Pravach Ratno Part 1-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash - 215 ; Kalash: Tika ; Date: 23-02-1978; Pravachan: 239.

< Previous Page   Next Page >


Combined PDF/HTML Page 19 of 24

 

Page 172 of 225
PDF/HTML Page 185 of 238
single page version

१७२ श्री प्रवचन रत्नो-१

श्री कळश टीका कळश – २१प प्रवचन क्रमांकः २३९ दिनांकः २३–२–७८


कळश टीका २१प कळश फरीने (लेवामां आवे छे)
शुद्ध द्रव्यनिरूपणापितंमतस्तत्त्वं समुत्पश्यतो
नैकद्रव्यगतं चकास्ति किमपि द्रव्यान्तरं जातुचित्।
ज्ञानं ज्ञेयमवैति यतु तदयं शुद्धस्वभावोदयः
किंद्रव्यान्तरचुम्बनाकुलधियस्तत्त्वाच्चयवन्त जनाः।। २३–२१५।।
जनाः तत्त्चात् किं च्यवन्ते

“हे! संसारी जीवो’ - आचार्य करुणा करीने कहे छे, ‘हे जीवो!’ आहा! ‘जीववस्तु त्रणकाळ शुद्ध स्वरूपे छे.’ शुं कहे छे? भगवान आत्मा तो शुद्ध स्वरूप ज छे. परने करे नहि दया दानना भावने करे एमेय नथी.

परने करे तो नहीं, दया दानना भावने करे एवो नथी ए तो शुद्ध जीववस्तु छे, समस्त ज्ञेयने जाणे छे, एटले? अंदर राग आवे एने स्पर्श कर्या वगर ज्ञान जाणे एवो एनो स्वभाव छे. शुं कह्युं समजाणुं? आहा! भगवान ज्ञान स्वरूप आत्मा, एने कोई दया, दानादिनो राग आवे पण एथी परनी दया करी शके ए तो प्रश्न छे ज नहीं. आहा! आवी चीज छे. पण ए भाव आव्यो एने ज्ञान स्वभाव स्पर्शतो नथी. शुं कह्युं? ज्ञान स्वरूप भगवान आत्मा तो चैतन्य ज्योत चेतना, ए रागादि अचेतन स्वभावने स्पर्शतो नथी. आहा!

ए तो शुद्ध चैतन्य वस्तु छे एम जेना ज्ञानमां जणायए आत्माने अंदर राग थाय ते रागने स्पर्श कर्या वगर रागने जाणे छे. समजाणुं कांई? परनी दया पाळवी आदि तो करी शकतो नथी. केम के परने अडी शकतो नथी. पण अंदरमां राग आवे ए पण शुद्ध जीवना स्वभावमां रागनुं अडवुं अने चुंबन करवुं एटले स्पर्शवुं ए चैतन्य घन भगवान आत्मानी सत्ता जाणवा देखवानी छे ए जाणवा देखवामां जे राग आवे एने पण स्पशर्या विना ते पोताना क्षेत्रमां - भावमां रही एने जाणी ल्ये छे. छे? केम भ्रष्ट थाय छे... एवा अनुभवथी केम भ्रष्ट थाय छे? एटले रागने जाणतां एने एम थई जाय छे के अरे हुं राग रूप थई गयो.. अथवा राग मारा स्वरूपे थई गयो एम जीव केम भ्रष्ट थाय छे? आहा!

बहु झीणी वातो छे, बापु! जैन धर्म बहु सूक्ष्म छे.. लोकोए कल्पनाओ करी छे ए बधी बहारनी वातो.

अहीं तो जीव शुद्ध स्वरूप छे ए रागने जाणतां रागने अडतो नथी. ए पर ज्ञेय छे अने खरेखर ए राग छे ते चेतनथी भिन्न जात छे माटे अचेतन छे. ए अचेतनने चेतन अडतो नथी. आहा!

श्रोता- ‘अडे तो शुं वांधो आवे?” उत्तरः अडे तो वांधो ए आवे के मलिन माने. मिथ्याद्रष्टि एम माने. अडे शुं? स्पर्शी शकतो नथी. केमके राग अने ज्ञायक भावनी वच्चे अत्यंत अभाव छे. राग तत्त्व ए पर तत्त्व छे. मलिन तत्त्व


Page 173 of 225
PDF/HTML Page 186 of 238
single page version

श्री प्रवचन रत्नो-१ १७३ छे. अचेतन तत्त्व छे. भगवान चेतन तत्त्व छे. निर्मळ तत्त्व छे... ज्ञायक स्वभावथी भरेल तत्त्व छे. ए रागने अडया विना ज्ञान पोताना भावमां रही स्वक्षेत्रमां रहीने रागने जाणे छे. पण लोको रागने जाणतां तेने जाणुं छुं. एटले स्पर्श करुं छुं एम भ्रष्ट केम थई जाय छे? आहाहाहा! छेल्ली गाथाओ..

बे वस्तु तद्न भिन्न छे. भिन्नने भिन्न अडी शकतो नथी... “बहिर लोटन्ति” ए आवी गयुं छे... आहा! ए रागथी भगवान आत्मा “बहिर लोटन्ति” .. बहार फरे छे, अने आत्माना स्वभावथी पण राग “बहिर लोटन्ति” ..

एक द्रव्य बीजा द्रव्यने अडतुं नथी. आवी चोख्खी वात छे. जमीनने अडतो नथी.. ए दाखलो आप्यो हतो ने चालवानो.. आ शरीर चाले (त्यारे) पग जमीनने अडतो नथी. अरेरे! आ वात क्यां छे? .. केमके जमीननी पर्याय अने आत्मानी पर्याय वच्चे अत्यंत अभाव छे... अत्यंत अभावमां भाव ए स्पर्श-रूपे केम होय शके?

आवुं छे...! वीतराग मार्ग.. सत्य.. कोई अलौकिक छे. सांभळवा मळे नहीं बचारा क्यां जाय? रखडपट्टी चोराशीनी.. कागडा कूतराना अवतार करी करीने मरी गयो.. जन्म.. मरण. अहींआ तो आचार्य, महाराज एम कहे छे के ‘वस्तुनुं स्वरूप तो प्रगट छे. शुं प्रगट छे? रागने स्पर्श्या विना पर द्रव्यने अडया विना ज्ञान एने जाणे एवुं वस्तुनुं स्वरूप तो प्रगट छे. आहाहाहा! समजाय छे? भाषा तो सादी छे.. भाव ऊंडा छे. आहा!

