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श्री प्रवचन रत्नो-१ २७
समयसार गाथा-२ अधिकार ए चाले छे के जीव, जीव केने कहेवो? एनां घणां विशेषण आवी गयां छे पहेलां (टीकामां)
एने उत्पाद-व्यय-ध्रुववाळो पण कह्यो छे ने भाई ई शुं कह्युं ई? के वस्तु छे एमां पर्याय बदले छे. नवी नवी अवस्था थाय जूनी अवस्था जाय, बदले छे ने...! ई बदले छे ई एने नवी दशा उत्पन्न थाय ने जूनी व्यय थाय, अने वस्तु छे ए ध्रुव कायम रहे उत्पादव्ययध्रुव सहित ते तत्व जीव छे. अने आमेय कह्युं ने गुणपर्यायवाळुं! ए वस्तु जे छे गुण एटले त्रिकाळ रहेनार आ वस्तु जे छे आत्मा अंदर! ए त्रिकाळ रहेनार छे ए अपेक्षाए ध्रुव अने नवी नवी अवस्था पलटे छे ते पर्याय, पर्याय एटले हालत दशा. तो गुणपर्यायवाळुं ए द्रव्य छे. ए समुच्चय अत्यारे जीवने सिद्ध करे छे. दर्शनज्ञानमय छे एम कह्युं. जयसेनआचार्यनी टीकामां तो एवी रीते लीधुं छे. जीव छे ए निश्चयथी पोताना ज्ञानने आनंदथी छे माटे निश्चय जीव! वस्तु छे ने...! अस्ति छे ने...! छे तो तेना अस्ति-छे एवा गुण छे ने...! तो आनंदने ज्ञान आदि गुण छे, ए प्राणथी कायम जीवे टके माटे एने अमे जीव कहीए.
अने बीजी रीते पण लीधुं के, अशुद्धभावप्राण (थी) जीवे छे ने आ. भाव प्राण! आ आयुष्य, मन, वचन, काय नो योग आदि छे अशुद्धदशा विकारी एना प्राणथी जीवे छे, टके छे ए पण एक अशुद्ध निश्चयथी कह्युं छे. अने असद्भूत व्यवहारथी दशप्राणथी ते जीवे छ आ जड निमित्त छे ने आ पांच इन्द्रिय आदि ए जड पर छे. एनाथी जीवे एम असद्भूतव्यवहारथी पण कहेवाय.
आंही आपणे आव्युं छे आंही ‘वळी ते केवो छे?’ आंही सुधी आव्युं छे. छे? आ जीववस्तु छे ने तत्त्व छे ने पदार्थ छे. आ जेम जड छे, एनी जेम अस्ति छे तत्त्वो! एम चैतन्य एनो जाणनारो! जाणनार जणाय छे, ए जाणनारो जुदी चीज छे. ए जुदी चीज छे एना बधा विशेषणो आप्यां छे. ए जीव केवो छे? ए शक्ति अनेत्रप अवस्थावाळो छे, उत्पादव्ययध्रुववाळो छे, दर्शनज्ञानस्वरूपे छे, आंही वळी ते केवो छे? विशेष वात करे छे.
आहा... हा! ‘अन्य द्रव्योना जे विशिष्ट गुणो-वळी जीवमां अन्य बीजां द्रव्यो नथी. आ शरीर, वाणी कांई जीवमां नथी. ‘अन्य द्रव्योना’ छे ने? विशिष्ट जे खास गुणो, एम करीने बीजी चीजो पण सिद्ध करी. आकाश नामनो पदार्थ छे के जे बधा पदार्थने रहेवाने अवगाहन आपे. एवी एक अरूपी चीज (आकाश) छे. लांबी लांबी वस्तु सिद्ध करवा जाय तो वखत जाय! आकाश नामनो एक पदार्थ छे. एनो गुण अवगाहन छे. अवगाहन एटले? एमां बीजा पदार्थो रहे एवा गुणने अवगाहन कहे छे. तो ई अवगाहन गुण आकाशनो छे. ए आत्मानो नथी एम सिद्ध करवुं छे. अहा...! छे? मूळ वात छे शरूआतना श्लोको ज झीणां छे!
