!!
आहा.. हा! व्रतने... तपने... अपवासने... भक्तिने... पूजाने... दानने... दयाने एवां परिणाम अपवासना... ने ए परिणाम तो राग छे अने ए रागनुं व्याप्यपणुं-व्यापक छे ए कर्म छे. आंही तो (द्रव्य) स्वभाव छे ई एनो व्यापक क्यांथी होय?
आहा...! द्रव्यस्वभावनी द्रष्टि थई छे ते ज्ञानीने द्रव्यस्वभावथी ए विकारी कार्य क्यांथी थाय? एम केम होय? हजी (तो) ए द्रव्यस्वभावनी द्रष्टिने निर्विकारीपरिणामनुं कार्य पण व्यवहारथी कहेवाय छे, आहा.. हा! उपचारथी कहेवाय छे ए. समजाय छे कांई...?
भाषा तो साद छे ने प्रभु! भाव तो जे छे ए छे! एमां कोई संस्कृत ने व्याकरण ने एवा कोई शब्दो नथी, धणीसादी भाषामां छे! ते तत्त्व ज आवुं छे! एनी खबरु नथी, ए अज्ञानमां (जे छे) ई रागमां जाय छे, एना परिणाम पुण्य-पापना परिणाम मारुं कार्य छे-हुं एनो कर्ता छुं- व्याप्यव्यापकपणे (एम अज्ञानी माने छे) समजाय छे कांई... ?
पण... धर्मी जीव! एटले के द्रव्यस्वभावने द्रष्टिमां लीधेल जीव! आहाहा! एने जे परिणाम थाय निर्मळ ए निर्मळपर्यायनो पण कर्ता उपचारथी कहेवामां आवे छे, बाकी तो पर्याय पर्यायनी कर्ता ने पर्याय एनुं कार्य! आहाहाहा! अने ते धर्मीने द्रव्यद्रष्टिना-स्वभावना जोरने लईने जे कंई पर्यायमां कमजोरीने लईने राग-द्वेष, दया आदिना भाव थाय, ए परिणाम स्वतंत्रपणे कर्म, कर्ता थईने करे छे, कर्ता थईने ते करे छे, आत्मा तेनो कर्ता नथी.
आहा.. हा! आवुं छे बापा! (कहे छे केः) ‘परमार्थे करतो नथी’ -कांई करतो नथी. ‘परंतु’ हवे आव्युं छे ‘परंतु’ मात्र पुद्गलपरिणामना ज्ञानने जोयुं? जेनी द्रव्य उपर द्रष्टि पडी गई छे तेने जे राग थाय छे ए रागनुं ज्ञान थाय छे ए ‘ज्ञान’ एनुं कार्य छे. छे? ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने’ एटले के? आंही तो... केटलीक वात करी’ ती काल. केटला’ क कहे छे के निर्विकल्प समाधि होय त्यारे तेने ‘ज्ञान’ कहेवुं, नीचे ऊतरी जाय-विकल्पमां आवी जाय, तेने ज्ञान न कहेवुं. एम नथी! आंही तो... चोथे गुणस्थानथी उपाडी छे वात.
आहा..! ज्ञानी कोने कहेवो...? के जेने द्रव्य-वस्तु भगवान आत्मा, जे अनंतगुणनो पिंड ते द्रष्टिमां आवी गयो छे, जेनी वर्तमान पर्याय ए पर्यायवानने स्वीकारी लीधो छे. जेने वर्तमानपर्याय ज्ञाननी छे. /ए तो कह्युं ‘तुं काले के ‘ज्ञाननी पर्यायमां स्वद्रव्य जणाय छे’ सतरमी गाथा (समयसार!)
आहा... हा! ए ज्ञाननी पर्यायनो ज एवो स्वभाव छे के... तेमां स्वद्रव्य भगवान पूर्ण आनंद अनंतगुणनो पिंड ए ज्ञाननी पर्यायमां जणाय छे.
केम के पर्यायनो स्वभाव स्वपरप्रकाशक होवाथी एने जाणे ज छे. पण आ अज्ञानीनी द्रष्टि त्यां तेना उपर नथी, एनी द्रष्टि राग ने अंशवर्तमान तेना. पर होवाथी तेने ‘जाणवामां आवतो होवा छतां, ते जाणतो नथी’ अने जे रागना परिणामनो कर्ता थई अज्ञानपर्यायद्रष्टिमां अटकी गयो छे!
