Page 184 of 225
PDF/HTML Page 197 of 238
single page version
१८४ श्री प्रवचन रत्नो-१
हवे सम्यग्द्रष्टि स्वने अने परने प्रमाणे जाणे छे.
ण दु एस मज्झ भावो जोगणभावो हु अहमेकको।। २९९।।
आ छे नहीं मुज भाव, निश्चय एक ज्ञयक भाव छुं. १९९
जीणी वात छे भाई... निर्जरा अधिकार छे ने! निर्जरा एटले शुद्धि स्वरूप जे शुद्ध छे... पूर्ण शुद्ध स्वरूप छे.. पूर्ण अतीन्द्रिय आनंदनो महासागर छे. एवा आत्माने अंतरमां द्रष्टि अंतर्मुख करी अने एनुं वेदन सम्यग्दर्शनमां अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन आवे एने अहींआ सम्यग्द्रष्टि कहे छे. आहा!
एने निर्जरा होय छे. निर्जरा तत्त्वनी.. वात त्रण प्रकारे कर्मनुं खरवुं एने निर्जरा कहे छे.. अशुद्धतानुं टळवुं एने निर्जरा कहे छे ए एक शुद्धनुं वधवुं.
वीतरागमार्ग कोई अलौकिक छे भाई! काले कोईक कहेतुं हतुं के आ वर्षाद खेंचाणो छे ने तो बार-चौद ढोर मरी गया घास वगर कहो! आवा अवतार! आम तो अगीयार इंच वर्षाद आवी गयो छे. घास थोडुं हतुं ए बधुं खवाई गयुं... बार-चौद ढोर घास वगर मरी गया. आवा अवतार तें अनंतवार कर्या छे... एक आत्मज्ञान विना बाकी बधुं कर्युं छे. दया-दान-व्रत-भक्ति-पूजा आदि कर्या छे.. ए संसार छे.
अहींया तो सम्यग्द्रष्टि.. जेने आत्मा चैतन्य रत्नाकर, महाप्रभु अनंत शक्तिओथी बिराजमान, काले कह्युं हतुं के एक आत्मामां एटली शक्तिओ एटले स्वभाव एटले गुणो एटला छे के अनंता मोढां करीए- मुख करीए- एक एक मुखमां अनंती जीभ करो तो पण कही शकाय नहीं. आहा! प्रभु! एने खबर नथी. बहारनी बधी वातोमां अने भीखमां.. पोताथी विशेष जाणे बहारमां छे एम लाग्युं छे एटले अटकी गयो छे. पोतानी अंदर विशेष कोई जुदी चीज छे... आहा! एना तरफ एणे कदी नजर करी नथी. ए आंही कहे छे.
सम्यग्द्रष्टि जीव.. सम्यक् नाम सत्य- जेवुं होय तेवुं पूर्ण स्वरूप.. केवुं? अनंत मुखथी अने एक एक मुखमां अनंत जीभे एना गुण कहेवा जाय तो पण गुणनी संख्या एटली छे के कही शकाय नहीं! आहाहाहा! रात्रे कह्युं हतुं. एवो आ भगवान आत्मा शरीर ए तो माटी छे ए पर छे... जगतनी चीज छे.. कर्म अंदर छे ए जड छे, पर छे. एनुं तो आत्मामां असत्पणुं छे स्वमां सत्पणुं छे अने परनुं तेमां असत् पणुं छे.
हवे एमां रखडे छे केम? आटली आटली शक्तिओ पडी छे. आहा! ए अनंत गुणोनी संख्या कही शकाती नथी, एवो आ भगवान आत्मा एणे सम्यक् एटले जेवुं सत्यस्वरूप छे एवी अंतरद्रष्टि
Page 185 of 225
PDF/HTML Page 198 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १८प अनुभव करीने करी छे ते अहींआ सम्यग्द्रष्टि कहे छे. आहाहाहा! टीकाः
नीचे गुजराती आवी गयुं छे.
आ छे नहीं मुज भाव, निश्चय एक ज्ञायक भाव छुं. १९९
आहा! आंही सुधी पहोंचवुं! ... खरेखर राग नामनुं पुद्गल कर्म छे.. जड.. चारित्रमोह.. जड तेना उदयनो विपाक.. ए कर्म सत्तामां पडयुं छे अजीवपणे पण एनो उदय आव्यो ए पण एक अजीव छे. आहाहा! भगवान अनंतगुणनो नाथ! शुद्धरस! चैतन्य रत्नाकर प्रभु! एनी पर्यायमां कर्म जड छे तेना निमित्ते... पुरुषार्थनी कमजोरीथी राग थाय.. परथी नहीं ए कर्मथी नहीं.. कर्म तो जड छे.. एने तो आत्मा अडतो पण नथी; कोई दिवस अडयो पण नथी. आहा! भगवान आत्मा शरीर, वाणी, कर्म एने अनंत अनंतकाळमां कदी अडयो पण नथी. केमके ए चीजनी जे चीजमां नास्ति छे एने अडे शी रीते? आवो जे भगवान आत्मा अनंतगुण रत्नाकर एनुं जेने जेवुं छे एवुं सम्यक् प्रतीत ज्ञान थईने वर्तमान ज्ञाननी पर्यायमां एने ज्ञेय बनावीने स्वस्वरूपने ज्ञेय बनावीने ज्ञान करीने प्रतीत थाय छे एने अहींया भवना अंतनी पहेली सीडी सम्यग्दर्शन कहे छे. ते विना भवनो अंत प्रभु नथी आवतो.