आ बीडी पीवे छे एने कहे छे के बीडीने हाथ अडतो नथी. एम होठने आत्मा अडतो नथी. एम राग थयो तेने आत्मा अडतो नथी. आहा! आवुं छे!! जुओ तो खरा! द्रष्टांत दीधुं बीडीनुं दाखलो.. दाखला वगर समजाय केवी रीते? आहा!

श्रोता- आत्मा अडतो नथी तो पछी पीवामां शुं वांधो? जवाबः पीवुं क्यां रह्युं त्यां? बीडीने अडतो नथी.. होठ अडतो नथी. आत्मा होठने अडतो नथी. आवी वात छे, भाई!

जिनेन्द्र देव त्रिलोकनाथ! परमात्मानो मार्ग कोई अलौकिक छे. अत्यारे तो सांभळवा पण मळतो नथी एवी चीज थई गई छे... शुं.. थाय?

ल्यो हवे आवे छे. ‘जीव वस्तु सर्वकाळ शुद्ध स्वरूप छे, समस्त ज्ञेयने जाणे छे’ एवा अनुभवथी केम भ्रष्ट थाय छे? जोयुं? आहाहाहा! हुं रागने रागमां पेठा विना मारामां रहीने रागने जाणुं आवा स्वभावनो अनुभव एनाथी जीव केम भ्रष्ट थाय छे? के हुं रागने अडुं छुं, रागने स्पर्शु छुं. शरीरने स्पर्शुं छुं. एम रागने जाणनारो भिन्न छे एवा अनुभवथी (जीव) केम भ्रष्ट थाय छे...? समजाणुं कांई?

केवा छे जनो? अरे केवा छे ए जीवो जगत ना? “द्रव्यान्तरचुम्बनाकुलधियः” पोताना द्रव्यथी अनेरी ज्ञेय वस्तुने जाणे छे तेथी “चुम्बन” जाणे एटले स्पर्श कर्यो? एटले अशुद्ध थई गयुं? एम जीव द्रव्य जाणीने आहाहा! शरीरने, वाणीने ज्ञान जाणे छतां ज्ञान शरीर के वाणीने स्पर्श नहीं एवो तो ज्ञाननो स्वभाव छे एनाथी जनो अनुभवथी भ्रष्ट केम थाय छे? के हुं आ शरीरने अडुं छुं...


Page 174 of 225
PDF/HTML Page 187 of 238
single page version

१७४ श्री प्रवचन रत्नो-१ आहा! आ शरीरनी इन्द्रियो जे छे एने आत्मा अडतो नथी आहा! छतां अनुभवमां तो एम आवे छे के ज्ञान शरीरने के रागने स्पर्शतुं पण नथी.. पण एने ठेकाणे हुं शरीरने स्पर्शु छुं... आ शरीर सुंवाळुं छे एने हुं चाहुं छुं एवी रीते जीवने पर द्रव्य साथे चुम्बन स्पर्श केम माने छे? झीणी वात छे प्रभु, आहा! आ तो जन्म मरणना अंत लाववानी वातु छे बापु एना फळ पण केटला? अनंत आनंद आनंद! आहा!

जीव तत्त्व ज्ञान स्वरूपे शुद्ध.. ए पर तत्त्व छे जे जड शरीर, वाणी, कुटुंब, स्त्री परिवार आदि पोतामां रहीने बधाने जाणवानो स्वभाव छे छतां पण हुं आने अडुं छुं, आने स्पर्शुं छुं एम ज्ञानमां स्वरूपथी भ्रष्ट केम थई जाय छे? आहाहाहा! समजाणुं कांई?

चुंबननो अर्थ अहीं अशुद्ध कर्यो; चुंबननो अर्थ स्पर्श थाय छे. आ युवान नथी लेतां? शरीरने बाळकने.. ए होठ पण अडतो नथी त्यां एम कहे छे. आहाहाहा! आत्मानुं ज्ञान तो होठने शुं अडे? पण होठ एना बाळकने पण अडतां नथी.. आ आवी वात केमके प्रत्येक तत्त्व भिन्न छे. शरीर, वाणी, मन ए अजीव तत्त्व छे; दया-दान, व्रतना भाव ए आस्रव तत्त्व अथवा पून्यतत्त्व छे; भगान छे ते ज्ञायक तत्त्व छे. आहा! आ आवी वात छे!

ए ज्ञायक तत्त्वनुं स्वरूप ज एवुं छे के ए परने अडया वगर जाणे छे. छतां जुओ! जगतना प्राणीओ शुं शुं करे छे? आहा! अमे आ रागने जाणता रागने स्पर्शीए छीए तेथी अमे अशुद्ध थई जईए छीए. आवी आ भ्रमणा केम थई गई? समजाणुं कांई?

एक तत्त्व भिन्न तत्त्वने स्पर्शे तो बे तत्त्व एक थई जाय... भिन्न रहे नहीं.. आ तो धीराना काम छे, भाई! आ तो बहारथी कोई व्रत करे उपवास अने तप करे अने माने के धर्म थई गयो तो ए त्रण काळमां एम नथी. पण व्रतना ए विकल्प ऊठे एने पण स्पर्श्या वगर ज्ञानस्वरूपी भगवान पोतामां रही जाणे छतां आने हुं स्पर्शु छुं अडुं छुं अने तेथी हुं अशुद्ध थई जउं छुं परने जाणतां एवो भ्रम अज्ञानीने केम थई जाय छे?

बहु सूक्ष्म वात छे. समजाय छे कांई “द्रव्यान्तरचुम्बनाकुन्ताधियः” .. आकुलाधयः शुं कीधुं? परने स्पर्शीने ज्ञेय वस्तुनुं जाणपणुं कई रीते छूटे? परने हुं अडुं छुं ए केम छूटे? अथवा परनुं जाणवुं मने थाय छे तो परनुं जाणवुं थयुं ए अशुद्धता थई माटे परनुं जाणवुं केम छूटे? एम अज्ञानी भ्रम करे छे. आहा..! समजाणुं कांई?

एने घणे ठेकाणेथी पाछो वाळवो पडशे. आहा..! आ कांई वातोथी वडा थाय एम नथी..! वडामां जेम अनाज-तेल-घी जोईए एम आ माल छे अंदरनो.