आहा...! ‘पर्यायमां सारुं (पूर्ण) द्रव्य अज्ञानीने पण एनो स्वभाव स्वपरप्रकाशक होवाथी एमां
Page 145 of 225
PDF/HTML Page 158 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १४प पूरण आनंदनो नाथ (आत्मा) ए पर्यायमां एने जणाय छे’ छतां ‘जाणनार’ उपर एनी द्रष्टि नथी एनी द्रष्टि अंशने वर्तमान राग उपर छे तेथी ‘जाणवामां आवतो’ छतां तेने ते ‘जाणतो’ नथी.
आवी व्याख्या हवे! आकरी पडे माणसोने! शुं थाय भाई..! मारग तो ‘आ’ छे. आहा...! आंही कहे छे ‘परंतु मात्र पुद्गलपरिणामना ज्ञानने’ -पुद्गलपरिरणामना ज्ञानने एटले? ए दया-दान-व्रतना परिणाम ए पुद्गलपरिणाम छे. केमके ज्ञायकस्वभाव भगवान (आत्मा) ना ए नथी. द्रव्यस्वभावनी द्रष्टि थई छे तेने ज्ञायकना ए परिणाम नथी. ए ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने’ एनाथी (एम कहीने) व्यवहार सिद्ध कर्यो छे. ‘व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान’ आव्युं ने बारमी गाथामां ए... व्यवहार सिद्ध कर्यो छे.
आहा.. हा! धर्मी-द्रव्यद्रष्टिवंतने ‘पुदगलपरिणामना ज्ञानने’ ए राग थाय, व्यवहार रत्नत्रयनो, दया-दान-व्रत-भक्ति, देव-गुरु-शास्त्रनी श्रद्धा, पंचमहाव्रतना परिणाम ए बधां पुद्गलना परिणाम छे, ते पुद्गलनां छे, एनुं ‘ज्ञान’ आंही थाय! एय व्यवहार छे.
ज्ञानना परिणाममां ज्ञान थाय छे पोतानुं ते स्वपरप्रकाशकशक्तिथी थाय छे राग छे माटे रागनुं ज्ञान थयुं–एम कहेवुं ई तो व्यवहार छे. भाई..?
भाई...! मारग तो धणो झीणो छे प्रभु! आहा.. हा! अरे.. एने सांभळवा मळे नहीं, ए केदि’ विचारमां प्रयोगमां मूके?! आहा...! ए पर्यायमां द्रव्य आवुं क्यारे भाळे! अने ए कर्या विना एनुं कार्य थाय नहीं! आहाहा...!
आहा... हा..! ‘ए पुद्गलपरिणामना ज्ञानने’ एटले शुं कीधुं? जरी कंईक ज्ञाननी कमजोरीने लईने राग, दया-दान-भक्ति-पूजानो भाव आवे! पण तेना ‘ज्ञानने’ /एनुं ज्ञान कहेवुं तो समजाववुं छे एने! बाकी.. तो ‘ज्ञान ज्ञाननुं छे’ - पर्यायनुं ज्ञान, षट्कारकपणे परिणमतुं ज्ञान, एने आंही ‘रागनुं ज्ञान’ (कहीने) निमित्तथी समजाव्युं छे. समजाणुं कांई... ?
आरे...! आवी वातुं छे बापा! आ... ते तमारे लोकोने... बहारमां... भाई! आहा... हा! ए ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने’ आहा.. आहा.. हा! ‘कर्मपणे करता’ -पर्याय पर्यायथी करे छे पण अहींयां द्रव्य एने करे छे एम उपचारथी कहेवामां आव्युं छे.
शुं कह्युं ई...? ज्ञानीने एटले जेने द्रव्यस्वभाव परिपूर्ण परमात्मा! जेनी द्रष्टिमां आव्यो... एने राग छे तेनुं ज्ञान थाय, ते ज्ञान तेनुं कार्य छे एम कहेवाय व्यवहारे! आहा.. हा! खरेखर तो... ए परिणामनुं ज्ञान कीधुं ए निमित्तथी कथन छे बाकी तो ते काळे ते ज्ञानना परिणाम षट्कारकपणे परिणमतां पोताथी स्वतंत्रपणे ऊभां थाय छे एने नथी रागनी अपेक्ष, नथी द्रव्यगुणनी अपेक्षा!!