बहारनी अनेक प्रकारनी क्रियाओ दया-दान-व्रतादि-संसारनी तो शुं वात करवी? एनी झंझाळमां तो एकलो पाप छे. आखो दिवस पाप अने बायडी छोकरांओने साचववां एनी साथे रमवुं. ए पाप! धर्म तो क्यां छे बापा? पुण्यना पण ठेकाणा नथी आहा!
अहीं तो कहे छे के धर्मी तो एने कहीए के जेने आत्मानो पूर्ण स्वभाव.. एनी जेने ज्ञान थईने प्रतीति थई छे.. एमने एम प्रतीति नहीं. ज्ञानमां चीज आवी छे के आ चीज आ छे, पूर्ण आनंद अने पूर्ण शक्तिनो संग्रहालय, शांत प्रभु, एवुं जेनुं परम सत्यस्वरूप छे एवो जेणे अंतरमां ज्ञाननी पर्यायमां जाणीने प्रतीत करीने शांतिनुं वेदन कर्युं छे.. एने अहींया सम्यग्द्रष्टि कहे छे. एने अहींआ धर्मनी पहेली सीडी धर्मनुं पहेलुं पगथियुं कहे छे.
एवो जे जीव ते खरेखर राग नामनुं पुद्गल कर्म छे तेना उदयना विपाकथी सत्तामां पडयुं छे ए नहीं. एनो उदय आवतां एनो पाक थयो उदयथी उत्पन्न थयेलो राग एटले निमित्तना लक्षे वश ए कर्मनो जे उदय छे ते निमित्त छे. एना लक्षे एना वशे.. एनाथी नहीं... जे कंई राग थयो आहाहाहा! ... छे? ...
विपाकथी उत्पन्न थयेलो आ राग भाव छे... जोयुं...? शुं कीधुं ई? आ तो सिद्धांत छे आ कंई वार्ता नथी. प्रभु! अरे! एणे आ कदी कर्युं नथी. एने पोतानी दया आवी नथी. अरे! हुं क्यां रखडुं छुं? कई योनिमां क्यां हुं? मारी कई जात.. अने क्यां आ रखडवानां स्थान..! हुं एक
Page 186 of 225
PDF/HTML Page 199 of 238
single page version
१८६ श्री प्रवचन रत्नो-१ आनंदनो बादशाह.. अनंत गुणनो धणी.. ए तो आ एकेन्द्रिय अने बेइन्द्रियमां रखडे..!
एवुं जेने अंदर भान थयुं छे के हुं तो चैतन्यस्वरूप आनंद छुं... ज्ञायक छुं.. हुं तो एक जाणनार देखनार छुं. एनी साथे अनंता गुणो वणायेला छे. जाणवा देखवानी साथे अविनाभावे अनंतानंत गुणो साथे पडया छे. झीणी वात छे, प्रभु!
‘एवो जे हुं एमां आ जे राग थयो ए मारो स्वभाव नथी’ अंदर जरा दयानो-दाननो- व्रतनो-पूजानो अने भक्तिनो भाव आव्यो ए राग छे हिंसा-जूठ-चोरी विषयनो राग ए तो तीव्र छे एनी तो शुं वात करवी? ए तो झेरना प्याला छे. आहा! अहीं तो दया-दान-व्रत-भक्तिनो राग आव्यो तो सम्यग्द्रष्टि जीव... जेने सत् स्वरूपनी द्रष्टि थई छे... पूर्णानंदनो नाथ परम स्वभाव जे पारिणामिक भावे सहज स्वभावे ज अनादिथी छे ए त्रिकाळ निरावरण छे.. त्रिकाळ अखंड छे.. एक छे.. अविनश्वर छे एवो जे भगवान आत्मा एनी ज्यां प्रतीत थईने अनुभव थयो छे ए एम कहे छे के आ राग छे ए मारो नहीं.
जे भावे तीर्थंकर गोत्र बंधाय ए भाव पण मारो नहीं. एमां हुं नहीं. ए हुं नहीं ए मारामां नहीं आहाहा! आटली शरतोनुं सम्यग्दर्शन छे.