चेतन तत्त्व छे ए अचेतन तत्त्वने केम अडे? अचेतन ए तो जड तो ठीक पण राग ए पण अचेतन छे एने केम अडे? आहाहा! एटले के एने केम स्पर्श? एटले के ज्ञानने एम थई जाय के राग ने जाणुं छुं. एटले हुं एने स्पर्शुं छुं. एटले एनुं ज्ञान मने थाय एटले अशुद्ध छुं एटले एनुं ज्ञान छूटे तो हुं शुद्ध थाउं.. ए भ्रम छे. समजाय छे कांई?

अहीं तो हजु परनी दया पाळुं तो धर्म थाय.. अरर! काळा केर करे छे ने! आत्माने हणी नाखे


Page 175 of 225
PDF/HTML Page 188 of 238
single page version

श्री प्रवचन रत्नो-१ १७प छे.. मरण तुल्य करे छे, कळश टीकामां आव्युं हतुं.

जगत हणाय छे एम आव्युं हतुं. अहीं तो पोते मरण तुल्य थई जाय छे. पोते पोताने मरण तुल्य करी नाखे छे. एटले के जाणे हुं ज्ञान दर्शन आनंद स्वभाववाळी चैतन्य जागती ज्योत छुं एम नथी मानतो. ए तो जाणे हुं रागने करुं छुं ने रागने स्पर्शु छुं. एणे जीवना स्वरूपने मरणतुल्य करी नाख्युं.. जाणनार देखनार (एवो) स्वभावने एणे हणी नाख्यो. आहाहाहा!

परने तो हणी शकतो नथी.. आहा! पण पोताने व्यवहार रत्नत्रयनो राग आवे एने हुं अडुं छुं. ए तो ठीक पण वळी एम माने के व्यवहार रत्नत्रयथी मने निश्चयनो लाभ थाय छे.. अरे प्रभु! तुं ज्ञान अने आनंदनो धणी छो... (एवो) तने रागना विकारथी अविकारनो लाभ थाय? अविकारी तुं छो तो एमांथी अविकारीनो लाभ थाय आहा! समजाणुं कांई? आवो आ धर्म!

आहीं तो एथी आगळ जईने एने जाणवुं कहे ए (माने छे के) जाणुं एटले हुं अशुद्ध थई जउं छुं.. पोतानुं जाणवुं ए तो पोतानो स्वभाव छे. पोतामां रहीने जाणी शकाय ए तो एनो स्वभाव छे. परनुं जाणवुं थयुं माटे अशुद्ध थई गयो. पर वस्तु छे ने? एने जाण्युं माटे अशुद्ध थई गयो. माटे स्वने जाणुं तो शुद्ध! अने परने छोडी दउं.. परने जाणवुं ए तो पोतानो स्व-पर प्रकाशक स्वभाव छे. एने छोडवा जईश तो तारी वस्तु छूटी जशे. आहाहाहा!

अरे! चोराशीना अवतारमां रखडी मर्यो छे अनंतकाळ! आवी भ्रमणा क्यांक क्यांक अटकवानां स्थान अनंत छूटवानुं साधन एक स्वस्वरूप! समजाणुं कांई?

एक द्रव्यमां बीजा द्रव्यनो अभाव छे. अडे कोने? अत्यंत अभाव छे. आहाहाहा! आकरुं काम! आ शरीरनो पग जमीनने अडे नहीं छतां त्यां जो कांकरी होय अने लागे तो एम देखाय आहा! लाग्युं पण नथी. कांकरी शरीरने अडी नथी. ए शरीरमां कंईक थयुं एने ज्ञान अडयुं नथी. आहाहाहा! एना तरफनो अणगमानो जरा विकल्प आव्यो एने ज्यां (ज्ञान) अडयुं नथी!

ज्ञाननो स्वभाव एवो छे ज नहीं के परने अडवुं! आहा! ए तो भगवान पोताना स्वभावमां रही अने तेनुं ज्ञान करे एम कहेवुं ए पण व्यवहार छे. ए संबंधी पोतानुं ज्ञान एने ए जाणे छे; एने स्पर्शीने जाणे छे. रागने स्पर्शीने रागने जाणतो नथी. आहाहाहा!

अरेरे मारुं शुं थशे? हुं क्यां जईश? अने शुं छुं हुं? ए तो ज्ञान स्वरूपी भगवान छे... ए क्यां जाय? ... आहाहाहा!

बेननो शब्द आवे छे ने? जागतो जीव ऊभो छे ने ए क्यां जाय? ए जाणक स्वभावी भगवान ध्रुव छे ने! ए परिणमे तो जाणवारूपे परिणमे पर छे माटे परने जाणवा माटे परिणमे छे एम पण नथी. आहा!

ए तो पोतानो स्वभाव ज स्व पर परिणति जाणवानो स्वभाव छे. ए आत्मज्ञपणुं छे. ए स्वपणुं छे. पण अज्ञानीने भ्रम थई जाय छे के हुं परने जाणुं छुं तो बहार वयो गयो... परने जाणुं छुं तो.. हुं बहार गयो एम एने थई जाय छे.

भारे वात छे, भाई! परने जाणुं छुं एम कहेवुं ए पण उपचार छे, व्यवहार छे, आहा!


Page 176 of 225
PDF/HTML Page 189 of 238
single page version

१७६ श्री प्रवचन रत्नो-१

आ आवी वात छे, भाई! चैतन्यस्वरूपी भगवान! स्व-पर प्रकाशक शक्ति हमारी तातै वचन भेद भ्रम भारी ज्ञेय शक्ति दुविधा प्रकाशी निजरूपा पररूपा भासी ए राग अने शरीर वाणी ए तो पर ज्ञेय एने ज्ञानमां पोतामां रहीने तेने जाणवुं एम कहेवाय व्यवहारथी. पण एने अडे छे अथवा एने जाणे छे माटे अशुद्ध थई गयुं. ज्ञान... ए ज्ञान बहारमां वही गयुं.. (एम नथी) आहाहाहा!

बहारने जाणे छे माटे ज्ञान पोताना स्थानथी भावथी छूटीने बहारमां गयुं. एवो अज्ञानीने भ्रम थई जाय छे. आहाहा!