समजाय छे कांई? आवो मारग छे भाई...! आ ईश्वरतानी वात हाले छे मोटी! आहा..! प्रभु जणाणो एम कहे छे, प्रभु जणाणो!! (आत्मप्रभुमां) अनंत गुण छे तो एमां प्रभुत्वनुं, एमां एनुं रूप छे. ज्ञानमां प्रभुत्व! दर्शनमां प्रभुत्व! आनंदमां प्रभुत्व! वस्तुमां प्रभुत्व! अस्तित्वमां प्रभुत्व! आहा.. हा! एवां अनंतगुणमां, एक-एक गुणमां अनंत गुणनुंरूप छे! अने एक-एक गुणमां प्रभुतानुं रूप छे!
Page 146 of 225
PDF/HTML Page 159 of 238
single page version
१४६ श्री प्रवचन रत्नो-१
आहा... हा! एवो जे अनंतगुणनो संग्रहालय भगवान आत्मा ए जेने द्रष्टिमां आव्यो एवा आ धर्मीने पुद्गलपरिणामनुं जे ज्ञान थाय छे, ते ज्ञान तेनुं कार्य छे. ए दया-दान-व्रतना परिणाम ते तेनुं कार्य नथी. ते परिणामनुं कार्य स्वतंत्र पुद्गल करीने, पुद्गल व्यापक थईने, केमके पर्याय त्यां छे एटले पुद्गल व्यापक थईने विकारनो परिणामने त्यां करे छे. पर्यायद्रष्टिवानने नहीं पण द्रव्यद्रष्टिवानने आम छे. समजाय छे कांई...?
आहा...! हवे, आवुं छे ल्यो! (कहे छे) ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने ‘आहाहा! व्यवहार रत्नत्रयनो जे भाव छे ते शुभराग छे अने दुनिया एम कहे छे के ए शुभरागथी शुद्धता थाय! पण.. आंही कहे छे के ए शुभरागनुं ज्ञान छे, ए परिणाम (ज्ञाननुं थयुं) ए शुभरागने लईने पण नथी ए ज्ञाननुं परिणाम, (तो) शुं थयुं त्यां? ज्ञानना परिणाम ज्ञानना परिणामने लईने थयां छे स्वतः थयां छे ए रागथी आंही ज्ञान पण थयुं नथी तो ए रागथी शुद्धता थाय? शुभभाव करतां-करतां एने शुद्धता थाय? धणो फेरफार... धणो फेरफरा!! भाई? समजाणुं कांई...?
आहा... हा! ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने’ आहा... हा! एटलुं भिन्न कर्युं छे समजाववुं छे पण शुं करे? आहा... हा! केवळज्ञानीने लोकालोकनुं ज्ञान छे एम कहेवुं ई ए व्यवहार छे परद्रव्यनुं (ज्ञान) ? ए तो ज्ञाननो पर्याय ज पोतानो पोताथी थाय छे. केवळज्ञाननी पर्याय पण षट्कारकपणे परिणमतां केवळज्ञाननी पर्याय कर्ता, ते ज कर्म, केवळज्ञाननी पर्याय साघन, ए ज संप्रदान- अपादान-आधार ए ज पर्याय राखे एमां लोकालोक पण कारण नहीं ने द्रव्यगुण पण (कारण) नहीं. समजाणुं कांई...?
झीणुं पडे, पण समजवा जेवुं छे बापा! आहा.. हा! क्यां जईने... सांभळवा मळे?! लोको क्यांय सलवाईने पडया छे! भाई... तुं भगवान छो ने..! भगवान तरीके तने बोलावे छे. बोंतेर गाथामां (समयसार!)
आहा...! प्रभु, तने पुण्य-पापना दया-दानना ने व्रतना ने भक्तिना अने तपना विकल्प, जे राग छे, ए अशुचि छे! ए जड छे! चैतन्यना स्वभावनो एमां अभाव छे! अने ते (आस्रवो) दुःखरूप छे!!
ज्ञानीने द्रव्यद्रष्टिमां तो एने ए परिणामनुं आंही ज्ञान थाय ते ज्ञाननो ज्ञानी कर्ता छे, पण ई (राग) परिणामनो कर्ता ज्ञानी नथी! समजाय छे कांई..?