दुनिया.. तो क्यां.. क्यां.. बेठी छे. आगळ छापामां आव्युं छे ने? मोरारजी गंगामां नाह्या वीस मिनिट ‘स्थितप्रज्ञ छे’ एम लख्युं छे, अरे! भगवान! बापु.. स्थितप्रज्ञ कोने कहे.. जे ज्ञान वास्तविक पूर्ण स्वरूपमां ठरे एने स्थितप्रज्ञ कहे छे. आहा!
ए जीवने राग जरी देखवामां आवे... पोतानी पर्यायनी नबळाईथी.. हवे अहीं कोई एम लई ल्ये के कर्मना विपाकथी आ राग थयो छे, एनां जडनो उदय आव्यो माटे राग थयो छे एम नथी. जडने तो चैतन्य कदी अडयो पण नथी. राग छे ते जड कर्मने पण अडयो नथी. कर्मनो उदय छे ते राग अहीं थयो तेने अडयो नथी. अहीं तो एम कहे छे के ने मने पण (राग) अडयो नथी एवो हुं छुं.. छे?
ए रागरूपभाव छे.. छे एटले अस्ति छे हुं त्रिकाळी अस्ति छुं.. अने पर्यायमां राग आव्यो छे. ए रागनुं अस्तित्व छे. पण (ए) मारो स्वभाव नथी. ए मारुं स्वरूप नथी.. मारो स्वभाव... स्व... स्व.. स्व.. भाव ए नहीं.. ए विभाव छे विकार छे पर छे. मारा स्वरूपमां तेनी नास्ति छे. एना स्वरूपमां मारी नास्ति छे.
आवो मारग छे, बापु! लोको एकांत कहीने उडावी दे छे.. करो करो बापु! मारग तो आ छे. त्रण लोकना नाथ अनंत तीर्थंकरोनी ध्वनि आ छे अवाज आ छे.
कहे छे के धर्मनी जेने द्रष्टि थई छे, धर्म एटले? आत्माना अनंत गुणो ए धर्म अने आत्मा एनो धरनारो धर्मी.. एवा अनंत गुणोरूपी धर्म एनी जेने द्रष्टि थई छे. तो पर्यायमां पण अनंत धर्म अने अनंती शक्तिनो अंश बहार आव्यो. प्रगट थयो छे. जेवी रीते द्रव्य अनंतगुणनुं एकरूप जेवी रीते संख्याए गुण अनंतरूप एवी एनी प्रतीति करतां पण अनंतगुणनी जेटली संख्या छे तेनो एक अंश प्रगट थयो छे.. अनंतनो अनंत अंश प्रगट व्यक्त थयो छे; आम सम्यग्दर्शन थतां थाय छे. आहा! त्रणेय एक थाय छे.. एटले?
Page 187 of 225
PDF/HTML Page 200 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १८७
द्रव्यमां अनंत गुणनुं एकरूप द्रव्य, एना अनंतगुणो, एवा जे धर्म मूळ छे तेनो धरनार धर्मी द्रव्य छे. तेनी ज्यां अंतरद्रष्टि थाय छे तेनी रागनी पर्यायनी द्रष्टि उडी गई छे.. आहा! एने आ राग छे ए मारो स्वभाव नहीं. जे भावथी तीर्थंकर गोत्र बंधाय ए भाव पण अपराध छे. आहाहाहा! परनी दयानो भाव आवे ए अपराध छे. ए दोष छे.. ए मारो स्वभाव नथी. धर्मी एम जाणे छे के ए मारुं स्वरूप नथी.
अहाहा! भाई! वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा एनो मार्ग कोई अलौकिक छे. ए सिवाय बीजे क्यांय छे नहीं. आहा! एवो जे प्रभु आत्मा! कहे छे के ए पंच महाव्रतनो राग आव्यो... भगवाननी भक्तिनो (राग) आव्यो. दयानो (राग) आव्यो. ए मारो स्वभाव नथी. धर्मी तो एम जाणे छे के मारा सत्मां तेनुं असत्पणुं छे. मारामां ए नथी. समजाय छे कांई? मार्ग झीणो बापु!
नरकना अने निगोदना दुःखो.. जेम गुणोनी संख्यानो पार न मळे.. एम आ दुःखोनुं वर्णन पण करोड भवे.. करोड जीभे न कहेवाय बापु!
एवा जे गुणो छे एनी उलटी दशा जे दुःख.. ए दुःख पण करोड भवे अने करोड जीभे पण न कही शकाय एवा दुःख (एणे) वेठया छे, बापा! नरकना निगोदना एमांथी छूटवानो तो मारग आ एक छे एना तरफनुं वलण तो कर! अहाहा! हुं एक पूर्णानंदनो नाथ पूर्णस्वरूप एवी जे अंतर द्रष्टि थतां रागनो एक कण पण मारुं स्वरूप अने स्वभाव नहीं.. ए मारामां नहीं.