श्रोता- ज्ञान सर्वगत छे ने? जवाब- सर्वगत नहीं ए तो व्यवहारथी कह्युं छे. श्री प्रवचनसारमां कह्युं छे. “अर्थो ज्ञानमां छे” एटले के एनुं ज्ञान छे त्यां एवो त्यां अर्थ छे.

श्रोता - अर्थो ज्ञानमां छे. जवाब- अर्थो ज्ञानमांछे एम कह्युं होय तो ते अर्थ संबंधीनुं ज्ञान ज्ञानमां छे.. एम कहे छे. अर्थ तो अर्थमां छे.. आहा! पंचाध्यायीमांतो कह्युं छे के (ज्ञानने) सर्वगत माने ते मिथ्याभाव छे. सर्वगत तो स्वभाव छे ४७ नयमां कई अपेक्षाए छे.. पोताने अने परने सर्वने जाणवानुं स्वरूप छे माटे सर्वगत पण परने जाणवुं... एक रीते परने जाणतां ज्ञान पोताना अस्तित्वमांथी बहार चाल्युं गयुं छे एम नथी. एक प्रदेश पण भिन्न थई शके नहीं आहा! पोताना घरमां रहीने कोई चाल्या जतां लश्करने जुए तो ए लश्करमां आंख गई नथी अने लश्कर आंखमां आव्युं नथी. घरमां ऊभो ऊभो जुए के आ बधुं नीकळ्‌युं छे... वरघोडो... हाथी.. आहाहाहा!

एम भगवान ज्ञान स्वरूपी छे ने पोतामां बेठो छे... एमां आ बधा प्रकारो जडना रागना लश्करो नीकळे ए वखते तेनो ते संबंधीनो स्वभाव ते काळे एवुं ज्ञान थवानो स्वभाव पोतानो पोताथी छे. ए अशुद्धता नथी. परने जाण्युं माटे ज्ञान बहारमां वयुं गयुं नथी. अंदरमां पेठा वगर (ज्ञान) आ बधुं ए कई रीते जाणे?

भाई...! आ अग्निने ज्ञान जाणे छे ते ज्ञान शुं अग्निमां पेठुं छे? आ अग्नि छे एम जणाय छे के नहीं? आ ८४नी सालनी वात छे. केटला वर्ष थया? .. प० वर्ष थया. राणपुरमां चोमासुं हतुं. बधा माणसो घणा आवे... नाम प्रसिद्ध खरूं ने! अन्यमतिओ पण आवे.. देरावासी आवे सांभळवा.. पण अंदरथी पोतानो पक्ष मूकवो कठण पडे. आहा! वाडामां जे पक्ष लईने ए बेठा होय एमांथी खसवुं एने आकरुं पडे.. आहा!

अहीं कहे छे.. ज्ञेय वस्तुनुं जाणपणुं कई रीते छूटे एम अज्ञानी माने छे.. जेना छूटवाथी जीव


Page 177 of 225
PDF/HTML Page 190 of 238
single page version

श्री प्रवचन रत्नो-१ १७७ द्रव्य शुद्ध थाय एवी थई छे. जेमनी बुद्धि आवे छे, तेनुं समाधान आम छे के- “यत् ज्ञानं ज्ञेयम् अवैति तत् अयं शुद्धस्वभावोदयः” जो एम छे के ज्ञान ज्ञेयने जाणे छे एवुं प्रगट छे.

ज्ञानस्वरूपी भगवान आत्मा, शरीर वाणी कुटुंब वगेरे बधा पर ज्ञेय छे, देव-गुरु-शास्त्र पण पर ज्ञेय छे अने अंदरमां राग आवे दया-दान ए पण पर ज्ञेय छे. ‘ज्ञान ज्ञेयने जाणे छे एवुं प्रगट छे. ते आ शुद्ध जीव वस्तुनुं स्वरूप छे. शुद्धस्वभावोदयः ए तो शुद्ध जीव स्वभावनुं प्रगटपणुं छे. स्व-पर प्रकाशक पणुं ए तो शुद्ध जीवनो स्वभाव प्रगट छे आहाहाहा! भारे काम आकरूं! आ तो आखो दिवस धंधामां पडयो होय जाणे आ करुं ने आ कर्युं ने... आहा! मारी नाख्यो जीवने, मरणतुल्य करी नाख्यो छे.

चैतन्य जागती ज्योत स्व-पर प्रकाशक स्वरूपमां बिराजमान छे एने परना ज्ञेयने जाणवुं ए तो एनुं स्वरूप ज छे.. ए तो शुद्ध जीवनो उदय थयेलो स्वभाव ज छे. परनुं जाणवुं ए अशुद्धता छे अने परने अडे छे तो परने जाणे छे एम नथी.

श्रोता- पर सामुं जोईने जाणे छे..? जवाब- पर सामु जोईने जाणे छे ए पोतामां पोताथी. श्रोता- त्यारे उपयोग क्यां होय छे? जवाब- उपयोग भले.. छे तो पर तरफ पण जाणे छे ते तो पोताथी पोतामां रहीने. श्रोता- उपयोगने परनो आश्रय लेवो पडे छे ने? जवाब- आश्रय फाश्रय कंई न मळे. श्रोता- परमां छे ने? जवाब- पर मां नथी. परने जाणवामां छे. झीणी वात छे. आहाहाहा! उपयोग भले विकल्पमां आव्यो छतां पण विकल्पने उपयोग जाणे छे. एवुं एनुं स्वरूप छे.

श्रोता- उपयोग परमां जाय एवो नियम नहीं? जवाब - ना. ना. श्रोता- उपयोग बहारमां.. होय.. जवाब- बहारमां नथी ए अंदरमां पोतामां छे. श्रोता- अंदरमां छे. तो मोढुं बहार छे? जवाब- ना मोढुं पण बहार नथी. मोढुं अंदर छे. श्रोता- स्व सन्मुख अने परसन्मुख.. जवाब- ए स्वसन्मुख.. द्रष्टि ध्रुव ज्ञायक उपर ज पडी छे. श्रोता- उपयोग तो अंदरमां छे. जवाब- अंदर ज छे ए भले रागादि विषय कषायमां होय छतां ए पोते जाणनारमां छे. रागमां नथी. आवुं काम छे आकरुं... आहा!

अरे! जींदगीओ चाली जाय छे... मरणने तुल्य थई जशे... मरणनो एक समय आवशे त्यां..