भाषा तो प्रभु सादी छे, भावे य सादा छे अंदर!! द्रव्य व्यापक नथी ए व्यापक तो व्यवहारथी कहेवाय छे, बाकी तो पर्याय पर्यायमां व्यापक छे ए विकार पोतानो छे नहीं. आंही तो... आकरी.. हजी आकरी वात आवशे अत्यारे तो आटलुं हाले छे!
आहा... हा! ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने? एटले ए राग थयो छे तेनुं ज्ञान आंही थयुं छे ज्ञानीने, ए ज्ञानना परिणामने ‘आत्मा कर्मपणे’ कर्ता. द्रव्यथी (कह्युं) वात सिद्ध करवी छे, एटले कह्युं छे. परथी भिन्न पाडयुं छे.
झीणी वाण छे बापु! ए शब्दे शब्दना भाव तो अंदर होय बधां! भाव तो बधां होय (ज्ञानमां)
Page 147 of 225
PDF/HTML Page 160 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १४७ ते वखते हो? पण कई शैलीथी वात चाले छे एनी वात आवे. ए ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने कार्यपणे करता एवा’ - खरेखर तो ए भेद छे! खरेखर तो पोताना आत्माने जाणे छे. जोयुं? रागना ज्ञानने कीधुं ‘तुं ने... तो रागने शी रीते जाणे?
शुं कह्युं प्रभु, ए रागनुं ज्ञान कह्युं ‘तुं ए ज्ञानीना परिणाम छे ज्ञानना, छतां ते ज्ञानना परिणाम रागने जाणे छे एवुं जे कार्य, ते एनुं (कार्य) नहीं ए तो ‘खरेखर आत्माने जाणे छे.’ आहा.. हा! समजाणुं कांई...?
अरे..! प्रभु, तारो प्रभुत्व स्वभाव, एने द्रष्टिमां आव्यो प्रभु! एमां जे राग छे तेनुं ज्ञान करे ज्ञानी ते ‘ज्ञानना परिणाम तेनुं कार्य छे. एटलुं कहीने पण रागने जाणे छे एम कह्युं पाछुं! (परंतु पाछुं) फेरवी नाख्युं के (ज्ञानी) पोताना आत्माने जाणे छे!
(श्रोताः) रागने जाणे छे एमे य कह्युं! (उत्तरः) ई तो फकत! राग छे एनी वात करी. अरे..! बापा! आ वस्तु... भाई...! ए करोडो-अबजो रूपिये मळे एवुं नथी! आहा...! अहींयां तो एटलुं ज कीधुं के द्रव्यद्रष्टिवंतने एटले ज्ञानीने एटले के सम्यग्द्रष्टिने, ए रागना-दया-दान- व्यवहारना भगवाननी स्तुतिनो राग आव्यो, ते रागनाज्ञानने करतो आत्मा आत्माने जाणे छे!! रागने जाणे छे ई काढी नाख्युं!
फकत, सिद्ध एटलुं करवुं छे, राग थयो छे ते काळे ज्ञान पोते पोताथी थयुं छे. ‘परिणम्युं छे स्वपरप्रकाशपणे’ राग थयो छे ते काळे पण ज्ञानना परिणाम पोताथी स्वपरप्रकाशपणे परिणम्या छे पोताथी, एने.. रागनुं ज्ञान छे एम कीधुं, छतां ते रागनाज्ञानना परिणामने करतो एवो आत्मा पोताने जाणे छे! रागने नहीं.. !!
आहा.. हा! भाई...? आवी वातो छे. आहा..! ए प्रभुनो मारग छे शूरानो ए कायरना काम त्यां नथी! ए वीरोना काम छे बापा!
जेनुं वीर्य वीर्यवान छे, द्रव्य तरफ जेनुं वीर्य वळ्युं छे एने वीर्यवान कहीए. समजाय छे कांई..? एवा जे वीरना पुत्रो! आहा... हा! एनुं वीर्य वीरताथी द्रव्यमां फेलाणुं छे! एवा वीरने जे रागथाय तेनुं ज्ञान एवा ज्ञानने करतो आत्मा आत्माने जाणे छे!! समजाणुं कांई?