‘द्रव्योना जे विशिष्ट (खास) गुणो- अवगाहन-गति-स्थिति’ धर्मास्तिकाय नामनुं तत्त्व छे जड-चेतन गति करे तेमां ए धर्मास्ति तत्त्व निमित्त छे. अधर्मास्ति (काय) छे. जीव ने जड स्थिर रहे पोतानी
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२८ श्री प्रवचन रत्नो-१ शक्तिथी, एमां निमित्तरूपे जे द्रव्य छे एने अधर्मास्तिकाय कहे छे.
‘वर्तनाहेतुपणुं’ काळद्रव्य एक छे. असंख्य कालाणु छे जे दरेक पदार्थ बदले छे- परिणमे छे एमां निमित्तरूप जे छे, एने काळद्रव्य कहे छे. लांबी व्याख्या बहु मोटी! छे? ‘अने रूपीपणुं’ वर्तनाहेतुपणुं ते काळ अने रूपी ते आ जड - आ शरीर, वाणी, पैसा रूपी छे, जड छे. (तेमां) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श छे. रूपीपणुं ते जडनो गुण छे. ए गुण आत्मामां नथी.
आहा...! ‘तेमना अभावने लीधे’ बीजां द्रव्यना जे गुणो खास छे ते गुणोनो आत्मामां अभावने लीधे. आहा.. आरे आवी वातुं छे! तत्त्वनी वस्तु बहु मोंधी पडी गई. लोकोने अभ्यास न मळे! अने बहारमां रोकाई ग्या! मूळ चीज शु छे चैतन्यवस्तु, एनाथी बीजां पांच पदार्थ भिन्न छे. ए पांच पदार्थना जे खासगुण छे ए गुणोनो आमां (आत्मामां) अभाव छे. छे?
‘रूपीपणुं- तेमना अभावने लीधे अने असाधारण चैतन्यरूपता-स्वभावना सद्भावने लीधे’ एनो तो चैतन्य-जाणवुं-देखवुं ए स्वभाव छे. कायमी त्रिकाळी जाणवुं अने देखवुं एवो चैतन्यस्वभाव छे. चेतननो-आत्मानो चैतन्यस्वभाव कायमी होवाथी बीजा पदार्थना गुणोनो एमां अभाव छे. पोताना गुणोनो एनामां सद्भाव छे.
आहा... हा! ‘चैतन्यरूपता स्वभावना सद्भावने लीधे आकाश, धर्म, अधर्म, काळ अने पुद्गल- ए पांच द्रव्योथी जे भिन्न छे’ चैतन्यवस्तु ए जगतना पांच पदार्थथी भिन्न छे. एनाथी ए भिन्न जुदो छे.
आहा...! ए रूपे-शरीररूपे नथी, वाणी रूपे नथी, कर्मरूपे नथी, आकाशने धर्म-अधर्मरूपे पण आत्मा नथी. आहा... हा! घणुं शीखवुं पडे! अनादिकाळनी वास्तविक चीज शुं छे! अने ई कई रीते रखडे छे अने रखडवानुं परिभ्रमण बंध केम थाय? ए चीजो कोई अलौकिक छे.
आहा...! आंही कहे छे बीजां द्रव्योना जे गुणो छे एनो आत्मामां अभाव छे. ‘ए पांच द्रव्योथी ते भिन्न छे’ केमके एनां गुणो आमां नथी तेथी ए द्रव्योथी भिन्न छे. ‘आ विशेषणथी एक ब्रह्मवस्तुने ज माननारनो व्यवच्छेद थयो.’ एक ज आत्मा व्यापक छे एम केटलाक माने छे, वेदांत! सर्वव्यापक एक आत्मा वेदांत माने छे एनुं निराकरण थयुं.
ए माने न माने वस्तु सिद्ध करीने तो कहे छे के बीजा पदार्थोमां गुण छे, तो ई गुणवाळा द्रव्यो छे. ते गुण आमां (आत्मामां) नथी, ते ते द्रव्यरूप आत्मा नथी, न्यायथी लोजिकथी तो वात कहे छे पण हवे अभ्यास नहीं ने... शुं थाय?
आहा...! बहारमां धरमने नामे पण बीजा रस्ते चडावी दीधां लोकोने. तत्त्व अंदर शुं चीज छे अस्तिपणे मौजुदगी चीज अंदर अनादि अनंत छे. अने ते पोताना गुणवाळी-शक्तिवाळी छे. ते बीजाना गुणवाळी नथी तेथी ते बीजां द्रव्योनो तेमां अभाव छे.
