Pravach Ratno Part 1-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 294 ; Date: 06-12-1979; Pravachan: 361.

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श्री प्रवचन रत्नो-१ २१प

ज्ञान तो मात्र ज्ञानने ज जाणे छे!

*आत्मा वस्तु छे ज्ञान स्वरूप. ए ज्ञाननी उत्पत्ति थाय ते जे समये रागादि विकल्प उत्पन्न थाय छे. काळ एक छे, क्षेत्र एक छे, पण भाव भिन्न छे! आम अति निकटताने लईने चेत्य - चेतक भावनो सद्भाव होवाथी राग छे ए जणावा योग्य - चेत्य छे अने आत्मा जाणनार - चेतक छे.

* राग जणावा लायक छे; आत्मा जाणनार छे. ए बंने एक नथी. रागनुं बंध लक्षण छे, आत्मा ज्ञानानंद स्वरूप छे तेनुं ज्ञान लक्षण छे आम बंनेना लक्षण जुदा होवाथी चीज बंने जुदी छे. छतां एक क्षेत्रे अने एक काळे होवाथी नजीकपणुं छे तेथी अज्ञानीने ए राग पोतानी चीज छे अथवा तेनाथी मने लाभ थशे एम भेदज्ञाननो अभाव होवाथी तेने लागे छे.

* ज्ञेय अने ज्ञायक बे य एक नथी. पण एक साथे उत्पन्न थाय छे एथी अज्ञानीने भ्रम उपजे छे के आ राग मारी चीज छे अने तेनाथी मने लाभ थशे एम अज्ञानी अनादिथी मिथ्या श्रद्धामां मानी रह्यो छे.

* राग छे ते आत्मानी जात नथी. आत्मा अने राग भिन्न छे. ए राग जाणवा लायकमां जाय छे अने आत्मा एनो जाणनार छे एम जणाय छे.

* राग जे समये उत्पन्न थाय छे ते ज समये ते रागनुं ज्ञान पोताथी थाय छे. रागनी हयाती छे माटे एनुं ज्ञान थाय छे एम नहीं. ए ज्ञानगुणनी पर्याय स्व-पर प्रकाशपणे छे ते समये ते प्रगटे छे तेथी तेनी जाणनार कही अने रागने जणावा योग्य कहेवामां आव्यो.

* खरेखर तो आत्मा पोते तो पोतानी पर्यायने जाणे छे. जाणनारनो कर्ता आत्मा पोते छे. पर्याय पण व्यवहार छे. खरेखर तो पर्याय ए पर्यायनी कर्ता छे. रागने लईने नहीं - द्रव्यगुणने लईने नहीं. जाणवानी पर्याय पोते स्वतंत्र ऊभी थाय छे.

* जाणनार चैतन्य भगवान अने दया, दानना विकल्पो जे राग बंने एक द्रव्य नथी. द्रव्य बंने जुदा छे. एक साथे - एक काळे - एक क्षेत्रे ज्ञान उपजे अने राग उपजे ए एक द्रव्यपणाने लईने नही -एक वस्तुपणाने लईने नहीं. एक आस्रव तत्त्व छे अने एक जीव तत्त्व छे. बेय पदार्थ जुदा छे.

* जेम दीपक वडे प्रकाशवामां आवतां घटादि दीपकना प्रकाशपणाने जाहेर करे छे - दीपकपणाने जाहेर करे छे, ए घट-पटने जाहेर नथी करतां तथा दीवो बीजी चीजोने प्रकाशे छे एम नथी; ए तो पोतानी चीज प्रकाश छे एने ज प्रकाशे छे. दीवानो स्वभाव स्वने अने परने अने परने प्रकाशवानो छे तेने प्रकाशे छे; बीजी चीजने प्रकाशे छे एम नही. तेम रागादि ज्ञानमां ज्ञेयरूपे जणाता तो रागादि भावो आत्माना चेतकपणाने जाहेर करे छे. आत्मा पोताने जाणे छे अने रागादि थाय एने जाणे छे ए जाणवानी पर्यायने प्रकाशे छे. परने नही - रागादिने नही. आत्मा राग, दया, दान, काम, क्रोधना परिणाममां पेसीने जाणतो नथी. एमां तन्मय थईने जाणतो नथी. तन्मय तो पोतानी पर्यायमां थईने जाणे छे तेथी ते पोतानी ज्ञाननी पर्यायने प्रकाशे छे – ए रागादिने प्रकाशतो नथी.