आहा..! ए प्रश्न आव्यो’ तो कारण परमात्मानो! (द्रव्यने) कारण परमात्मा कहो छो ते कारण परमात्मा कहेवाय नहीं केमके पयरयने कारण कहेवाय, द्रव्यने कारण न कहेवाय! छापामां (छापे) छे.
अरे, भगवान! कारण कीधुं ने... कारण कीधुं माटे पर्याय थई गई एम ते कहे छे. एम नथी, प्रभु! आहा... हा! मूळ वस्तु त्रिकाळी छे अने कार्य जे सम्यग्दर्शन थाय ए पर्याय छे. तेथी.. कारण एने (त्रिकाळीने) कह्यो छे अने राग कारण छे ने पर कारण छे एम नथी समजाय छे कांई आमां? ए ज्ञानना परिणामने राग कारण छे, निमित्त कारण छे (कहेवामां आवे छे) एम सम्यग्दर्शनना परिणामने द्रव्य कारण छे फकत लक्ष त्यां गयुं छे, माटे द्रव्यमां ए परिणाम गयां नथी. फकत लक्ष ग्युं छे आ बाजु! एथी द्रव्यने कारण कहेवामां आवे छे. ‘भूदत्थम असिदो खलु’
आहा... हा! बहु काम आकरुं बापा! मनुष्यभव मळ्यो आवो हाल्यो जाय छे ‘आ भव भवना
Page 148 of 225
PDF/HTML Page 161 of 238
single page version
१४८ श्री प्रवचन रत्नो-१ अभाव माटे भव छे!’ आहा..! एमां फरीने भव न रहे तारा एवी चीज छे भगवान आत्मा!!
(ज्ञानीए) पर्यायने ज्ञायक तरफ वाळी छे! ज्ञायकनो आश्रय लीधो छे, एनो अर्थ ए थयो के त्यां लक्ष कर्युं छे. कांई पर्याय ज्ञायकमां भळी जती नथी. ए पर्याय जे रागतरफना वलणवाळी आंही हती. आहा..! ए ज्ञाननी पर्यायने अंदर पर्याृयवान तरफ वाळी! आहा.. हा! अने ढळेली जे पर्याय थई, ते ज्ञानपर्याय ते काळे राग थाय छे अने आ ज्ञाननी पर्याय थाय छे (एकज समये ए रागनुं कार्य छे एम तो नथी पण राग छे माटे (एनुं) ज्ञान थयुं एमेय नथी. पण.. एने बताववुं छे के राग अने ज्ञान एना परिणामने करतो ते आत्माने जाणे छे.
आहा.. हा! आवुं क्यां’ य मळे एवुं नथी! ज्यां वीरनो मारग प्रवर्त्यो छे त्यां फेरफार थई ग्यो छे! अरे प्रभु!
आहा..! ए... ज्ञानी रागना परिणामने करतो नथी व्याप्यव्यापकथी... एम छे ने..! ‘परंतु पुद्गलपरिणामना ज्ञानने’ - ए व्रत ने पुण्यनो, तपनो विकल्प ऊठयो ज्ञानीने, ए (विकल्प) रागनुं आंही ज्ञान थाय, एम कहेवुं ई पण फक्त बताववुं छे के रागनुं ज्ञान!
पण... तेथी ते राग कर्ता अने ज्ञानपरिणाम कार्य एम नथी. रागनुं ज्ञान थयुं माटे राग कर्ता ने ज्ञानना परिणाम कर्म एम नथी. फकत! ‘ज्ञान थयुं’ ए बताववुं छे, एम बतावीने ‘कर्मपणे करता एवा पोताना आत्माने जाणे छे’ (एम कह्युं पाछुं) आहा.. हा! गजब टीका छे ने...! हें? आ एक लीटी! समयसार!! एटले...? बीजुं कोई छे नहीं एनी हारे एनी जोडमां
आहा.. हा! ‘एवा पोताना आत्माने जाणे छे’ (हवे कहे छे) ‘ते आत्मा अत्यंत भिन्न ज्ञानस्वरूप थयो थको’ आहा..! आत्मा रागना परिणामनुं ज्ञानने करतो एवो आत्माने जाणतो.