आहा... हा! ‘वळी ते केवो छे?’ छेल्लो बोल हवे. ‘अनंत अन्यद्रव्यो साथे अत्यंत एकक्षेत्रावगाहरूप रहेवा छतां’ शुं कहे छे? भगवान आ चेतनवस्तु जाणन-देखन, बीजां अन्य- अनेरां द्रव्यो एक जग्याए रहेलां छे. जुओने आ शरीर आंही छे, वाणी आंही छे, आत्मा आंही छे, बीजां
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श्री प्रवचन रत्नो-१ २९ तत्त्वो पण आंही छे. एवा एक जग्याए आत्मा अने बीजां पदार्थो रहेलां होवा छतां... छे? ‘एकक्षेत्रावगाह (एटले) एक क्षेत्रमां रहेलां छतां पण ‘पोताना स्वरूपथी नहि छूटवाथी’ पोते पोताना स्वरूपथी छूटतो नथी कदि. ए चैतन्यस्वरूप छे जाणन-देखन जेनुं स्वरूप छे. बीजां अन्य द्रव्योनी साथे एक जग्याए भेगां रहेवा छतां पोताना चैतन्यस्वरूपथी ते छूटतो नथी.
आहा... हा! झीणी वातुं घणी भाई! हजी तो कहेवुं छे पछी स्वसमय ने परसमय एनुं. आंही तो हजी ‘जीव’ आवो छे एटली वात सिद्ध करे छे.
आहा... हा! ‘छतां पोताना स्वरूपथी नहि छूटवाथी जे टंकोत्कीर्ण चैतन्य-स्वभावरूप छे’ जाणक्स्वरूप वस्तुरूपे, सत्रूपे, शाश्वत-शरूआत नहीं आदि नहीं अंत नहीं चैतन्यस्वरूप जेनो गुण छे. एवो आत्मा अनादिथी छे.
‘छे’ एने आदि न होय, ‘छे’ एनो नाश न होय. ‘छे’ ई पोताना गुणथी खाली न होय आ तो महासिद्धांतो छे बधा!! टंकोत्कीर्ण एटले जेवो छे एवो अनादिथी चैतन्य स्वभावी छे. ‘आ विशेषणथी वस्तुस्वभावनो नियम बताव्यो’ वस्तुस्वभाव छे ते आम होय एम बताव्युं ‘आवो जीव नामनो पदार्थ समय छे’ समुच्चय वात करी. अंदर वस्तु चैतन्यस्वरूप अने चैतन्यगुणवाळुं तत्त्व! एनाथी बीजां तत्त्वो बीजां गुणवाळा-ए गुणोनो आमां अभाव छे माटे ते द्रव्यनो पण एमां अभाव छे. एक जग्याए रहेवा छतां पोताना स्व चैतन्यगुणथी कोई दि’ छूटतो नथी. पररूपे थतो नथी ने स्वपणुं छोडतो नथी.
आहा... हा! शरीर, शरीरपणे रह्युं छे ए शरीर आत्मापणे थतुं नथी, अने शरीरनो शरीरपणाथी अभाव थतो नथी. एम आत्मा, आत्मापणे रहे छे ए शरीरपणे थतो नथी, पोताना स्वभावथी रहित थतो नथी. छे तो लोजिकथी पण झीणुं बहु बापु! अत्यारे तो... दोड चाले एकली... मारग झीणो बहु बापु! जनम-मरण रहित थवानो मारग-पंथ, बहु अलौकिक छे!
हवे आवो जे जीव! ‘सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशवामां समर्थ एवा केवळज्ञान’ शुं कहे छे हवे! आत्मामां केवळज्ञान जयारे उत्पन्न थाय छे- पूर्ण ज्ञान! केमके पूरणज्ञानस्वरूप प्रभु (आत्मा) छे. ज्ञानस्वरूप कीधुं ने... चैतन्यस्वरूप छे. तो चैतन्यस्वरूप छे तो पूरण चैतन्यस्वरूप छे. अने पूरणचैतन्यस्वरूप छे एटले सर्वज्ञस्वभावी चैतन्यस्वरूप छे. एनुं जेणे ध्यान करीने जेनी दशामां केवळ ज्ञन! एकसमयमां त्रणकाळ, त्रणलोक जणाय. एवुं जे केवळज्ञान उत्पन्न थाय.
