Pravach Ratno Part 1-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash - 192 ; Pravachan: 213 ; Date: 24-01-1978; Kalash: Tika.

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श्री प्रवचन रत्नो-१ १६३

परिशिष्टः कळश टीकाःकळशः १९२ प्रवचन क्रमांक – २१३ दिनांकः २४–१–७८


आ कळश टीका चाले छे. मोक्ष अधिकारनो आ छेल्लो कळश छे. मोक्षनी व्याख्या करशे.
कळश १९२
बन्धच्छेदात्कलयदतुलं मोक्षमक्षय्यमेत–
न्नित्योधोतस्फुटितसहजावस्थमेकान्त शुद्धम्।
एकाकारस्वरसभरतोडत्यन्तगम्भीरधीरं
पूर्ण ज्ञानं ज्वलितमचले स्वस्य लीनं महिम्नि।। १३–१९२।।
एतत् पुर्ण ज्ञानं ज्वलितम्

शुं कहे छे? के आ आत्मा जे छे अंदर ते ज्ञानानंद सहजानंद स्वरूप छे... एनुं मूळ असली स्वरूप ज्ञान अने अतीन्द्रिय आनंद ने अतीन्द्रिय ज्ञानस्वरूप छे. ए जेनी प्रगट दशामां पूर्ण अतीन्द्रिय ज्ञान, पूर्ण अतीन्द्रिय आनंद प्रगट थाय ते चार गतिना भ्रमणथी रहित थाय छे, तेने मोक्ष कहे छे.

मोक्ष ए आत्मानुं अतीन्द्रिय शुद्ध परिणाम छे; तो पछी एनुं कारण पण अतीन्द्रिय शुद्ध परिणाम होवुं जोईए. समजाय छे?

मोक्ष शुं छे? ... आव्युं ने!
एतत् पूर्ण ज्ञानं ज्वलितम्.....

ए प्रमाणे जे कह्युं छे ते समस्त कर्ममलकलंकनो विनाश थतां जीव द्रव्य जेवुं हतुं... छे? आमां सूक्ष्म वातो कहेल छे. जे जीव अंदर आत्मा छे ते जवो हतो तेवो प्रगट थयो. केवो हतो आनंत आनंद, अनंतज्ञान, अनंत अतीन्द्रिय शांति, स्वच्छतानो पिंड-पूंज छे आत्मा! ए आत्मा जेवो हतो... जेम लींडीपीपरमां चोसाठपोरी तीखाश हती तो धूंटवाथी बहार आवी... प्रगट, ए प्राप्तनी प्राप्ति-एम जेवो हतो-जेम चोसाठपोरी तीखाश हती... लींडीपीपरमां तो धूंटवाथी चोसाठपोरी कहो के रूपीया कहो बहार प्रगट थई... एम जीव द्रव्य जेवो हतो; आहाहा! आ मोक्षनी व्याख्या करे छे. आ भगवान आत्मा.. आ देह तो जड छे... माटी... धूळ-एने जाणवावाळो निश्चयथी तो आम छे. जरा सूक्ष्म पडशे पोतानी वर्तमान पर्याय जे ज्ञानीन छे ते ज्ञाननी पर्याय परने जाणे छे ए तो असद्भुतनयथी कहेवामां आव्युं छे. खरेखर तो पोताना ज्ञाननी पर्यायने पर जाणवामां आवे छे ए व्यवहार छे पण पर्यायने पोतानुं ज्ञान थाय छे ए निश्चय छे. आ बधुं जे जाणवामां आवे छे जेनी सत्तामां सत्ता एटले जेनी पर्याय-हालत-वर्तमानमां जे ज्ञाननी अवस्था छे ते पर्याय एमां आ जे जाणवामां आवे छे ए खरेखर आ (पर) जाणवामां नथी आवतुं. पण पोणाना ज्ञाननी वर्तमान अवस्थानी ताकात जाणवामां आवे छे आ हा... हा... हा!

सूक्ष्म छे भाई! धर्म घणो सूक्ष्म छे. लोकोए बहारथी कल्पना करीने आ दया, दान, व्रत अने

भक्ति ए बधा कोई धर्म बर्म नथी. धमृ तो अंतरनी कोई अपूर्व चीज छे.


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१६४ श्री प्रवचन रत्नो-१

तो हवे कहे छे के एक समयमां जे वर्तमान दशा प्रगट छे ए दशामां आ.. आ.. वगेरे जे जाणवामां आवे छे एम कहेवुं ए तो व्यवहार छे. निश्चयथी तो पोतानी ज्ञाननी पर्याय पोताथी जाणती प्रगट थाय छे ते जणाय छे.. आहा!