एने उदयमां राग थयो ए निर्जरी जाय छे. अल्पबंध थाय छे ए वात गौण छे. खरेखर निर्जरी जाय छे एम कहेवुं छे, ए मारो स्वभाव नथी. “हुं” तो केम के ए छे अने हुं पण छुं.. हुं तो आ चैतन्य प्रत्यक्ष बतावे छे ‘आ’ एटले ए प्रत्यक्षपणुं बतावे छे. कहेता नथी के ‘आ’ माणस आव्यो. ‘आ’ एटले एनुं विद्यमानपणुं बतावे छे प्रत्यक्ष ‘आ’ आत्मा एम ज्ञानमां एनुं प्रत्यक्षपणुं जणाय छे. आ आवी वात छे. सांभळवी पण मुश्केल पडे..! एने अंतरमां उतारवुं ए तो कोई अलौकिक प्रसंग छे. दुनिया साथे मेळ खाय एवुं नथी. ‘हुं तो आ प्रत्यक्ष अनुभव गोचर. हुं तो आ प्रत्यक्ष अनुभव गोचर. हुं तो ज्ञानना प्रत्यक्ष वेदन अनुभव गोचर छुं. हुं परोक्ष रहुं एवुं मारुं स्वरूप नथी.. आहा!
४७ शक्तिनुं वर्णन ज्यां छे एमां एक ‘प्रकाश’ नामनो गुण लीधो छे. तो ए प्रकाश नामना गुणने लईने गुणी एवा भगवान आत्माने ज्यां सम्यक् अनुभवमां लीधो तो एने पर्यायमां स्वसंवेदन स्व एटले पोतानुं सम्-प्रत्यक्ष वेदन थाय तेवो ज एनो गुण छे. आहाहाहा! समजाणुं कांई?
‘हुं तो आ प्रत्यक्ष अनुभव गम्य टंकोत्कीर्ण.. एवोने एवो.. अनंतकाळ वीती गयो छतां मारा द्रव्यमां घसारो लाग्यो नथी. आहा! निगोद अने नरकमां अनंतवार रह्यो पण मारा द्रव्य अने गुणमां कांई हीणप अने घसारो थयो नथी. आहा! एवो मारो प्रभु एक ज्ञायकभाव छुं.
विकल्पना अनंत प्रकारना भाव आवे घणा प्रकारना- संक्षेपमां असंख्यात छे- विस्तारमां अनंत प्रकार छे.. पण वस्तु हुं छुं ए तो एकरूपे छुं. आहा! हुं एक ज्ञायक भाव टकोत्कीर्ण.. हुं तो जाणक स्वभाव-जाणक स्वभाव-जाणक स्वरूप एवुं तत्त्व ते हुं छुं. ए राग तो हुं नहीं पण पर्याय जेटलो
Page 188 of 225
PDF/HTML Page 201 of 238
single page version
१८८ श्री प्रवचन रत्नो-१ पण हुं नहीं.. राग छे एने जाणे छे ए राग ज्ञानमां आव्यो नथी.. राग छे माटे राग संबंधीनुं ज्ञान थयुं नथी.. ज्ञाननी पर्यायमां पोताथी रागनुं अने पोतानुं ज्ञान पोताथी पोतानी सत्तामां पोता वडे थयुं छे, ते ज्ञान एक समयनी पर्याय छे, एटलोय हुं नथी. समजाय छे कांई?
हुं तो एक ज्ञायक भाव छुं आहाहाहा! जुओ आ भवना अंतनी वात! प्रभु! चोरासीना भवना अवतार! ... क्यांय नरक... क्यांय नरक... क्यांय निगोद! क्यांय लीलोतरी! क्यांय लसण! क्यांय बावळ! क्यांय थोर! आहाहा! अवतार धारण करी करीने क्यां रह्यो. एना अंत लाववानो आ एक उपाय छे. जेमां भव के भवनो भाव नथी. राग ए भवनो भाव छे. ए मारा स्वरूपमां नथी.
अत्यारे तो एवी मांडे के आ दया करो दान करो, व्रत करो, पूजा करो, भक्ति करो, सेवा करो ए करतां करतां कल्याण थई जशे. अरे प्रभु! जे वस्तु झेर छे.. राग छे.. ए स्वरूपमां नथी तो एनाथी स्वरूपमां लाभ थाय? समजाणुं कांई?
अत्यारे तो द्रष्टिनो मोटो फेरफार थई गयो छे.. सेवा करो- देश सेवा करो- एक बीजाने मदद करो भूख्याने अनाज आपो, तपस्यानो पाणी आपो. आहा! आपणां साधर्मीओने मदद करो. आहा! पर वस्तुनो प्रभु तारामां अभाव छे अने तारो तेनामां अभाव छे, तो तुं परनुं शुं कर? आहा! केमके ते पर पदार्थ एनी पर्यायना कार्य वगर तो छे नहीं तो एनी पर्याय तुं शी रीते करीश? आहाहाहा!