‘ए केवळज्ञानने उत्पन्न करनारी भेदज्ञानज्योतिनो उदयं थवाथी’ आहाहा...! एटले शुं कहे छे? चैतन्यस्वरूप जे अंदर छे ए आ शरीर, वाणीथी जुदो! भेदज्ञान! अने पुण्यने पापना विकल्पनी वृत्तिओ-राग-द्वेष एनाथी जुदो! एवुं रागने परथी भेदज्ञान प्रगट थवाथी, परथी जुदुं पाडवानी भेदज्ञाननी कळा प्रगट करवाथी एक तो जीवद्रव्य सिद्ध कर्युं, बीजां द्रव्यो सिद्ध कर्या, बीजां द्रव्योनी गुणो नथी एमां (आत्मामां माटे) बीजां द्रव्यो पण एमां नथी. अने पोतानो चैतन्यस्वभाव छे. एक जग्याए बधां तत्त्वो रह्यां होवा छतां पोताना स्वभावने ते छोडतो नथी.
हवे ए स्वभावनी प्राप्ति पूरण जयारे थाय छे तेने केवळज्ञान-सर्वज्ञज्ञान कहे छे. जेम लींडीपीपरमां चोसठ पोरी तीखाश भरेली छे. छोटी पीपर-लींडीपीपर, कदे नानी रंगे काळी, पण एनो
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३० श्री प्रवचन रत्नो-१ तीखो स्वभाव चोसठपोरो छे. तेथी चोसठ प्होर घूंटवाथी चोसठ पंहोरी तीखाश बहार आवे छे. लींडीपीपरमांथी... पण ई अंदर पूरणतीखाश हती. ई चोसठ प्होरी शक्ति, चोसठप्होरी एटले रूपियो! सोळ आना, ६४ पैसा. ए लींडीपीपरमां पण चोसठप्होरी एटले पूरण तीखाश हती एटले घूंटवाथी हती ते बहार आवी छे. लाकडाने अने कोलसाने चोसठप्होर घूंटे तो चोसठप्होरी तीखाश नहि बहार आवे कारणके एमां ते छे नहीं. पण आ पीपरमां तो (तीखाश) छे. छे चोसठप्होरी रूपियेरूपियो पूरण. लीलो रंग अने तीखाशनी पूर्णता ए एक-एक पीपरना दाणामां पडी छे. तो... छे ई बहार आवे छे. प्राप्तनी प्राप्ति छे.
एम भगवान आत्मा, एनामां सर्वज्ञस्वभाव शक्ति छे. सर्वज्ञ कहो के पूरणज्ञान कहो चोसठप्होरुं एटले पूरणज्ञान कहो. आहा... हा! (लींडी) पीपरनी वात बेसे पण आ वात...! पूरणज्ञान अंदर छे (आत्मामां) चोसठप्होर एटले रूपिये १ रूपियो सोळआना. एवा पूरणज्ञाननेपूरणआनंद स्वरूप प्रभुने जयारे एक वर्तमानमां केवळज्ञान थाय छे. त्रणकाळ-त्रणलोकने जाणनारुं ज्ञान, ‘एवा केवळज्ञानने उत्पन्न करनारी भेदज्ञानज्योतिनो उदय थवाथी’ आहा...! हा! भाषा जुओने केटलुं स्पष्ट कर्युं छे!
आवा बधा सिद्धांतो... भारे! आ तो कोलेज छे. अध्यात्मनुं पहेलुं जाणवुं होय, तो आ समजाय के जेम ए पीपरमां चोसठप्होरी तीखाश भरी छे तो ए घूंटवाथी छे ते बहार आवे छे, एम आत्मामां सर्वज्ञस्वभाव, ज्ञस्वभाव पूरण पडयो छे एने दया-दानना विकल्पने शरीर, वाणीथी भिन्न-जुदो करतां, जुदो पाडतां, भेद-ज्ञान करतां एमां पूरण जे भर्युं छे ते तरफनी एकाग्रताथी, परथी जुदो पाडी, स्वमां एकाग्र थतां ए लींडीपीपरमां जेम वर्तमानमां काळप अने अल्प तीखाश छे एने घूंटवाथी अल्प तीखाशने जूदी पडतां अने अंदर तीखाश पूरी भरी छे ते प्रगट थतां, भरी छे ई प्रगट थतां एम आत्मामां राग ने दया-दानने-विकल्प जे पुण्य-पापना के शरीरना, एनाथी जुदो पाडतां, एमां पूरणस्वरूप भर्युं छे एमां एकाग्र थतां, ते केवळज्ञान एटले परमात्म दशा-मोक्षदशा तेने उत्पन्न थाय छे.