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२१६ श्री प्रवचन रत्नो -१

* आत्मानो स्वभाव स्वतः स्वयं स्व. पर प्रकाशक होवाथी परने लईने परने प्रकाशे छे एम नथी परने अने पोताने प्रकाशे छे ए पोताने प्रकाशे छे पोतानी पर्यायने प्रकाशे छे. ए परने प्रकाशतो नथी.

* आत्मा ज्ञानानंद प्रभु राग-दया, दान, भक्तिना परिणाम थाय तेने प्रकाशतो नथी. पहेलां कह्युं हतुं के ते जणावायोग्य छे अने आ जाणनार छे. हवे कहे छे के ए जणावा योग्य छे ए पण व्यवहारथी कह्युं हतुं.... बाकी एने प्रकाशतो नथी; पोतानी पर्यायमां द्विरूपताने प्रकाशे छे. पोताने प्रकाशे छे अने रागने प्रकाशे छे; ए द्विरूपताने प्रकाशे छे. ए पोतानो प्रकाश छे.

* आहीं तो कहे छे के प्रभु! एकवार सांभळ के तुं एक चैतन्य छो के नहीं? छो तो तारो स्वभाव जाणवुं ए छे के नहीं? ए जाणवुं छे ते तो स्वपर प्रकाशक पणे छे के एकला स्वपणे ज छे? ज्यारे स्वपर प्रकाशक पणे जाणवुं छे तो ते परने प्रकाशे छे के पोताने प्रकाशे छे? स्वपर प्रकाशक पणुं पोताने प्रकाशे छे.

* जाणनार कह्यो छे - ए तो एना जाणवामां ए आवे छे माटे. पण खरेखर तो ए पोताना ज्ञानने प्रकाशे छे. स्व–पर प्रकाशक पोतानी शक्ति छे एने ए विस्तारे छे. ए रागादिने - परने विस्तारतो नथी. चैतन्यनो स्व-पर प्रकाशकतानो विस्तार पोताना ज्ञानने विस्तारे छे - पर वस्तु - ज्ञेयने विस्तारतो नथी.

* अहीं आत्माना गुणनी मर्यादा लीधी छे. ए आत्माना गुणनी मर्यादा स्व-पर प्रकाशक छे ए परने प्रकाशे छे एम जाहेर नथी करतुं; पण पर संबंधी पोतानो जे प्रकाशन स्वभाव छे. स्व.... स्वपर प्रकाशक तेने प्रकाशे छे.

* पहेलां तो ए लीधुं के पुण्य अने पापना भाव थाय ए चेत्य छे - जणावा लायक छे बस! एटलुं कह्युं. आत्मा जाणनार छे एटलुं कह्युं. एक साथे उत्पन्न थाय छे एक काळे- एक क्षेत्र छतां बंने भिन्न चीज छे. ओली जणावा योग्य चीज छे, आ जाणनार छे. हवे अहीं तो कहे छे के ए जणावा योग्य चीज छे ए वात कही हती पण ए आना प्रकाशमां प्रकाशे छे - ए पोतानो प्रकाश छे. ए चीजने प्रकाशतो नथी. ए चैतन्यनो पोतानो स्व-पर प्रकाशक स्वभाव छे एने प्रकाशे छे. ए ज्ञान ज्ञेयमां कयां तन्मय थाय छे के एने प्रकाशे. ज्ञेय संबंधीनुं ज्ञान जे पोतानुं छे एमां ए तन्मय छे तेथी ते पोते पोताना ज्ञानने स्वप्रकाशने विस्तारे छे. परनो विस्तार करतो नथी.