तारी सामे ए अनंता द्रव्यो भले हो पण ए अनंता द्रव्यो तो पोतानी पर्यायने करे छे. ए परने कांई करी शके नहीं. ए परने कांई करतो नथी. तारुं द्रव्य परने कांई करतुं नथी. परना द्रव्य गुणने तो नहीं पर्यायने करतुं नथी. आहाहाहा!
आवो हुं एक ज्ञायक तत्त्व छुं. काल आव्युं हतुं तत्त्वथी भाषाथी नहि पण परमार्थथी एने आ वात अंतरमां बेसवी जोईए तत्त्वथी!
एक ज्ञायक भाव त्रिकाळ ते हुं छुं. ए दया-दानादिनो राग आव्यो छे ए हुं नहीं.. ए हुं नहीं तो तेनाथी मने लाभ पण नहीं मारो प्रभु मारो स्वभाव छे.. ए स्वभावना परिणाम द्वारा मने लाभ थाय.
आ रीते सम्यग्द्रष्टि विशेष पणे एटले अगाउ पहेलां सामान्यपणे कह्युं हतुं. के एक आत्मा ए सिवाय अने रागथी मांडीने बधानो त्याग छे ए सामान्यपणे कह्युं हतुं... हवे भेद पाडीने (कहे छे) समजाय छे कांई?
पहेलां सामान्यपणे कह्युं हतुं एक तरफ आत्मा अने रागादि आखी दुनिया. राग अने विकल्पथी मांडीने आखी दुनिया.. बधुं; ते तारामां नथी अने तुं एनामां नथी. सामान्यपणे आम पहेलां कह्युं हतुं.. हवे एना भेद पाडीने विशेषपणे समजावे छे.
सम्यग्द्रष्टि विशेषपणे.. स्व अने परने जाणे छे. आहीं तो त्यां सुधी कह्युं छे राग छे तेने जाणे छे अने जाणनार ते हुं छुं.. जे राग मारामां जणाय छे ए हुं नहीं.. आहाहाहा!
राग छे माटे अहीं रागनुं ज्ञान थाय छे एमेय नहीं मने मारुं ज्ञान माराथी.. स्वने जाणतां
Page 189 of 225
PDF/HTML Page 202 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो-१ १८९ परने जाणुं एवुं स्व-पर प्रकाशक मारी सत्तानुं स्वरूप छे. एनाथी हुं मने जाणुं छुं.. आवुं छे!
स्व अने परने जाणे छे स्व ए ज्ञायक भाव अने राग ए पर.. अहीं अत्यारे राग लेवो छे. आ अपेक्षा छे. खरेखर तो अहीं संबंधीनुं ज्ञान पोतानामां पोताथी स्व-पर प्रकाशना सामर्थ्यथी थयेलुं छे, तेने जाणे छे. अहीं राग बताववो छे. रागने धर्मी जाणे छे पण राग (ते) हुं नहीं.. हुं छुं त्यां राग नथी अने राग छे त्यां हुं नथी. आहाहाहा! आवी वात! माणसने नवराश क्यां छे.. पोताना हितने माटे वखत लेवो ए पण वखत एने मळतो नथी एम कहे छे. मरवानो वखत नथी. आ वेपार अने आ धंधा! बापु! देह छूटवाना टाणा आवशे भाई! ए टाणे (मोत) अकस्मात आवीने उभुं रहेशे. आहाहाहा! वात करतां करतां (देह) छूटी जशे. एम नहीं के ए कहेशे के हवे हुं छूटुं छुं.. आ देह तो जड छे माटी छे एने जे समये छूटवानो समय छे ते समये एनो छूटये ज छूटको छे. ए एनो समय छे.
भगवानना ज्ञानमां तो छे.. पण तारे शरीरमां रहेवानी आटली ज योग्यता छे.. एटली योग्यता सुधी रहीने देह छूटी जशे. आहा!
अहीं कहे छे प्रभु...! धर्मी एने कहीए जेने आत्मानुं दर्शन थयुं छे. एने दया-दान-भक्ति- जात्रानो राग आवे पण धर्मी एने पोतानो मानतो नथी. एने पोतानो न माने. जेम आ माटी जड धूळ छे अने एनुं अस्तित्व तद्न भिन्न छे. (तेम राग भिन्न छे) ए पर छे. रागनुं अस्तित्व पर्यायमां जरा देखाय छतां ए अस्तित्व मारुं स्वरूप नथी. आहा!
धर्मी एने कहीए.. सम्यग्दर्शन ए धर्मनी पहेली सीढी- एने कहीए रागने पण पोतानी चीज न माने. आहा! त्यां वळी आ बायडी मारी अने आ छोकरां मारा... प्रभु! धर्मी एम माने नहीं कहेशे हमणां ए... समजाणुं कांई?
आ दीकरो मारो छे अने आ दीकरी मारी छे.. आ मारी बायडी छे. अरे प्रभु! कोनी बायडी? कोना छोकरां? एनो आत्मा जुदो एना शरीरना परमाणु जुदा.. तारां जुदा.. ए तारा क्यांथी आव्यां? आहा! शुं थयुं छे तने प्रभु! आहाहाहा!