केमके जेमां तन्मय थईने जाणवुं थाय तेने जाणवुं कहेवाय छे... तो परमां कंई तन्मय थईने ज्ञान जाणतुं नथी.

जीणी वातु छे बधी. आहाहा! एम कहे छे ने के अंदर जेवुं आत्मद्रव्य हतुं एवुं प्रगट थाय छे ने! तो अहीं एम कहेवुं छे के तेनी वर्तमान पर्यायमां ज्ञाननी दशा परने जाणती हती ए खरेखर नथी. केमके ए परमां तन्मय नथी. माटे खरेखर परने जाणती नथी, परंतु पर संबंधी ज्ञान पोतानी पर्यायमां पोताथी थाय छे एने जाणे छे... अहाहाहा!

आवुं जीणुं छे! हवे तो बीजुं कहेवुं छे... भाई! जीवनी एक समयनी ज्ञाननी वर्तमान दशा परने जाणे छे एम तो छे नहीं; केमके ते एमां तन्मय के एकमेक तो छे नहीं तेमां एकमेक थया वगर तेने जाणे छे एम केम कही शकाय? ...

जीणी वात छे, प्रभु! अहीं तो भगवान कहीने ज बोलाववामां आवे छे... अंदर आत्मा भगवान स्वरूपे ज छे, एनी एने खबर नथी. अहीं तो वर्तमान एक समयनी जाणन दशा छे. ए प्रगट दशा एमां खरेखर तो ज्ञाननी पर्याय ज ज्ञाननी पर्ययने जाणे छे. आहाहाहा! ए पण हजी पर्याय बुद्धि छे. जीणी वात छे, भाई!

सर्वज्ञ परमात्मा त्रिलोकनाथ थया, ए क्यांथी थया? ए अंदरमां छे एमांथी थया छे. जेवा हता ए थया. अंदरमां एनी शक्ति अनंत ज्ञान, अनंत आनंद, अनंत शांतिनो आदि सागर भगवान अंदर छे.

जेवो हतो तेने -प्रथम पोतानी पर्यायमां परने जाणतो नथी पण पोताने जाणे छे. आ पण एक समयनी पर्याय बुद्धि छे, आहा! ए एक समयनी अवस्था जेवो हतो एवुं ज जाणे... जीणी वात छे, भाई! आतो धर्मनी वात छे.

वर्तमानमां एक समयनी दशा जे चाली रही छे ए परने जाणती नथी. खरेखर तो ए पोतानी पर्याय पोतामां तन्मय छे तो ते पोताने जाणे छे. परमां तन्मय नथी.

हवे एक समयनीए पर्याय पोताने जाणे छे त्यां सुधी तो तेनी पर्याय बुद्धि अंशबुद्धि ए वर्तमान बुद्धि थई... आ हा... हा... हा... हा!

आम जाणे त्यारे.... परने जाणे ए वात तो क्यांय रही गई. आहा! समजाय छे? धर्मनी आवी वात छे. सर्वज्ञ परमात्मा-त्रिलोकनाथ-जिनेन्द्रदेव-वीतराग परमेश्वरे धर्म कह्यो छे ए अलौकिक चीज छे. ए वगर जन्म मरणनो अंत कदी नहीं आवे. जन्म मरण करतां करतां आ जीव


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श्री प्रवचन रत्नो-१ १६प अनंतकाळथी परिभ्रमण करे छे... आहा!

शुं कहे छे? आ मोक्षनी वात चाले छे. पहेलां आ वर्तमान पर्याय-मुक्त स्वरूप जीव द्रव्य जेवुं छे एवुं-आ वर्तमान पर्यायमां जयारे जाणवामां आवे छे त्यारे तो तेने सम्यग्दर्शन् प्रगट थाय छे. समजाय छे?

आ आवी वात छे, त्यां रूपीया पैसामां क्यांय आ मळे एम नथी. करोडो होय... ए धूळमां नहीं मळे... धूळ छे पैसा... पांच करोड अने दस करोडने अबज ए धूळ छे. आ पण (शरीर) माटी छे. मसाणमां राख थशे. आ... अंदर भगवान जे आत्मा छे. ए तो छे आनंद स्वरूप प्रभु- सच्चिदानंद सत्शाश्वत ज्ञान अने आनंदनो भंडार छे. एने पर्यायमां एवो जणायो... पहेलां जाणवामां आव्यो... ‘बराबर’ .... आहा!

शुं कहेवा मागे छे? के मोक्ष छे... पूर्ण... एकांत शुद्ध... सर्वथाप्रकारे शुद्ध... मोक्ष छे ए तो अतीन्द्रिय आनंद, अतीन्द्रियज्ञान, अतीन्द्रियशांति आदिथी पूर्ण शुद्ध छे. ए मोक्ष! अने संसार छे ए विकारदशा छे. ए परिपूर्ण विकार छे. प्राणी दुःखी छे. ए पछी भले राजा हो के अबजपति हो! ए रूपीयाना धणी मालिक होय छे तो ते दुःअी छे... अज्ञानी छे... मूर्ख छे. आहा!