‘ते.. आत्मा कर्मनोकर्मथी अत्यंत भिन्न’ (एटले के) कर्मना अने शरीरना परिणामथी अत्यंत भिन्न! ‘ज्ञानस्वरूप थयो थको’ आम. ‘थयो थको’ (कह्युं तो) कर्ता सिद्ध करवुं छे ने...! रागथी नहीं, ज्ञानस्वरूप थयो थको एवो धर्मी ‘ज्ञानी छे.
भाई..., गाथा तो सादी छे प्रभु! बापु, मारग तो आ छे भाई...! धीमेथी.. एने पचाववुं पडशे! अरे..! आवे वखते नहि करे ते केदि’ करशे ई... दुनिया दुनियानुं जाणे! आहा...! अहिं कहे छे ‘ए ज्ञानस्वरूप थयो थको ज्ञानी छे’ रागस्वरूप थयो थको ज्ञानी छे एम नहीं. तो एणे रागनुं ज्ञान कर्युं तेथी रागने जाणतो थको एमेय नहीं रागनुं ज्ञान थयुं पण ए ‘आत्माने जाणे छे.’
आहाहा... हा! क्यांय सांभळवा मळे एवुं नथी त्यां वाडामां ते... ए आत्माने जाणे छे राग छे ए पर छे ते परने जाणवुं कहेवुं ई असद्भूतव्यवहार छे. अने ज्ञान ज्ञानने जाणे छे ए सद्भूतव्यवहार छे. ए य व्यवहार हो?
आ आत्मा, आत्मा छे!! आहा.. हा! (ए निश्चय छे) समजाय छे कांई..? हवे, कौंसमां (पुद्गलपरिणामनुं ज्ञान, आत्मानुं कर्म, कई रीते छे ते समजावे छे ए राग थयो-दया-दान-व्रतनो, एनुं आंही ज्ञान थयुं! ए पुद्गलपरिणामनुं ज्ञान (कीध्रुं) जे राग परिणाम कीधां ए
Page 149 of 225
PDF/HTML Page 162 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १४९ बधां (पुद्गलपरिणाम!)
भगवान (आत्मद्रव्य) तो पवित्रनो पिंड एनां परिणाम राग केवां? आहा..हा! को’ भाई..?
आहा.. ‘पुद्गलपरिणामनुं ज्ञान’ (टीकामां कह्युं) ई छे आत्मानुं ज्ञान! पण... माथे कह्युं छे ने..! ‘आत्मानुं कर्म कई रीते छे ते समजावे छे.’
कहे छे ‘परमार्थे पुद्गलपरिणामना ज्ञानने’ आहाहा! छे? शरीरनी अवस्था ई नोकर्मनी ते पुद्गलना परिणाम अने अहीं दया-दान-व्रतादिना परिणाम ते पुद्गलना परिणाम!
कर्मथी आम थाय ने पुद्गलथी-शरीरथी आम थाय बेय पुद्गलना परिणाम. आहा.. हा! ‘परमार्थे पुद्गलपरिणामना ज्ञानने अने पुद्गलने घट अने कुंभारनी जेम व्याप्यव्यापकभावनो अभाव होवाथी’ आहा.. हा! ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने अने पुद्गलने घट- कुंभारनी जेम (एटले) कुंभार व्यापक अने घट व्याप्य तेनो अभाव छे एम पुद्गलपरिणामना ज्ञानने अने पुद्गलने जेम कुंभार व्यापक अने घट व्याप्य (एवा व्याप्यव्यापकभावनो अभाव छे, (एम) पुद्गलना परिणाम छे राग ए पुद्गलना परिणामना ज्ञानने अने पुद्गलने व्याप्यव्यापकनो अभाव छे. आहा.. हा! रागनुं ज्ञान ए रागना कारणे छे एवो अभाव छे. परमार्थे पुद्गलपरिणाम एटले राग (बधो) आवी गयो, द्वेष आवी गयो, ए पुद्गलपरिणामना ज्ञानने अने पुद्गलने/ए ज्ञानने अने पुद्गलने, घट अने कुंभारनी जेम, व्याप्यव्यापकनो अभाव छे.
आहा.. हा! शुं कीधुं ई...? के, पुद्गलपरिणाम-रागादि एनुं जे ज्ञान, अने रागआदि पुद्गल, तेने व्याप्यव्यापक (भावनो) अभाव छे. घट अने कुंभारनी जेम. शुं कीधुं ई..? कुंभार ए घटना कर्ताकर्मपणे नथी. कुंभार व्यापक प्रसरनार अने धडो तेनुं व्याप्यं तेम नथी.