Page 178 of 225
PDF/HTML Page 191 of 238
single page version

१७८ श्री प्रवचन रत्नो-१ आम... छूटी जशे.. जुवान अवस्था हशे तोय छूटी जशे. आहा! आहा! ए छूटुं ज तत्त्व छे एनी साथे एक क्यां रहेलो छे. एक क्षेत्रे पण भेगुं नथी.. पोताना अने परना क्षेत्र.. आकाशनी अपेक्षाए (एकक्षेत्रावगाह) कहेवाय. शरीर अने कर्म... अरे! अहीं तो रागनुं क्षेत्र पण भिन्न गण्युं छे.. एवुं छे.. “संवर अधिकार” दया-दान-भक्तिना परिणाम थाय... भाई! ए विकल्प छे. एनुं क्षेत्र एटलुं भिन्न गण्युं छे. ए भिन्न क्षेत्रने भिन्न भावने ज्ञानमां रहीने स्वमां रहीने जाणवुं ए तो स्वपर प्रकाशक जीवनो शुद्ध उदय भाव छे. स्व पर प्रकाशक जीवनो स्वभाव छे. ए पोतानुं प्रगटपणुं छे. पोतानो ए स्वभाव छे ए उदय तो स्वभाव ज छे एम कहे छे.

ए शुद्ध स्वभावनुं ज प्रगटपणुं छे. हवे आवी वातो...! पकडाय नहीं.. बिचारां शुं करे? पछी हाल्या जाय छे... क्रियाकांडमां जोडाई जाय छे. व्रत करो ने अपवास करो ने आयंबिल करो.. धर्म थई जशे.. अरेरे! जीवने क्यांय रखडावी मार्यो छे... भ्रमणामां ने भ्रमणामां.

अहीं तो ए सिद्ध करे छे के शुद्ध जीवनो स्वभाव तो स्व-पर ने जाणवुं ए अपेक्षाए परनुं कहेवुं छे... ज्ञान ज्ञानने जाणे अने ज्ञानमां पर वस्तु जणाय छे. ए तो ज्ञान छे... अने ज्ञान सिवाय पोताना बीजा अनंतगणने जाणे.. ए पण पर-प्रकाशक छे. आहाहाहा! छतां ते ज्ञान अनंतगुणने जाणे छतां ते गुणो ज्ञानमां आवी नथी गया. आहा! आवुं छे...

श्रोता- तादात्म्य संबंध होवा छतां जुदोने जुदो रहे छे? जवाब- तादात्म्य संबंध ज्ञान अने आत्मा साथे छे.. राग.. ए संयोगी संबंध नथी एम कह्युंने ए संयोगी भाव छे. ए संयोगी भावने अडतो पण नथी.

श्रोता- रागने क्षणिक तादात्म्य कहेवाय? जवाब- ए अपेक्षाथी एनी पर्यायमां छे ने ए अपेक्षाथी बाकी परमार्थे ए संयोगी भाव छे; एनी साथे संबंध छे ज नहीं. तादात्म्य संबंध नथी एटले संबंध नथी.. एम.. त्रिकाळनी साथे संबंध नथी. पर्यायनी सत्ता.. पर्यायमां छे एने जाणतां ज्ञान रागने अडीने जाणे छे एम नहीं ए तो एनी पर्यायमां छे ते अशुद्धता बताववी होय ए माटे.

अहीं तो एनी पर्यायमां छे. तेनी पर्याय ते काळे तेने अने परने जाणे एवो पोतामां रहीने रागने जाणे एवो स्वभाव छे. ज्ञान ते वखते पण रागरूप थयुं ज नथी. आहाहाहा! समजाणुं कांई?

ए तो शुद्ध स्वभावोदयः शुद्ध जीव स्वभाव उदय एटले स्वरूप ज छे एम कहेवुं छे. आहा! भावार्थ- जेम अग्निनो दाहक स्वभाव छे. समस्त दाह्य वस्तुने बाळे छे. द्रष्टांत आपे छे. अग्निनो दाहक स्वभाव छे. ए बधी वस्तुने बाळे छे. छतां बाळतो थको अग्नि पोताना शुद्ध स्वरूपे छे. अग्निनो ए वो ज स्वभाव छे बधाने अग्नि कांई पररूपे लाकडारूपे के छाणा रूपे थई बाळ्‌युं नथी.. आहा..! बाळे छे ए पण व्यवहार छे कह्युं ने!

‘बाळतो थको अग्नि पोताना शुद्धस्वरूपे छे अग्निनो एवो ज स्वभाव छे.’ समजाववुं ते शी रीते समजाववुं? आहाहाहा! लाकडां-अडाया छाणा- अग्नि ए रूपे थाय छे... ए अग्नि पोताना स्वरूपे थई छे.. ए छाणाना आकारे छाणाना स्वरूपे नथी थई.


Page 179 of 225
PDF/HTML Page 192 of 238
single page version

श्री प्रवचन रत्नो-१ १७९

पोतानुं अस्तित्व केवडुं छे. केटलुं छे अने क्यां छे एम आंही सिद्ध करवुं छे. अग्नि पण पोताना अस्तित्वमां रहीने बाळे छे एम कहेवुं पण ए अग्निरूप थईने छे एतो.

एम परने जाणे छे ए पोताना स्वरूपे थईने जाणे छे.. पररूपे थईने जाणे छे एम छे.. नहीं.. आहाहाहा!

‘अग्नि पोताना शुद्ध स्वरूपे छे’ ... जोयुं? शुद्ध स्वरूपे एम भाषा लीधी छे. ‘अग्निनो एवो स्वभाव छे.’ ... ए द्रष्टांत.. हवे सिद्धांत.. एम जीव ज्ञानस्वरूप छे’ ... छे? जेम अग्निनो दाहक स्वभाव छे एम जीवनो ज्ञानस्वभाव छे. अग्नि जेम बधाने बाळे छे एम समस्त ज्ञेयने जाणे छे.. ओलामां बाळतो थको अग्नि पोताना शुद्ध स्वरूपे छे एम जाणतो थको (जीव) पोताना स्वरूपे छे. आहाहाहा!

सर्वज्ञ अने सर्वद्रर्शित्त्व (शक्ति) मां ए लीधुं नथी? शक्तिमां! सर्वज्ञ ए आत्मज्ञपणुं छे.. आत्मज्ञ ए सर्वज्ञपणुं छे. सर्वने जाणे छे एम नहीं... आत्मानो स्वभाव ज सर्वज्ञ छे.. ए पोते पोताने जाणे छे.. सर्वज्ञ कह्युं छतां ए आत्मज्ञ छे.. आहाहा!