तो जेवो आत्मा हतो एवो मोक्षमां प्रगट थयो, एनो अर्थ ए थयो के वर्तमान पर्यायमां जेवो हतो तेवो अंतर अनुभवमां प्रतीत थयो, त्यारे तो मोक्ष परिपूर्ण शुद्ध छे. तेनो उपाय अपूर्ण शुद्ध पर्याय पूगट थई.. शरुआत थई... आहा! झीणीवात, भगवान!

अनंतकाळथी चोरासीना अवतार करी करीने रखडीने मरी गयो छे. कीडा, कागडा, कूतरा एवा अनंत भव कर्या... चोरासी लाख योनि! एक एक योनिमां एणे अनंत भव कर्या छे प्रभु! एने थाक नथी लाग्यो एने आहा! अंदर जोतो नथी के हुं कोण छुं? आहाहाहा!

अहीं तो एक समयनी वर्तमान दशामां परने जाणतो नथी... एतो पोताने जाणे छे; केमके परमां तन्मय नथी... केवळज्ञानी लोकालोकने जाणे छे एम कहेवुं ए तो असद्भूत व्यवहारनयथी छे. आहा! केमके एमां तन्मय नथी... ते रूपे थतो नथी... जो पर्यायरूपे ते रूप थाय तो तेने ते जाणे.

आहीं अज्ञानी के ज्ञानी वर्तमान दशामां परने तन्मय थईने जाणता नथी माटे ते संबंधीनुं पोतानुं ज्ञान पोतामां तन्मय थईने जाणे छे तो एनुं नाम पर्यायमां पर्याय जणाय छे एम कहेवामां आव्युं.

अहीं तो एनाथी पण आगळ लई जवा छे.... आवी वतो छे, भाई! आहा! आवुं मनुष्यपणुं मळ्‌युं ने जो आ तत्त्व-आत्मज्ञान शुं चीज छे एनी खबर न पडी तो चार गतिमां दुःखी थईने रझळशे.

अहीं तो कहे छे के ‘जेवो हतो तेवो प्रगट थयो.’ आ मोक्षनी व्याख्या करी. अंदरमां जेवो हतो... अनंत आनंद.. अनंत शांति... शांति... शांति-शक्तिए जेवो हतो एवो वर्तमान दशामां तेवो पूर्ण दशाए पर्यायमां प्रगट थयो. एनु नाम मोक्ष हवे अहीं तो मोक्षनुं कारण पहेलुं बताववुं छे आहा..


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१६६ श्री प्रवचन रत्नो-१ हा... हा..! जेवो छे. अनंत ज्ञान... अनंत आनंद एमां छे, प्रभु! आहा! जेम लींडीपीपरना दाणामां चोसठपोरी तीखाश अंदर भरी पडी छे. अंदर पूर्ण भरी छे चोसठपोरी-पूरेपूरो रूपीयो! ए जेवी हती एवी चोसाठपोरी पीपर प्रगट थई. ए धूंटवाथी थई.. ए जेवो हतो.. आहा! केवो हतो? के पूर्ण ज्ञान-पूर्ण आनंद-पूर्ण शांति-पूर्ण स्वच्छताथी भरपुर भगवान जेवो हतो एवो प्रगट थाय छे.

वर्तमान पर्यायमां परने जाणे छे एवी पर्यायनी ताकात मानी छे एने हवे स्वने जाणवानी ताकात मानी-एम जाणीने ए पर्याय स्वने-त्रिकाळीने जाणे त्यारे तेने मोक्ष मार्गनी पर्याय प्रगटी.. उत्पन्न थई.

पूर्ण शुद्ध पर्याय ए आत्मानी पूर्ण शुद्ध दशा छे. तो पछी पूर्ण शुद्ध परिणामनुं कारण पण आत्मानुं शुद्ध परिणाम होवुं जोईए समजाय छे?

आहा! झीणी वात छे भगवान! एणे आ वात कदी सांभळी नथी... कदी करी नथी. आहाहा! बचपन खेलामां खोया.. रमतुमां, युवानी गई स्त्रीना मोहमां, वृद्धावस्था देखीने रोयां.. पण तत्त्व...? अंदर भगवान आत्मा.. सच्चिदानंद स्वरूप प्रभु! सर्वज्ञ परमेश्वर जेवो हतो एवो प्रगट थयो एनुं नाम मोक्ष.