आहीं कहे छे के ए स्व-परने जाणे छे. आ ज प्रमाणे राग पद बदलीने द्वेष आवे.. द्वेष लेवो “छे?” द्वेषनो अंश आवे तो पण धर्मीने आत्माना आनंदना स्वाद आगळ ए द्वेषनो स्वाद आकुळता छे माटे ए मारुं स्वरूप नथी. आहा! समजाय छे कांई?
द्वेषनो अंश छे ए मारी चीज नहीं. हुं तो प्रभु ज्ञायक चैतन्य ज्योत अनादि सर्वज्ञ त्रिलोकनाथ जिनेश्वर देव परमेश्वर परमात्मा एणे जे आ आत्माने जोयो ए आत्मा तो राग अने विकार रहित प्रभु आत्मा छे. तेने भगवाने आत्मा कह्यो छे. आहा! ए भगवान पोते एम कहे छे के, ‘भाई! जे धर्मी थाय एने राग अने द्वेषना अंश आवे.. एनी एटली नबळाई छे.. पण ए मारुं नहीं मने नहीं हुं एने अडतोय नथी. आहा! आवी वात छे! सांभळवी मुश्केल पडे, बापु! शुं करे.. ए द्वेष, मोह.. आ मोह एटले मिथ्यात्व नहीं! पण पर तरफ जराक सावधानी जाय छे ए पण हुं नहीं, हुं नहीं.. अहीं सम्यग्द्रष्टिने लेवो छे ने! मिथ्यात्व छे ज नहीं त्यां.. पण कोई जरी सम्यक्त्व मोहनीयनो उदय होय कोई वखत... ए पर तरफनी सावधानी ए पण हुं नहीं. ए हुं नहीं.. हुं तो जाणनार चैतन्य
Page 190 of 225
PDF/HTML Page 203 of 238
single page version
१९० श्री प्रवचन रत्नो -१ भगवान सर्वज्ञ परमेश्वर त्रिलोकनाथ जिनेश्वर देवे जेवो प्रगट कर्यो अने एवो हतो ए हुं छुं. मारामां अने भगवानमां कांई फेर नथी. भगवाननी पर्याय प्रगट थई गयेली छे; मारी पर्याय अपूर्ण छे. छतां ए राग आदि चीज जेम भगवानमां नथी एम मारामां पण नथी.
अरेरे! आवी वातो! क्यां नवराश छे. माणस पासे? एम द्वेष-एम मोह-एम क्रोध-एम क्रोध जरी आवी जाय.... धर्मी छे.. लडाई वगेरेमां पण ऊभो होय छतां ए धर्मी क्रोधने पोतानुं स्वरूप जाणतो नथी. ए क्रोधने क्रोधनी हैयातीमां, क्रोधने.... जाणवानो पोतानो स्वभाव छे तेने जाणे छे. समजाणु कांई
आवी वात छे. क्रोध.... एम मान, धर्मीने जरा मान आवी जाय... धर्मी छे. ... आहा! छतां ए जाणे छे के ए मारी चीज नहीं हो! एतो पारकी चीज आवीने देखाव दये छे.. आहाहा!
जेम घरमां पोते रह्यो होय अने कोईकनी स्त्री के छोकरो पोताना मोढा आगळ आम आवीने चाल्या जाय बारणा पासेथी... एम आ क्रोधनो अंश पण आवीने देखाव ध्ये छे, ए मारी चीज नहीं.
आवुं झीणुं छे. एटले तो लोको कहे छे ने के आ सोनगढवाळानुं एकांत छे. व्यवहारथी थाय एम कहेता नथी.. पण अहीं प्रभु तो एम कहे छे के व्यवहारनो राग आवे एने धर्मी पोतानो मानतो नथी.
प्रभु! वीतराग मार्ग झीणो बहु छे बापु! त्रण लोकना नाथ सीमंधर भगवान महाविदेहमां बिराजे छे. एना आहीं पडया विरह! वाणी रही गई. आहा! साक्षात् कुंदकुंदाचार्य त्यां गया हता. आठ दिवस त्यां रह्या हता. आवीने आ वाणी बनावी छे. (शास्त्रो बनाव्यां छे.) एनी टीका करनार तो त्यां गया न हता. पण ए अहीं भगवान पासे अंदर गया हता. तेथी आ टीका बनावी छे आहा!
आवुं छे...! आ कइ जातनो उपदेश? बापु, भाई! मार्ग तो आ छे, बापु! वीतराग..! वीतरागनो मार्ग वीतरागभावथी होय छे. वीतरागनो मार्ग रागथी होय नहीं... तो (ए) वीतराग मार्ग न कहेवाय.