आहा... हा! मोक्षनी दशानो उत्पन्न थवानो उपाय के रागआदि विकल्प छे ते दुःखरूप छे एनाथी मुक्त थवुं अने स्वभावनी पूरणतामां एकाग्र थवुं ए दुःखथी मुक्त थवुं ते नास्ति अने तेना स्थानमां अतिन्द्रीयज्ञान प्रगट थवुं ते अस्ति!
शब्दो पण एके एक झीणां छे! खबर छे दुनियानी बधांनी खबर छे! आ माल जुदी जातनो छे भाई!
आहा... हा! ‘केवळज्ञानने उत्पन्न करनारी, भाषा छे ने...! ‘सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशवामां समर्थ एवुं केवळज्ञान.’ पूरणज्ञान जयारे प्रगट थाय छे. आत्मामां त्यारे ई सर्व पदार्थना स्वभावने प्रकाशवा समर्थ छे. पहेलो तो ई सिद्धांत सिद्ध कर्यो! बीजो... ए केवळज्ञानने उत्पन्न करनारी भेदज्ञानज्योति प्रगट थवाथी’ आहा... हा! व्यवहार करतां करतां केवळज्ञान थशे एम न आव्युं एमां भई... ए दया, दान, भक्ति, व्रत, पूजा एवा व्यवहार सद्आचरण करो ए करता सर्वज्ञपणुं-मोक्ष थशे एम नथी.
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श्री प्रवचन रत्नो-१ ३१
आहा... हा! एनाथी भिन्न पाडतां अने स्वभाव जे परिपूर्ण छे तेमां एकाग्र थतां, आमांथी खसतां अने आमां वसतां आहाहा! ‘परथी खस, स्वभावमां वस ए टूंकुं टच, ए तारे माटे बस!’ आकरां सिद्धांतो छे बापु! ए आंही कहे छे परथी खस. भेद कर! राग चाहेतो दया-दाननो हो पण एनाथी भेद-भिन्न कर अने स्वरूप जे छे तेमां वस! एकाग्र था... तो ते भेदज्ञान द्वारा केवळज्ञाननी प्राप्ति के जे केवळज्ञान सर्व पदार्थने जाणनारुं छे एवुं केवळज्ञान उत्पन्न थशे.
आहा... हा! जेम चोसठप्होरी तीखाशमांथी, चोसठप्होरी तीखाश बहार आवे छे एम अंदर सर्वज्ञस्वभावमां एकाग्र थतां, रागथी भिन्न पडतां, सर्वज्ञ स्वभाव शक्तिरूपे छे ए अवस्थामां पर्यायमां प्रगटरूपे थाय छे. समजाणुं कांई?
आवी वात छे भाई! लोको तो क्यांय बहारमां मथ्या (करे छे) भगवाननी भक्ति करीने ईश्वरनी भक्ति करी ने थई जाय? हवे ईश्वरनी भक्ति करे ई तो राग छे. अने तारो माल त्यां क्य ां छे के त्यांथी आवे? तारो तो आंही पडयो छे अंदर! जे कंई प्रगट करवानी तारी धर्मदशा-शांतदशा प्रगट करवानी तने भावना होय, तो ई त्यां छे ई शांतदशा! तारी शांतदशा क्यां भगवान पासे छे? तारी शांतदशा प्रगट करवानुं भरेलुं स्थान तारुं तत्त्व अंदर छे. ए प्राप्तनी प्राप्ति छे. ‘छे’ एमांथी आवशे. भगवान पासे छे ई एनी छे. समजाणुं कांई...?