हवे बीजी वात. पूर्ण शुद्ध दशा एनुं नाम मोक्ष.. तो एनुं कारण पण आत्मानुं शुद्ध परिणाम होवुं जोईए. शुद्ध वस्तु जेवी छे.... आहा! परिपूर्ण! परिपूर्ण!! वस्तु भरी (पडी) छे; तेनी वर्तमान पर्याय- दशामां अंदरमां जेवी छे एवी प्रतीत अनुभवमां आवी... त्यारे तो तेने मोक्षनो मार्ग प्रगट थयो. मोक्ष जे पूर्ण शुद्ध पर्याय छे... पूर्ण पवित्र-अनंत आनंदनी दशा छे तेना अपूर्ण शुद्ध परिणाम शुद्ध स्वभावना भानमां जे उत्पन्न थया ते पूर्ण शुद्ध परिणामनुं कारण छे...

अहो... आवी आ वातो...! आवो आ मार्ग छे भाई! अत्यारे सांभळवो पण मुश्केल पडे छे. आहा! बहारमां धमाधम.. जाणे बहारथी धर्म थई जशे. धर्म तो अंदर स्वभावमां पडयो छे. आहा!

कहे छे के ‘जेवो हतो’ अहीं शब्द आव्यो छे ने! ‘जिस प्रकार कहा समस्त कर्मोका विनाश होनेसे’ शब्द तो पूर्ण ज्ञान छे पण कर्म तरफथी कथन कर्युं. केमके पहेलां कंईक मलीनता हती ए बताववा माटे... ‘समस्त कर्मोका विनाश होनेसे’ मोक्षमां एक राग पण रहेतो नथी के जेथी फरीने अवतार करवो पडे. चणो होय छे तेने शेकवाथी ते फरीने उगतो नथी. काचो होय तो उगे छे. वावे तो. एम भगवान आत्मा पाको थई गयो... पोताना आत्माने अज्ञानने शेकवाथी अने पूर्ण पर्यायनी दशा प्रगट तो फरीने संसारमां हवे अवतार धारण करशे नहीं. आहाहा! अवतार धारण करवा ए तो कलंक छे. भगवान सच्चिदानंद प्रभु अतीन्द्रिय आनंद अने अतीन्द्रिय ज्ञाननो सागर अंदर पडयो छे. आहा! क्यां जूए? कदी जोयुं नथी.... वर्तमानमां त्रिकाळ वस्तु जेवी छे एवी प्रतीतमां ज्ञानमां- अनुभवमां आवे ते शुद्ध परिणाम छे.... ए शुद्ध परिणाम पूर्णशुद्धनुं कारण छे. समजमां आवे छे?

एक तो समजवुं कठण पडे..... तो पछी करे के’ दि! आहा!


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श्री प्रवचन रत्नो-१ १६७

श्रोता- आप सहेलुं करी आपो. सहेलामां सहेली भाषाथी तो आवे छे. करवुं तो एने पडशे ने? कोई करी दये? कोई मदद करी दये ए पण खोटी वात छे.

जीव द्रव्य, एटले वस्तु, अने भगवान आत्म तत्त्व.. तत्त्व कहो- द्रव्य कहो वस्तु कहो- पदार्थ कहो- ए आत्मद्रव्य - आत्मपदार्थ -आत्म वस्तु - आत्म तत्त्व - जे त्रिकाळी वस्तु अविनाशी - कदी नवी उत्पन्न थई नथी कदी तेनो नाश नथी. एवी अंतर वस्तु जे छे ‘जेवो हतो’ ... आहाहाहाहा..! ‘जेवो हतो..! केवो हतो तो अनंत गुणे बिराजमान! ए अनंत गुणे बिराजमान छे! आहा! सूक्ष्मवात छे प्रभु... अनंत शक्तिओ अंदरमां छे. अनंत ज्ञान अनंत दर्शन एवा अनंत गुणोथी बिराजमान छे. ‘जेवो हतो’ एवो प्रगट थयो.. एवो परिणमनमां प्रगट थयो बहारमां. शक्ति हती.. ए प्राप्तनी प्राप्ति थई.. पर्यायमां.. पहेलां कह्युं हतुं ने! के पर्यायने द्रव्यनी प्रतीत अनुभव करवाथी थाय छे.. एने मोक्षनो मार्ग शरु थाय छे. त्रिकाळनो पूर्ण आश्रय थयो तो केवळज्ञान अने मोक्षनी दशा थाय छे. तो ए मोक्ष दशानुं कारण.. पहेलां तो एम कह्युं हतुं के ‘कर्मोनो नाश थवाथी’ ... एम कह्युं हतुं ने? कलंकनो नाश करीने.. जीव द्रव्य जेवो हतो- अनंत गुणे बिराजमान जेवो ते प्रगट थयो. केवो प्रगट थयो?