एथी सम्यग्द्रष्टि आत्माने वीतरागस्वरूपे ज जाणे छे तेथी पर्यायमां... सम्यग्दर्शन ए.. वीतरागी पर्याय प्रगट थई छे. वीतरागी पर्यायथी विरूद्धनो मान के क्रोध ए एने पोतानो मानतो नथी. आहाहाहा!
माया.... माया पण जरी आवे छे. पण ए देखाव दये छे... ते वखते ते ज्ञाननो पर्याय तेने जाणवानी पोतानी शक्तिथी प्रगटेलुं ज्ञान आ छे एम जाणे छे, छूटी जाय छे. आहा! आवुं आकरुं छे.
लोभ... ईच्छा कोई वर्ती आवे छतां धर्मी एने कहीए के ए ईच्छाने पण पोतामां न लावतां... ए मारुं स्वरूप ज नथी.... लोभ मारुं स्वरूप ज नथी.... मारी जात नथी.... मारी नात नथी ए तो कजात छे.. ए आत्म जात नहीं... ईच्छाने पण अन्य जाणीने मात्र जाणवावाळो रहे छे. हुं तो एक ज्ञायक जाणनारो छुं.. आहा!
Page 191 of 225
PDF/HTML Page 204 of 238
single page version
श्री प्रवचन रत्नो -१ १९१
आवुं स्वरूप क्यांथी... एम कहे छे. आ अहींनुं करेलुं छे? अनादिनो मार्ग ज आ छे, पण एणे सांभळ्यो न होय एथी एने नवीन लागे. एथी कंई मार्ग नवो नथी. मार्ग तो जे छे ते आ ज छे. एक होय त्रण काळमां परमार्थनो पंथ’ ए आहिं कहे छे.
लोभ... आठ कर्म... ए आठ कर्म हुं नहीं. में कर्म बांध्या अने में कर्म छोडया ए मारामां नथी... आहा! शास्त्रमांथी सांभळ्युं होय के चोथे गुणस्थाने आम आटला कर्म बाकी छे... आम होय... पण ए तो एनुं ज्ञान आटला कर्म बाकी छे.... आम होय.. पण ए तो एनुं ज्ञान करे छे. ए कर्म मारां छे एम मानतो नथी. केम के कर्म छे ए जड छे, अजीव छे अने भगवान आत्मा ज्ञायक छे. ए सत्स्वरूप छे एमां जडकर्मनो त्रिकाळ अभाव छे. ए कर्मनो प्रभुमां (आत्मामां) अभाव छे. अरेरे! आ केम बेसे? भगवान आत्मा चैतन्य स्वरूपी प्रभु अने कर्म जड छे. ए मारामां नथी. हु सत् छुं ए अपेक्षाए ए आसत् छे. अने ए सत् छे. ए अपेक्षाए हुं असत् छुं. ए परमाणुनी पर्याय छे... कर्म छे ए कर्मवर्गणानी पर्याय छे. ए पर्याय कर्मरूपे परिणमी छे तो ए एनी छे. आहा! ए कर्म मारा नथी.. में आयुष्य बांध्यु छे ने आयु प्रमाणे मारे देहमां रहेवुं पडशे ने एय हुं नथी. आहा! आयुष्य छे ए तो जड छे में बांध्युं नथी. मारुं छे ज नहीं ने; अने एने लईने हुं शरीरमां रह्यो छुं एमे य नहिने आहाहा! मारी पर्यायनी योग्यताथी हुं शरीरमां रह्यो छुं... मारी योग्यता एटली पूरी थशे त्यारे देह छूटी जशे.
ए कर्म मारां नहीं. ए ज्ञानावरणीय कर्म मने नडे छे.. ए मारां छे जनहीं पछी नडे शुं? लोको कहे छे ने के ज्ञानावरणीय कर्मनो उदय होय तो ज्ञान हणाय.. ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम होय तो ज्ञान खीले अहीं ना पडे छे. खीलवुं अने रहेवुं ए तो पोतानी पर्यायनी योग्यता छे. ए कर्म मारां छे ज नहीं पछी मने ए लईने मारामां कांई थाय ए वात छे ज नहीं आहा!! एक कलाकमां केटलुं याद राखवुं? जगतां हाले नहीं एवी वात! बापु! एवो मारग छे, भाई! आहा! ए तो त्रण लोकना नाथ एनुं विवरण करे अने संतो विवरण करे ए अलौकिक रीते छे. आहा!
नोकर्म.. मारा सिवाय जेटली चीजो छे ए बधा नोकर्म ए मारामां नथी. आहा ए स्त्री मारी नथी एम समकिती माने छे दुनिया जेने अर्धांगना कहे छे, आहा! एनो आत्मा जुदो - एना शरीरना रजकणो द्रव्य जुदा. ए मारी अपेक्षाए असत छे एनी अपेक्षाए हुं असत छुं तो ए मारां क्यांथी थई गया? आहा! तो करवुं शुं? आ बायडी छोकरांने छोडीने भागी जवुं? भागीने क्यां जावुं छे? अंदरमां जवुं छे? (आत्मामां) ए नोकर्म मारुं नहीं आहाहाहा!