आहा..! आ राग पुद्गलना परिणाम अने तेनुं ज्ञान, अने राग, पुद्गलने (अर्थात्) पुद्गलपरिणामना ज्ञानने अने पुद्गलने, कुंभार अने घटनी जेम (एटलेके) राग छे ते व्यापक छे अने ज्ञानआत्मानुं थयुं ते व्याप्य छे ई घट-कुंभारनी जेम अभाव छे घट छे ते कार्य छे कुंभारनुं एनो अभाव छे तेम राग छे ते ज्ञाननुं व्याप्य-कार्य छे तेनो अभाव छे.
आहा.. हा! आवी वातुं छे!! पहेलुं तो एम कह्युं हतुं ‘रागनुं ज्ञान’ पछी एम कह्युं.. के ‘रागनुंज्ञान’ ई कार्य छे एनो अभाव छे जेम घट (कार्य) मां कुंभारनो अभाव छे एम रागना ज्ञानपरिणाम कीधुं ते कार्य एनुं छे (एनो) अभाव छे.
झीणी.. झीणी! बापु, आ गाथा ज एवी छे! आहा.. हा! त्रणलोकना नाथ ए वाणी करता हशे, गणधरो ने ईंद्रो सांभळता हशे आहा..! ए केवुं हशे! बापु! त्रणलोकनो नाथ बिराजे छे! दिव्यध्वनीमां ईंद्रो बेसे, गणधरो बेसे! आहा..! एकावतारी ईंद्र ई सांभळे (वाणी!) बापु, ए वात बीजी होय! आहा..! ए त्रण ज्ञानना धणी! एकावतारी ईंद्रो, जेनी वाणी सांभळतां आम गलूडियांनी जेम बेठां होय!
Page 150 of 225
PDF/HTML Page 163 of 238
single page version
१प० श्री प्रवचन रत्नो-१
बापु एवी वातुं छे भाई! वीतरागनी वाणी कोई अलौकिक होय छे. अत्यारे तो रागने नामे वीतराग मारगने खतवी नांख्यो छे अजैनने जैन नामे खतवी नांख्युं छे!
आहा...! एम होय भाई..? श्वेतांबर अने स्थानकवासीने मोक्षमार्ग प्रकाशकमां अन्यमति अजैन कह्या छे पण आ संप्रदायमां रहेला पण रागने नामे खतवी नाखे छे ते पण अजैन छे.
आहा.. हा! पुद्गलपरिणामना ज्ञानने एटले रागना ज्ञानने अने पुद्गलने एटले रागने, घट अने कुंभारनी जेम व्याप्यव्यापकनो अभाव छे. आहा..! राग व्यापक छे / रागनुं ज्ञान कीधुं’ तुं तेथी राग व्यापक छे-कर्ता छे अने ज्ञान तेनुं कर्म छे एम नथी समजाणुं कांई...?
आ तो आवी गयुं छे परम दि’ फरीने वधारे फरीने आव्युं. आहा... हा! बापु! वीतरागनी वात एवी छे ए ते शुं चीज छे! ए ते साधारण वात छे! ‘वचनामृत वीतरागना परम शांत रसमूळ, औषध जे भवरोगनां, कायरने प्रतिकूळ’
नपुंसकने वीर्य न होय, प्रजा न होय एनी जेम रागनी पर्यायनो कर्ता थाय एने धर्मनी प्रजा न होय! रागने रचे ते वीर्य नहीं बापु! (श्रोताः) ‘कलीब’ कीधुं छे (उत्तरः) ‘कलीब’ बे ठेकाणे लीधुं छे ने.. पुण्य-पाप (अधिकारमां) छे ने अजीव अधिकारमां छे, ‘कलीब’ -नपुंसक! पावैया हीजडाओ!!