मोक्षम् कलयत्..’ मोक्षनी व्याख्या... जीवनी निष्कर्मरूप अवस्था.. आ मोक्षनी व्याख्या. जे रागवाळी अने कर्मवाळी दशा छे ए तो संसारमां रखडवानी चीज छे. कर्म अने राग वगरनी निष्कर्म अवस्था- पूर्ण निष्कर्म अवस्था आ नास्तिथी वात करे छे. राग अने कर्मथी रहित अवस्था एनुं नाम मोक्ष अने कर्म अने रागनी अवस्था एनुं नाम संसार.. आहा!

जीवनी जे निष्कर्मरूप अवस्था आ मोक्षनी व्याख्या करेछे. कलयत्.. ए रीते परिणमी गया.. कलयत् छे ने! अनुभव थई गयो. परिणमन थई गयुं. केवी छे मोक्ष अवस्था? पूर्ण कर्म कलंक रहितपूर्ण अशुद्धताथी रहित जेवो पूर्ण शुद्ध हतो तेवुं परिणमन थयुं. आ दशा पर्यायमां थई एने मोक्ष कहे छे. आहा! समजाणुं कांई?

आ आवी वात! भाई, मारग तो आवो छे, आहा! अत्यारे तो जुओने नानी उंमरना केटलाकने हार्टफेईल थई जाय छे. दस दस वर्षनी उंमर-पच्चीस-पच्चीस वर्षनी उंमर ख्याल न होय कोईने एक सेकन्डमां हार्ट बेसी जाय! फट, स्थिति पूरी थई.. बस फडाक.. हार्ट बेसी जाय. ए संयोगी चीज छे. आ तो संयोगी चीज एटले एनी स्थिति पूरी थाय के छूटी जाय.

पोतानुं आ तो जेवुं स्वरूप हतुं एवुं प्रगट थयुं तो राग अने कर्मने शरीर एने कारणे छूटी जाय छे. आहाहाहा! एनुं नाम मोक्ष कहेवामां आवे छे. जेमां अतीन्द्रिय आनंद छे... जेमां अतीन्द्रिय अनंत ज्ञान छे.. केम? केमके ‘अनंत गुण सहित बिराजमान’ एम कह्युं हतुं ने? ए प्रगट थयुं. आहा! निष्कर्म अवस्था... जेवो बिराजमान हतो ए प्रगट थयो, शुं प्रगट थयुं? जीवनी जे निष्कर्म अवस्था-एवुं परिणमन थयुं... अरे! आवा शब्दो छे.

पूर्ण दशा.. अनंत अनंत आनंद! सिद्धनी दशानुं वर्णन छे ने! बहेन कहे छे ने? सिद्धनी व्याख्या


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१६८ श्री प्रवचन रत्नो-१ शांति- शांति - शांति! ॐ शांति! आहाहा! बेननुं वांचन वांचीने तो पागल थई जवाय एवुं छे. दुनियाना लोकोमां कोई पागल थई जाय छे ए नहीं. आ तो अंदरना पागल... बीजुं कांई सूझे नहीं आत्मा.. आत्मा.. आत्मा! आनंद..! आनंद..! आनंद..! शांति. बेने लख्युं छे ने के विभावथी भिन्न तारी चीज छे ने! विभाव एटले विकार... विकार एटले पुण्य अने पापना भाव, आ बधा विभाव अने विकार छे, एनाथी अंदर भगवान आत्मा भिन्न छे. आहाहाहा!

ए जेवी शक्ति हती एवी निष्कर्म अवस्थारूप परिणमन थयुं.. जोयुं? कलयत् शब्द हतो ने एनो अर्थ परिणमन कहो - अनुभव कहो - अवस्था कहो - अभ्यास कहो - बधा एक ज अर्थ छे.

कलयत् - अवस्थामां परिणमन थयुं. शुं कह्युं? जेम चोसठपोरी लींडीपीपरमां अंदर शक्ति छे तेने घूंटवाथी बहार आवे छे. चोसठपोरी एटले पूर्ण तीखाश ए बहार प्रगट थई. एम भगवान आत्मामां एक जड चीज एवी लींडीपीपरमां पूर्ण तीखाश भरी छे ने बहार प्रगट थाय छे तो पछी आ तो चैतन्यनो नाथ भगवान अंदरमां पूर्ण आनंद अने पूर्ण ज्ञान चोंसठ पोरी-पूरो रूपीयो - चोसठ पैसा - भर्यो पडयो हतो ए पर्यायमां - दशामां -अनुभवमां आव्यो.