झीणुं छे, भाई! शुं थाय? अनंतकाळथी जन्म मरण थाय छे एने मटाडवानो उपाय अलौकिक छे.. आहा!

चैतन्य सत्ता एटले के जेनुं होवापणुं एकलुं चैतन्यथी ज छे. जेनुं होवापणुं एकलुं चैतन्यथी छे एने पकडीने अनुभव करवो एनुं नाम प्रथम धर्मनी शरूआत छे. सत्ता एटले जेनुं होवापणुं ज्ञानपणे जेनुं होवापणुं छे. ए रागपणे के शरीरपणे जेनुं होवापणुं नथी.

एथी ए ज्ञान बधांने जाणतो थको छतां पोताना ज्ञान स्वरूपे ज थईने ए रह्यो छे. परने जाणतां परस्वरूपे थईने रह्यो छे एम नथी.

आहा! ‘एवो वस्तुनो स्वभाव छे. ज्ञेयना जाणपणाथी जीवने अशुद्धपणुं माने छे ते न मानो.’

आहा! पर संबंधीनुं ज्ञान थतां हुं परने अडी गयो छुं अथवा पर मारामां आवी गयुं छे एम न मानो.

हवे आवी व्याख्या! झीणी! हें! बहु आकरुं पडे... संप्रदायमां तो बस जाणे व्रत अने तप- भक्ति, पूजा... यात्रा बात्राने जाणे धर्म, आ वळी पोषा अने सामायिक... दया... पडिक्रमणां.. बधी रागनी क्रियाओ छे.

ए वखते राग थयो पण कहे छे के जीवनो स्वभावतो जाणवुं ज छे, ए राग काळे पण जीव रागने अने पोताने जाणे छे... आ तो जीवनो स्वभाव छे. ए तो शुद्धजीवनुं स्वरूप ज छे. आहाहाहा!

परनुं करवुं ए तो न मळे; पण रागनुं करवुं ए पण न मळे; पण रागनुं जाणवुं ए पण रागमां जईने जाणे एम पण नथी. आहाहाहा!

आवो आ मार्ग! वीतराग परमेश्वर! जिनेन्द्र देव... गणधरो अने इन्द्रोनी वच्चेनो आ त्रिलोकनाथनो पोकार छे. आहा! मार्ग आ छे. भाई! ते सांभळ्‌युं न होय माटे कांई बीजी चीज थई जाय?


Page 180 of 225
PDF/HTML Page 193 of 238
single page version

१८० श्री प्रवचन रत्नो-१

श्रोता- ज्ञान रागने तो न जाणे पण ज्ञान निर्मल पर्यायने पण न जाणे? जवाब- पर्याय पोताने जाणे छे ए तो स्वनी छे ने! श्रोता- पर्याय द्रव्यने क्यां अडे छे? जवाब-पोताने जाणे छे. पर्याय पर्यायने जाणे छे. अनंती पर्यायोने जाणे छे. पण ए अनंती पर्यायोने अडीने जाणतो नथी.

झीणुं बहु! आहा! ज्ञाननी एक ज पर्याय एटली ताकातवाळी छे के एक ज पर्यायमां छ द्रव्यना गुण पर्याय जणाय अने पोताना त्रिकाळी द्रव्य गुण पर्याय जणाय एवी एक समयनी पर्यायनी ताकात छे; ते पर्याय परने तो अडती नथी... आहाहाहा! .. एथी आगळ अहीं नथी कहेवुं... पण ए पर्याय द्रव्यने पण अडती नथी. अहीं तो परनी अपेक्षानी वात छे. पर्याय जो द्रव्यरूपे थई जाय तो ए एक समयनी छे.. ने वस्तु त्रिकाळ छे. आहा! त्रिकाळने अडीने पर्याय काम करती नथी केमके बे वच्चे पण अभाव छे; अतत् भाव! प्रवचनसारमां छे. जे पर्याय भाव छे ते द्रव्यमां अतत् भाव छे; द्रव्यभाव छे ते पर्यायमां अतत्भाव छे. पर्यायमां स्वपर जाणवानो स्वभाव स्वतः छे.. एमां रागने अने शरीरने जाणवुं एथी मारुं ज्ञान भ्रष्ट थई गयुं के परमां वयुं गयुं एम.. न.. थी.. ए अज्ञानीनी अनादिनी भ्रमणा छे. जीवनो ज्ञान स्वभाव छे ते दया विकल्पनुं करवुं एवुं एनुं स्वरूप नथी. पण तेने जाणवुं अडीने एवुं पण एनुं स्वरूप नथी. एनाथी भिन्न रहीने पोताने जाणतां ए जणाय जाय छे, ए तो जीवनो स्व-परनो ज्ञाननो उदय छे.. जीवनो.. आहाहाहा...! समजाणुं कां... ई...?

ए तो स्व-पर प्रकाशमय ज्ञाननुं अस्तित्व छे. ए ज्ञाननुं अस्तित्व छे.. ए रागनुं अस्तित्व नथी. समजाणुं कांई?

श्रोता- ज्ञानमां परनो प्रतिभास.. थाय.. जवाब- प्रतिभास थाय ए भाषा व्यवहार छे. श्रोता- ज्ञानने कारणे ए थाय छे...? जवाब- नहीं! नहीं! प्रतिभास थाय ए भाषा व्यवहार छे. पण जेवुं त्यां स्वरूप छे एवुं ज्ञाननुं ते काळे पोताथी जाणवुं थई जाय एवुं एनुं स्वरूप छे.