पावैया-हीजडाओने वीर्य न होय, पुत्र न थाय. एम रागना परिणाममां धरम माननारा हीजडाओ छे तेने धरम न थाय! (श्रोताः) आकरुं (उत्तरः) आकरुं छे. टीकामां अमृतचंद्र आचार्ये कह्युं छे ए ज नपुंसक (कलीबनुं)
भाई... तुं महा... वीर... छोने प्रभु! तारी वीतरतानी शी वात करवी! के आहा..! वीर्य गुण छे, ई वीर्यगुणनुं पण एकेएक गुणमां रूप छे. ज्ञानगुण आदिमां (वीर्यगुणनुं) रूप छे. आवो वीर्य गुण छे.
आहा...! एवो जे ‘वीर’ भगवान आत्मा! एनी ज्यां द्रष्टि-सम्यग्दर्शन थयुं एवा अनंतगुणोनो स्वीकार अने सत्कार थयो अने रागनो स्वीकार ने सत्कार गयो! तेने रागनुं ज्ञान थयुं तेमां राग व्यापक छे ने ज्ञानना परिणाम व्याप्य छे (तो कहे छे) घट अने कुंभारनी जेम व्याप्यव्यापक भावनो अभाव छे.
रागना परिणामने अने एना ज्ञान (परिणामने) कुंभार-घटनी जेम अभाव छे राग व्यापक छे ने आंही ज्ञानना परिणाम एने लईने थया छे एम नथी. समजाणुं कांई..?
१७/१८ गाथा-समयसार (त्यां कीधुं) पहेलो आत्माने जाणवो, पहेलां ई नवने जाणवोअएमेय कीधुं नथी. भगवान! पहेलो आत्माने जाणवो एम पहेली भगवानने जाणवानी पाधरी वात करी छे.
आहा.. हा! बापु! समयसार तो कोई अलौकिक चीज छे! समजाणुं कांई..? आहाहा! जगतना भाग्य! एवी पळे रचाई गयुं ने एवी पळे रही ग्युं छे! ‘आ’ आहा.. हा! हें? छे?
(कहे छे) ‘परमार्थे पुद्गलपरिणामना ज्ञानने अने पुद्गलने’ एटले के पुद्गलपरिणाम एटले रागना ज्ञानने अने पुद्गलने एटले रागने, घट अने कुंभारनी जेम व्याप्यव्यापकभावनो अभाव होवाथी कर्ताकर्मपणानी असिद्धि छे’
Page 151 of 225
PDF/HTML Page 164 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १प१
आहा... हा! ‘पुद्गलपरिणामना ज्ञानने अने पुद्गलने’ जोयुं? एला-पहेला पुद्गलपरिणाम कह्या ई बधां नाखी दीधा पुद्गल (मां) आहा.. हा! शुं कीध्रुं? पुद्गलपरिणामना ज्ञानने एटले रागनाज्ञानने अने पुद्गलने एटले रागने, घट अने कुंभारनी जेम व्याप्यव्यापकभावनो अभाव होवाथी-राग कर्ता अने ज्ञानपरिणाम कर्म एनो अभाव छे. (तेथी कर्ताकर्मपणानी असिद्धि छे).
आहा..! ‘अने जेम घडाने अने माटीने व्याप्यव्यापकभावनो सद्भाव होवाथी’ (एटले) धडो कार्य छे ने माटी कर्ता छे एवुं कर्ताकर्मपणुं छे. ‘तेम आत्मपरिणामने अने आत्माने’ - आत्मपरिणाम एटले के ज्ञानपरिणाम थयां ते अने आत्माने व्याप्यव्यापकनो सद्भाव छे.
आत्मा व्यापक छे ने ज्ञानपरिणाम व्याप्य छे. अपेक्षाथी कथन शुं आवे पण परिणाम तो परिणामथी छे स्वतंत्र!! पण अपेक्षा बताववी छे ने एटले आवी शैली छे!
ए कहेतां वखते ख्याल तो बधो होय, जे चालतुं होय ते प्रमाणे कहेवाय ने.. ! आत्मा कर्ता छे एम कह्युं अहींया पण आत्मा द्रव्य छे ने माटे ना पाडशे अहींयां (पाछुं) ‘आत्मपरिणामने अने आत्माने व्याप्यव्यापकभावनो सद्भाव होवाथी कर्ताकर्म पणुं छे’ एटले आत्मा कर्ता निर्विकारी परिणाम-ज्ञानना ते तेनुं कार्य-कर्म छे? आंही रागनुं ज्ञान-कर्म थयुं माटे रागकर्ताने ज्ञान कर्म एम छे नहीं..