त्यां पैसामां क्यांय आ सांभळवा मळे एम नथी.. पैसावाळा बधा दुःखी छे बिचारा. शास्त्रमां तो पैसावाळाने भिखारी कह्या छे, ।। भीख मागे छे! भगवान थईने भीख मागे छे, “ पैसा लावो” “पैसा लावो” “पैसा लावो” “बायडी लावो” “छोकरां लावो” “आबरू लावो” अरे! भिखारी छो तुं? अनंत अनंत अंदर शांति अने आनंद पडया छे. तारी लक्ष्मी तो अंदर पडी छे. सच्चिदानंद प्रभु, ए लक्ष्मीनो अंदर धणी थाय ने! एनो स्वामी थाने! आहाहा! समजमां आवे छे? आकरी वात छे. दुनियाथी विरुद्ध छे. पण आ तारा आत्माना घरनी वात छे तारा आत्मानी वात छे नाथ! प्रभु! तुं अंदर कोण छो? आ देह तो माटी छे... हाडकां छे मसाणमां राख थईने उडी जशे. आहाहाहा! तुं उडे अने नाश थाय एवो नथी. तुं तो अविनाशी छो. अनादि अनंत छो.. ‘छे’ एनी उत्पत्ति नहीं, ‘छे’ एनो नाश नहीं, ‘छे’ ए तो प्रगट छे...! आहा! छे?

केवो छे मोक्ष? “अक्षय्यम्” आगामी अनंत काळ पर्यंत अविनश्वर छे. आहाहा! जेवी वस्तु छे.. आत्म तत्त्व अनंत आनंद अविनश्वर जेवी मोक्ष अवस्था... पर्याय थई... दशा थई हवे ए पण अविनश्वर थई केमके अविनश्वर आत्मा छे. एनी दशामांथी अनंत आनंद आदि पूर्ण प्रगट थयो मोक्ष... (तो) पर्याय (पण) अविनश्वर छे, ए पण अनंतकाळ रहेशे. आहाहाहा!

मोक्ष थाय पछी अवतार धारण करवो पडे.. (एम नथी)... (श्रोता) - भक्त भीडमां आवे त्यारे.. भगवान आवे? जवाब - ए वात बधी खोटी... भगवानने भीड शुं? पोताना स्वरूपमां पूर्ण आनंद दशा थई गई. एनुं ज्ञान पण करता नथी.. ए ज्ञान तो पोतानी पर्यायनुं करे छे ए अवतार ले? बापु मारगडा जुदा, प्रभु! आहा! अत्यारे तो प्राणीओ बिचारा दुःखी... एक तो मोंघवारी... गरीब आधार-माणसने मळवुं मुश्केल पडे.. पैसावाळाने घणुं देखाय.. बेय दुःखी.. रांक दुःखी-शेठ दुःखी- राजा दुःखी - देव दुःखी! सुखी एक संत के जेने आत्मानुं भान थयुं. हुं तो अनंत आनंद करुं छुं... सच्चिदानंद


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श्री प्रवचन रत्नो-१ १६९ प्रभु एनुं जेने भान थयुं ए जगतमां सुखी छे. सुखिया जगतमें संत दुरिजन दुःखीया.. आहा.. हा.. हा..! आ बधा दुःखिया फरे छे जगतमां साची वात हशे?

अहीं तो कहे छे मोक्ष अवस्था कोने कहीए के आगामी अनंतकाळ सुधी रहेनारी अने जे अतुल-उपमा रहित छे. आहा! ए अतीन्द्रिय आनंद स्वरूप भगवान छे अंदर ए जयारे पर्यायमां अनुभव करी अंतरमां-दशामां पूर्ण आनंद थयो एनी उपमा केम देवी? कोनी उपमा देवी शुं एम कहेवुं के इन्द्रना सुख करता अनंतगणुं सुख मोक्षमां? इन्द्रना सुख तो झेरना सुख छे, आ आत्मानुं सुख तो अतीन्द्रिय सुख छे, तो अतीन्द्रिय सुखने कोई उपमा छे? नहीं... समजाय छे कांई? आहा!

अतुल अने उपमा रहित छे. कया कारणथी? “बन्धच्छेदात्” बन्धने मूळ सत्तामांथी नाश करी नाखे एवा. ल्यो! जेम ए चणाना उपरना फोतरा नाश थाय छे अने चणो (शेकायने) पाको थाय छे अने पछी ते उगतो नथी अने मीठाश आपे छे... ए मीठाश आवी क्यांथी?

काचा चणामां मीठाश न हती. तुराश हती- अने पाका चणामां मीठाश आवी ए क्यांथी आवी? ए शुं बहारथी आवी छे? ... अंदरमां मीठाश पडी हती ते बहार आवी छे... शेकवाथी आवी छे? तो (कोई) लाकडाने शेके, कोलसाने शेके तो मीठाश बहार आववी जोईएने? चाणामां (तो) मीठाश पडी छे. ए शेकवाथी बहार आवी. ए मीठाश जेम छे एम आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदनी मीठाश छे. चणो तो ए (पोतानी) मीठाशने जाणतो नथी... अने चणानी मीठाशनुं ज्ञान थयुं ए चणानी मीठाशनुं नथी. आहाहाहाहा!