ए बंगला... ए पैसा... ए स्त्री... ए दिकरा ए दिकरीयुं... वेवाई... जमाई, आहाहाहा! ए मारां स्वरूपमां नही ए ए मारूं स्वरूप नहीं. हुं एने अडतो पण नथी; ए चीज मने अडती नथी. आहा! अरे! आ वात केम बेसे? अनंतकाळमां रखडयो; अज्ञान भावथी अने मूढभावथी रखडे छे. एने आ वात अंदरमां बेसे त्यारे भवना अंत आवे एवुं छे.
ओ नोकर्म हुं नहीं... नोकर्ममां बधुं आव्युं, पैसा स्त्री, कुटुंब, दीकरा, दीकरी, मकान, आबरू
Page 192 of 225
PDF/HTML Page 205 of 238
single page version
१९२ श्री प्रवचन रत्नो -१ आहा! ए बधुं मारामां नहीं.... ए बधुं मारुं नहीं, मारे लईने ए नहीं, एने लईने हुं नहीं. आहा! आवी वात छे. आवो मार्ग छे. शरीरने लेशे जुदुं पण खरेखर ए नोकर्ममां जाय छे. शरीर वाणी, आ पर वस्तु मकान कपडां दागीना, स्त्री, दीकरा, दीकरी बधुं नोकर्म ए मारुं स्वरूप नहीं, ए मारां नहीं ए मारामां नहीं एमां हुं नहीं आहाहाहा!
सम्यग्द्रष्टि धर्मन पहेली सीढीवाळो आ रीते आत्माने अने परने जाणे छे दुनियाने आ बेसवुं कठण पडे. अने कहे छे के आ एकलो निश्चय थई गयो पण व्यवहार क्यां?”
पण व्यवहार एटले शुं? पर वस्तुने व्यवहार कहीए.... ते कोई वस्तु आत्मानां नथी. स्वने निश्चय कहीए अने परने व्यवहार कहीए. पर ए तारामां नथी, अने तुं एनामां नथी.
अरे! ए के’ दी निर्णय करे अने क्यारे अनुभव करे ने क्यारे जन्म मरणनो अंत आवी... आहा!
नोकर्म... ए मन मारुं नहीं... आठ पांखडी आकारे छे. आत्मा विचार करे एमां निमित्त ए जड छे. ए हुं नहीं. ... मन (ते) हुं नहीं.... हु मननो मनमां रहीने जाणनारो नहीं... मन मारुं तो नहीं पण मनमां रहीने मनने जाणनारो नहीं... हुं तो मारामां रहीने मनने भिन्न तरीके जाणुं ए पण व्यवहार आहाहाहा! आहीं सुधी पहोंचवुं... !
ओलुं तो सहेलुं..... व्रत करो-तप करो-सेवा करो-अपवास करो-एकबीजाने मदद करो-पैसा आपो. मंदिर बनावो -जात्रा करो शत्रुंजय अने गीरनारनी... आ बधुं सहेलुं सट.... आहा! एवुं तो अनंतवार कर्युं छे भाई... ए रागने पोतानो मानीने अनंता मिथ्यात्वना सेवन कर्या छे. आहा!
मन (ते) हुं नहीं... वाणी हुं नहीं.... वाणी तो जडनी पर्याय छे... जडनी पर्याय तो मारामां असत छे. हुं पणे हुं तो सत् छुं... पण वाणीपणे असत् छुं... मारी अपेक्षाए वाणी असत् छे. वाणी वाणीने अपेक्षाओ सत् छे... मारी अपेक्षाए वाणी असत् छे. आहाहाहा! घणां वेण (वचन) मूकी दीधां छे.
काया... ए शरीर (ते) हुं नहीं आ हाले चाले ते अवस्था ते हुं नहीं.... आहा! आ बोलाय छे (भाषा) ते हुं नहीं. ए जड छे. आ केम बेसे? ज्यां त्यां अभिमान! हुं करुं हुं करुं एज अज्ञान छे. शकटनो भार जयम श्वान ताणे. गाडानी नीचे कूतरु अडयुं. होय तो जाणे के गाडुं माराथी चाले छे. अमे आ ज्यां बेठो होय त्यां व्यवस्था थती होय तो जाणे माराथी थाय छे. ए कुतरो छे! अहा!
ए काया मारी नहीं.... ए कायानी क्रिया मारी नहीं.. ए कायानी हलवा चलवानी क्रियामां हुं नहीं आहा! एने तो हुं जाणनारो छुं. शरीर छे एनो हुं जाणनारो छुं. ए शरीरमां रहीने नहीं... पोतामां रहीने एने हुं पृथ्थक तरीके जाणुं छुं. ए पण व्यवहार छे. हुं जाणनारो छुं. हुं ज्ञायक छुं.
विशेष पछी कहेशे...