श्रोता- त्यारे स्वच्छत्त्व शक्तिनुं केवुं... जवाब- ए पण एवुं ज ए पण पोते पोताने पूर्ण जाणे छे. द्रष्टांत पण शुं करे? दर्पणनो दाखलो आपीने कह्युं छे. स्वच्छत्त्व शक्तिमां छे. पण दर्पणमां जे कोई चीज जणाय छे... ए दर्पणनी थई नथी. अहीं अग्नि छे... ए दर्पणमां जणाय छे तो दर्पणमां जणाय छे ए शुं अग्नि छे? ए तो अरीसानी स्वच्छता छे. अग्निने हाथ लगाडता उष्ण लागे छे.. एवी अग्नि छे शुं त्यां? ए तो अरीसानी अवस्था छे... (अरीसाने) हाथ लगाडतां त्यां शुं उष्ण लागे छे? आहा! आवुं झीणुं छे.. आ बधुं अंदर जाणवुं पडशे हों! .. ए चोराशीना अवतार करी करीने मरी गयो छे. आ जाणवानी ए. बी. सी. डी. छे... ककको छे... आ


Page 181 of 225
PDF/HTML Page 194 of 238
single page version

श्री प्रवचन रत्नो-१ १८१

शुं कह्युं? जोयुं? ‘जाणतो थको पोताना स्वरूपे छे- एवो वस्तुनो स्वभाव छे. ज्ञेयना जाणपणाथी जीवने अशुद्धपणुं माने छे. ते न मानो’ ज्ञेयना जाणपणाथी जीवने अशुद्धपणुं माने छे ते न मानो’ ... आहाहा! ‘जीव शुद्ध छे.’

विशेष समाधान करे छे. कारण के “किम् अपि द्रव्यान्तरं एक द्रव्यगतं न चकास्ति।” जुओ “कोई ज्ञेयरूप पुद्गल द्रव्य अथवा धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय, आकाशद्रव्य, काळद्रव्य शुद्धजीव वस्तुमां एक द्रव्यरूपे परिणमे छे एम शोभतुं नथी.”

आहाहा! बीजां छ द्रव्यो शुद्ध जीव वस्तुमां एक द्रव्यरूपे आवे छे एम नथी. जीव समस्त ज्ञेयने जाणे छे पण ज्ञान (तो) ज्ञानरूप छे. आहाहाहा! ज्ञान ज्ञानरूप रहीने ज्ञान जाणे छे एम कहेवुं ए ज्ञानरूप छे एनुं! बधाने जाणे छे पण ए तो ज्ञाननुं रूप छे. ए तो जीवनुं स्वरूप छे. समजाणुं कांई? आज तो झीणुं बहु आव्युं बधुं हो! आवुं सांभळवुं तो मळे बापा!

लोको माने के न माने, पण वस्तु स्थिति आ छे. आहा! परम सत्यनो पोकार प्रभुनो.. तो.. आ छे आहा!

अहीं तो त्यां सुधी (कहे छे) के रागना अस्तित्वमां तारुं ज्ञान गयुं माटे.. अस्तित्व अग्निमां जईने जाणे छे. (एम नथी)... तारा ज्ञानमां रहीने ते अग्निनुं स्वरूप आम छे एवुं जणाय छे ते तारा ज्ञानमां रहीने जणाय छे. पोताना अस्तित्वमां रहीने जणाय छे. परनुं अस्तित्व तो तेमां कदी आवतुं नथी, पर संबंधीनुं ज्ञान... ए पण खरेखर पोतानुं ज्ञान छे, पर संबंधीनुं नथी. आहाहाहा! समजाणुं कांई?

पाछळना आ श्लोको बहु झीणा छे. भाषा साधारण छे पण भाव घणां... उंडा छे. हवे आमां चर्चा कोनी साथे करवी? ए आव्या हता ने.. चंद्रशेखर... “चर्चा करीए” ... श्वेतांबर... जीवा प्रतापनो भत्रीजो... दीक्षा लीधी छे श्वेतांबरनी... कहे “आपणे चर्चा करीए” कह्युं के भाई! अमे तो चर्चा करतां नथी, बापु...! शुं कहीए? आहा! “तमे सिंह छो, तो अमे सिंहना बच्चा छीए. हुं सिंह छुं एवुं तो में कीधुं नथी.. एम एणे एम कीधुं हतुं... पछी छेवटे उभां थतां बोल्या के “आ चश्मा वगर जणाय?”

चश्मानुं अस्तित्व भिन्न छे अने जाणनारनुं अस्तित्व भिन्न छे... ए चश्माथी जाणे छे एम छे नहीं. ए तो ज्ञानना अस्तित्वथी जाणे छे जीवा प्रताप, हमणां गुजरी गया, क्रोडपति शेठ हता, आ भत्रीजाए दीक्षा लीधी... लींबडी आव्या हता. तमे हता त्यारे त्यां चर्चा करवा आव्या हता. रामविजयने मोकल्या हता त्यां जामनगर घणां मास पहेला चर्चा... “लोकोनुं अहित थाय छे के आ व्रत-तप अने भक्तिथी धर्म नथी.. मोटी गलती ऊभी थाय छे. भाई! मार्ग तो आ छे, बापु! तमने खोटुं लागतुं होय तो न मानो तमे, बाकी वस्तु तो आ छे.

बाकी आनाथी विरुद्ध माने छे ए जुठ्ठो छे माटे अमारे चर्चा कोनी साथे करवी? आहाहाहा.


Page 182 of 225
PDF/HTML Page 195 of 238
single page version

१८२ श्री प्रवचन रत्नो-१

अहीं तो त्यां सुधी लई गया के जे काळे जे प्रकारनो.. ए तो व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान एम आव्युं छे ने? एनो अर्थ पछी करशे. जे काळे जे राग आवे दया-दान-व्रतादिनो ते प्रकारनुं ज ज्ञान अहीं पोताने स्व-पर प्रकाशकना सामर्थ्य...

ने लईने ए राग आव्यो एने कारणे नहीं. ए काळे आनो स्वभाव पर्यायमां स्व-पर प्रकाशक आनो अने आनो बन्नेनुं जेटलुं स्वरूप छे तेवुं जाणवानी पर्याय प्रगटी.

श्रोता- पर संबंधीनुं पोतानुं ज्ञान जवाब- ए पर संबंधीनुं कहेवुं ए व्यवहार छे. ए पण नहीं.. ए पोतानुं छे. श्रोता- ज्ञानमां आव्युं तो परनो संबंध क्यां गयो? जवाब- कोणे कीधुं तमने? खबर नथी...! .. पर छे एटला संबंधनुं स्वरूप पोतामां जाणवानी शक्ति छे तेथी पोतामां जाणे छे. लोकालोकने जाणे छे ए लोकालोकने लईने नहीं आहाहा!

ए ज्ञाननी पर्यायनुं एटलुं सामर्थ्य छे के “स्व-पर प्रकाशक” ए स्वस्वरूप ज छे.. स्व ज्ञेय एटलुं एनुं स्वरूप छे. आहा! समजाणुं?