ए समये ए पर्यायमां जे ज्ञान थयुं ए पोताना कारणे थयुं छे... ‘चणामां मीठाश छे’ एवुं ज्ञान हों! ए ज्ञानमां पोतानुं ज्ञान तन्मय छे... तो जे ज्ञानमां मीठाशनुं ज्ञान छे एवुं ए ज्ञान जो अनंतज्ञाननी मीठाशमां लागी जाय... आहा! अनंत आनंद अंदर भर्यो छे. एमां मीठाश लागी जाय अंदरमां तो पर्यायमां पूर्ण आनंद थई जाय छे. आगामी काळमां पछी एनो कोई नाश नथी छे? केमके आठ कर्म छे... अने राग-द्वेष-पुन्य-पाप ए भाव कर्म छे... जड कर्म आठ छे ए बधानो नाश थाय छे.

कया कारणथी? मूळ सत्तानो (कर्मनी) नाश थवाथी. केवुं छे शुद्ध ज्ञान? “

नित्योद्योतस्फुटित्तसहजावस्थम्” शाश्वत प्रकाशथी प्रगट थयुं छे. आत्मा जेवो शाश्वत

अविनाशी छे एनी शक्तिओ अनंत आनंदादि शाश्वत छे. एवो पर्यायमां शाश्वत अतीन्द्रिय आनंद प्रगट थई गयो.. आहाहा! वस्तु शाश्वत गुण शाश्वत- पर्याय अवस्था शाश्वत! द्रव्य गुण शाश्वत, अने पर्याय जे अस्थिरतानी अशाश्वत हती संसारनी, राग-द्वेषनी तो हवे जेवुं द्रव्य शाश्वत, वस्तु! एनी शक्ति गुण आनंद आदि शाश्वत, एवी पर्याय शाश्वत थई गई. आहाहाहा!

आवो आ उपदेश कई जातनो हशे? दया पाळवी, व्रत करवा, देशनी सेवा करवी. कोण करे? भगवान! आहा! तारा शरीरमां रोग आवे छे तो एने मटाडवानी शक्ति तने नथी... शरीर जड छे... तो परने तुं मटाडी शकीश? अभिमान छे.. अज्ञानमां अहीं तो कहे छे पोताने मटाडी शके छे नित्य


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१७० श्री प्रवचन रत्नो-१ उद्योत-शाश्वत प्रकाश - स्फुटित. काल आव्युं हतुं ने? जुओ अहीं आव्युं.. स्फुट... स्फुटित हुं एटले प्रगट थयो. जेवो अंदरमां आनंद हतो तेवो प्रगट थयो. आहा!

केवुं छे ज्ञान? नित्य प्रगट थयुं. सहजावस्थम् अनंत गुण बिराजमान शुद्ध जीव द्रव्य.. एवुं. सहज्अवस्थम्” आ पर्याय दशानी वात छे. जेवो त्रिकाळ शक्तिरूप प्रभु छे, एवो अनुभव करीने आनंदनुं वेदन करीने - आत्मज्ञान करतां करतां - स्थिर करतां करतां - पूर्ण दशा प्रगट थई गई, ए पूर्ण शाश्वत दशा छे.

अनंत गुणे बिराजमान शुद्ध जीव द्रव्य जेम छे एवी पर्याय पण अनंत शुद्ध अनंत काळ रहेशे. आहा! संसारनो नाश अने मोक्षनी उत्पत्ति. आम द्रव्य तो त्रिकाळी ध्रुव. शुं कहे छे आ? आ तो विज्ञाननुं पण विज्ञान छे. आ अंतर आत्मज्ञान छे. आत्मज्ञान वगर कदी जन्म मरणनो अंत थशे नहीं. चोराशीना अवतारमां रखडी रखडी - घांचीनी घाणीनी जेम पीलाईने मरी गयो छे. बापा!

अहीं कहे छे के पोते नित्य प्रगट थयो. सहज अनंत गुणोथी बिराजमान “सहजअवस्थम् ए शब्द छे... अवस्थ एटले निश्चयथी सहज अनंत गुण छे बस! एम लेवुं. अवस्था नहीं. अवस्थ एटले चोक्कसपणे छे.