* चैतन्य द्रव्य भगवान स्वरूप चैतन्यप्रकाश छे. चैतन्य चमत्कारी वस्तु छे. चैतन्य चमत्कारी एटले? पोतामां रहेला अनंतने प्रकाशे छे. छतां अनंतने प्रकाशे छे एम कहेवुं ते पण अपेक्षा ए छे. पोतानी पर्यायमां अनंतता जणाय ए पर्यायने प्रकाशे छे. जणाय एवा पदार्थमां हुं नथी. हुं तो मारा स्वपर प्रकाशना पर्यायमां छुं. ज्ञाननी पर्यायमां आ बधुं जणाय छे? तो कहे छे ना. ए चैतन्यनो स्वभाव छे प्रकाशवुं. तो अस्तित्वमां रहीने प्रकाशे छे. ते पोताना ज्ञानने प्रकाशे छे. आ चीजोमां ज्ञान जतुं नथी तेमज ते चीजोने लईने आंही ज्ञाननो प्रकाश थतो नथी. पोतानो अनंतभाव जाणवानो जे स्वभाव छे ए स्वभावमां अनंता जणाय छे ए खरेखर तो पोतानी पर्याय जणाय छे – पर नहीं. परने तो अडतो य नथी.


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श्री प्रवचन रत्नो-१ २१७

* जाणनारो भगवान पोते क्षणे क्षणे पोताने अने परने पोताना कारणे पोते ज प्रकाशे छे. आहाहाहा!

स्व-पर प्रकाशक शक्ति हमारी, तातैं वचन भेदभ्रम भारी; ज्ञेय शक्ति दुविधा परकाशी, निजरूपा पररूपा भासी.

ज्ञेय द्वैत छे पण खरेखर तो ज्ञेय “आ” भासे छे, चैतन्य ज्ञेय छे... एनुं अस्तित्व ज एटलुं बधुं मोटुं छे के पोतामां रहीने, परने अडया विना, परनुं अस्तित्व छे माटे पोते जाणे छे एम पण नहीं परंतु पोताना अस्तित्वनी सत्ता एटली छे के पर अनंत छे ते अडया विना स्व-पर प्रकाशने प्रकाशे छे. ए पर प्रकाशने प्रकाशतो नथी. स्वने प्रकाशे छे.

* आत्माना चेतनपणाने ज... भाषा जोई? शुं कहे छे? रागादिने नही. आत्माना चेतनपणाने ज जाहेर करे छे. गजब काम कर्या छे ने? आवी वात क्यांय नथी ‘ज’ शब्द छे ने? पर पदार्थोने नही अहाहा! चैतन्यनुं स्वपर प्रकाशकपणुं विशाळ छे, एनी सत्ता विशाळ छे. ए विशाळताने जाहेर करे छे. विशाळतामां विशाळ वस्तुने जाहेर करे छे एम नहीं.

* आत्माना प्रकाशमां आत्मानो प्रकाश ज जाहेर करे छे. रागादिनी नहीं.... नजीकमां नजीक एक क्षेत्रे अने एक काळे उत्पन्न थाय एने पण जाहेर करतो नथी. पोताना प्रकाशनी द्विरूपता, एने अने पोताने प्रकाशे एवी पोतानी शक्तिने प्रकाशे छे.. . परने जाहेर करे छे एम नहीं; पोताने जाहेर करे छे. जे जणाय छे तेने नहीं – ए जणातुं ज नथी. ए संबंधीनुं पोतानुं ज्ञान पोताथी थयुं छे ए जणाय छे.

(पूज्य गुरुदेवश्रीना श्री समयसारजी शास्त्रनी गाथा-२९४ उपरना १९मी वारना प्रवचन क्रमांक - ३६१, दिनांकः ६-१२-७९ मांथी)

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