बधुं झीणुं पडयुं आजे. कलाक थयो. आ अधिकार एवो छे... गाथा एवी छे! समय समयनो पर्याय एवडो छे. त्रिकाळ तो ध्रुव छे... पण अहीं पोतानी पर्याय प्रगट थाय छे ए जेटलुं सामे ज्ञेयनुं प्रमाण छे एटला प्रमाणमां ज्ञाननी पर्याय पोतामां पोताथी प्रगट थाय छे. पूरी प्रगटे छे त्यारे आ प्रश्न (रहेतो) नथी. समजाणुं कांई? आहा! जे समयमां जे ज्ञेय सामे छे तेटला प्रमाणमां ज्ञाननी पर्याय पोताथी पोतामां स्व-पर प्रकाशरूप स्वथी प्रकाशे छे.

आवुं छे आ! एक अक्षर (जो) फरे तो बधुं फरी जाय... आहा! आ वात हती ज नहीं. एटले लोकोने नवीन लागे. आ जाणे बधो नवो धर्म काढयो? नवो नथी, बापु! अनादिनो तुं छो.. तो स्वपर प्रकाशनुं सामर्थ्य स्वथी-पोताथी-पोतामां अनादिनुं छे.

ए चेतन.. चेतन.. चेतन.. चेतन...! ए अचेतनने जाणे एम कहेवुं ए पण व्यवहार छे. अचेतनमां राग अने शरीर बधुं अचेतन आवी गयुं. आहा! अने तेना संबंधीनुं तेटलुं ज ज्ञान ए ज्ञेय जेटलुं छे एटलुं ज्ञान अहीं स्व-पर प्रकाशन एने लईने प्रगटयुं छे एमे य नथी.

ते समयनो एनो स्व-पर प्रकाशनुं जेटलुं सामर्थ्य छे तेथी ए प्रगटयुं छे ते स्व छे. आहा! आहाहाहा!

पकडाय एटलुं पकडवुं, बापु! तारी लीला तो अपार छे. आ कोई पंडिताईनी चीज नथी. आ तो अंतरना स्वभावना नादनी चीज छे.


Page 183 of 225
PDF/HTML Page 196 of 238
single page version

श्री प्रवचन रत्नो-१ १८३

श्रोता- आ भणतर जुदी जातनुं छे. वात साची छे... आहाहा...! एटली वात काने पडे छे एय भाग्यशाळी छे ने! आवी आ वात! परमात्माना श्रीमुखेथी नीकळेली वात छे... समजाणुं कांई? क्यांय आ नथी... प्रभु! तुं कोण छो? क्यां छो? केवो छो? समये समये तुं केवडो छो? ए पर जे ज्ञेय छे एटलुं ज अहीं ज्ञान थाय.. अने स्वनुं (पण) ज्ञान थाय तेवडो ते समये एवडी पर्याय तारी छे.. (ए) ताराथी आहा!

श्रोता- आजे तत्त्वनी बहु मजा आवी... जवाब- आ श्लोक एवो छे. ए वधारे तो अहीं “चुम्बन” मांथी आव्युं “चुंबन” छे ने! एनो अर्थ करी नाख्यो “अशुद्धगुण” पण चुम्बननो अर्थ स्पर्शवुं छे. ए त्रीजी गाथामां कर्यो ने! के पोताना द्रव्य-गुण-पर्यायने ए स्पर्शे छे परने स्पर्शतो नथी. एनो आ बधो विस्तार छे. आहाहाहा!

आ तो ज्ञानस्वरूपी भगवान... ज्ञानमां ठरे एनी वातुं छे, बापा! जेवी जेनी सत्ता एटले होवापणे छे तेमां ते ठरे... आहाहाहा! समजाणुं कांई?

ए वस्तु छे. ‘जीव वस्तुमां एक द्रव्यरूपे परिणमे छे एम शोभतुं नथी.’ रागरूपे आत्मा परिणमे छे के आत्मा रागरूपे थाय छे के ज्ञेय आत्मापणे थाय छे एम शोभतुं नथी. आहा! ‘जीव समस्त ज्ञेयने जाणे छे, ज्ञान ज्ञानरूप छे, ज्ञेय वस्तु ज्ञेयरूप छे; कोई द्रव्य पोतानुं द्रव्यत्त्व छोडीने अन्य द्रव्यरूपे तो नथी थयुं... एवो अनुभव कोने छे ते कहे छे. आहाहा! “शुद्धद्रव्यनिरूपणापित्तमयेः” समस्त विकल्पथी रहित शुद्ध चेतनामात्र जीव वस्तुना प्रत्यक्ष अनुभवमां स्थाप्युं छे बुद्धिनुं सर्वस्व जेणे एवा जीवने.

‘निरूपण’ एटले प्रत्यक्ष अनुभव. आहाहा! जोयुं कथन छे एनुं वाच्य छे एने अहीं लीधुं पछी. ‘निरूपण’ वाच्य छे एने निरूपण शब्दथी कह्युं आहाहा! एवा जीवने आ होय छे. आवो अनुभव एने होय छे एम कहेवुं छे अहीं... आहाहाहा..!

जेणे भगवान आत्मा ज्ञान स्वरूपी.. एमां बुद्धिने स्थापीने ज्ञाननो अनुभव कर्यो एने आ वात होय छे. अज्ञानीने ए वात होती नथी. चाहे तो साधु थयो होय पांच महाव्रत पाळतो होय पण अज्ञानी छे एने आ वात शोभती नथी... एने होती नथी.

‘सत्ता मात्र शुद्ध जीववस्तुने प्रत्यक्ष आस्वादे छे. जोयुं? “तत्त्वंसमुत्पश्यतः” सम्यक्प्रकारे उग्रपणे पश्यतः आस्वादे छे. एवा जीवने आहाहाहा! आवा जीवने आ होय छे. वस्तुनुं स्वरूप जेवुं छे एवुं एने प्रगट छे.. के परने जाणतां परमां ज्ञान गयुं नथी... परथी ज्ञान थयुं नथी.

जीव समस्त ज्ञेयने जाणे छे,... समस्तज्ञेयथी भिन्न छे एवो स्वभाव सम्यग्द्रष्टि जीव जाणे छे. ल्यो... प्रमाण वचन गुरुदेव.