केवो छे? “एकान्तशुद्धम्” हवे आव्युं. ओहोहोहो! आत्मा अनंत एकान्त शुद्ध हतो अंदर एनो अनुभव करतां करतां एवी अंदर दशा प्रगट थई... आत्म ज्ञानमां लीन थतां तो... ए पर्याय पण एवी एकान्तशुद्ध - सर्वथा शुद्ध कथंचित् शुद्ध अने कथंचित् अशुद्ध एम नहीं... आहा! ए सिद्धने कोई दुःखी कहे तो ए दुःखी छे नहीं, पूर्ण आनंदस्वरूप छे.

जेने पूर्ण आनंद प्रगट थयो पछी तेने जन्म मरण छे नहीं एकान्तशुद्धम्- सर्वथा प्रकारे शुद्ध छे.

‘परमात्म प्रकाश’ मां तो कह्युं छे के इन्द्रियोनुं सुख भगवानने नथी. ‘परमात्म प्रकाश’ नो न्याय. इन्द्रियोनुं सुख शुं...? ए तो कल्पना मात्र छे पर जडनी.

अहीं तो कहे छे एकान्तशुद्ध - एकान्त परिपूर्ण सुखी. अतीन्द्रिय आनंदनो नाथ भगवान अंदर अतीन्द्रिय ज्ञान अने आनंदनो नाथ सागर अंदर बिराजमान.. एनो अंतरमां अनुभव करतां करतां एनुं अनुसरण करतां करतां दशामां ज्यां पूर्ण शुद्धता प्रगट थई.. ए नित्य एकान्त शुद्ध छे.

केवो छे? अत्यंत गंभीर धीर अनंत गुणे बिराजमान गंभीर. शुं कहे छे? गूमडुं होय छे ने? गंभीर गूमडुं... बहु पाकी गयेलुं.. वाट पण अंदर जई न शके. एम आत्मानो आनंद ज्यां प्रगट थयो... ए अत्यंत गंभीर एटले? एटले के आनंदनी एटली गंभीरता के जेनो पार नहीं! आहा! एवो आनंद अंदर पडयो ज छे. एनी द्रष्टि अने सम्यग्दर्शनने ज्ञाननो अनुभव करतां करतां ए प्रगट थाय छे. अनंत अनंत गंभीर जेनी एक समयनी दशा पूर्ण मोक्ष एनो पार नहीं.. अक्षय अनंत गंभीर छे. आहा! अक्षय अनंत.. ए चारित्रने (पण) अक्षय अनंत कह्युं. कारण के अक्षय अनंतनी मर्यादा शुं? अत्यंत गंभीर छे, भाई!

ए मोक्षनो मार्ग ए धर्म. धर्म तो कोई अलौकिक चीज छे.. ए कोई बहारथी प्राप्त थती नथी. अंतर आत्मामां छे, एनुं ध्यान करवाथी - अंतरना आनंदनुं ध्यान करवाथी आनंद अने धर्म थाय छे.


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श्री प्रवचन रत्नो-१ १७१

आंहीं तो थोडी दया पाळे अने थोडा पैसा खर्चे तो कहे के धर्म थई गयो, ल्यो! धूळमां धर्म नथी. तारा करोड बे करोड खर्ची नाखने अबज खर्ची नाखने! ए तो धूळ छे माटी. माटीमां धर्म क्यांथी आव्यो?

अहीं तो कहे छे अत्यंत गंभीर अने धीर एम बे अर्थ (शब्द) वापर्या. अनंत गुणे बिराजमान एवो धी.. र... एटले सरलताथी रहेनार छे. शाश्वत रहेनार छे. संसारनो नाशने मोक्ष थयो आत्मानो.. पोतानो अनुभव करतां करतां केवळज्ञान थयुं.. शाश्वतसुख.. आहा! (जुओ) छे?

कया कारणथी? “

एकाकारस्वरसभरतः” एकरूप थयुं. अनंतनी एकरूप दशा थई गई.. ज्यारे विकारी

दशाहती ते अनेकरूप हती. ज्यां अंतरमां मोक्ष दशा थई तो एकरूप पूर्ण आनंद प्रगट थयो. एकरूपां आनंद छे; अनेकपणानो नाश थयो एवो एकरार आहा! अनंत ज्ञान-अनंत दर्शन- अनंत सुखअने अनंत वीर्य एना अतिशयथी-विशेष कारणथी सुखी छे.

केवो छे? “

स्वस्थ अचले महिम्नि लीनं

पोताना निष्कंप प्रतापमां मग्न छे. आ रीते सकळ कर्मोनो क्षय करी मोक्षमां आत्मद्रव्य स्वाधीन छे अने चार गतिमां पराधीन छे. चाहे तो नरकमां - मनुष्यमां पशुमां के देवमां बधा पराधीन छे.

आम मोक्षनुं स्वरूप कह्युं. मोक्षनुं वर्णन पूरुं थयुं.

* * *