आहा... हा! ई बे लीटीमां तो घणुं छे!! आवो जे जीव वर्णव्यो, जव कहेतां आत्मा छे. ‘सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशवामां समर्थ’ आहा... हा... हा! प्रभुआत्माने जयारे केवळज्ञान थाय छे-एकलुं ज्ञान प्रगट होय छे. विकार नहीं, अल्पज्ञता नहीं. पूरुं (पूर्ण) ज्ञान थाय छे आत्माने जयारे, ए केवळज्ञान छे. ए केवळज्ञान, सर्व पदार्थना स्वभावने जाणवा समर्थ छे. ए केवळज्ञान, अने परद्रव्यथी भिन्न आत्माने करतां, जेमां ई ज्ञान पणुं पूरुं भर्युं छे तेमां एकाग्र थतां, परथी एकाग्रता छूटतां, स्वमां एकाग्रता करतां, ए भेदज्ञाननी ज्योतिथी केवळज्ञान उत्पन्न थाय छे.
आहा... हा! भेदज्ञान कहो के मोक्षमार्ग कहो, केवळज्ञान कहो के मोक्ष कहो. आहा...! केटलुं याद रहे आमां? बधुं अजाण्या जेवुं लागे बधुं! बापु! मारग कोई जुदो छे भाई! धरम, ए धरम प्रगट थवो, धरम एटले आत्मानी शांति! वीतरागता! निर्दोषता! स्वच्छता! ए प्रगट थवुं ए क्यांथी प्रगट थाय? कहे छे के परथी हठी, परथी जुदुं पाडी अने जेमां ए शक्तिओ पडी छे तेमां एकाग्रता थतां, ए स्वच्छताथी भरेलो भगवान छे, ए अतीन्द्रियज्ञानथी पूरो भर्यो छे प्रभु! अतीन्द्रिय आनंदना स्वभावथी परिपूर्ण भरेलो भगवान छे.
जे वस्तु होय तेनो स्वभाव अपूर्ण न होय. पूरण स्वभावथी भरेलो भगवान! (आत्मद्रव्य) एमां एकाग्र थवाथी, अने परथी भिन्न पडवाथी/परथी नास्ति ने स्वथी अस्ति एमां एकाग्रता, एवुं जे भेदज्ञान ए मोक्ष नाम पूरणज्ञान उत्पन्न करवानुं कारण छे.
आहा... हा! आमां हवे नवराश केदि’ मळे! आखो दि’ धंधा... पाणी! बायडी-छोकरां साचववां, धंधा करवा, एमां धरम तो नहीं पण पुण्यनां य ठेकाणां नहीं. के बे-चार कलाक सत्य आवी
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३२ श्री प्रवचन रत्नो-१ चीज छे एने वांचवी-विचारवी-सांभळवी, एवो वखत न मळे! भाई?
आंही तो एकदम भगवान आत्माने सिद्ध करी ‘जीवो’ आवो, आवो छे गुणपर्यायवाळो, उत्पाद-व्यय-ध्रुववाळो, दर्शनज्ञानज्योति, ए जीव (अने) बीजां तत्त्वो छे. बीजा तत्त्वो न होय तो बीजां तत्त्वोने लक्षे विकार थाय ए विकार न होय. पोताना स्वभावना आश्रये विकार न थाय. केमके स्वभावमां विकार छे नहीं. एथी जे विकार थाय छे पुण्य-पापनो, ए परद्रव्यना लक्षे थाय छे. तेथी परद्रव्य अने परद्रव्यना गुणोनो जेमां अभाव छे एटले एने परद्रव्य उपर लक्ष करवानुं छे नहीं.
आहा... हा! तारामां ज भरेला/ई पीपरमां जेम लीलोरंग भरेलो छे, काळारंगनो नाश थईने ए लीलो प्रगट छे, अंदर भर्यो छे. लीलो (रंग) बहारथी कांई आवतो नथी. लीली थाय छे ने आ पीपर...! लीलो रंग! एमां पडयो छे ई बहार आवे छे.
एम प्रभु आत्मामां लीलो नाम अनंतज्ञान अने तीखो नाम अनंतआनंद अनंत वीर्य, अनंत दर्शन, अनंत स्वच्छता, अनंत प्रभुता, एवी शक्तिथी भरेलुं जीवतत्त्व छे! एने केवळज्ञानने मुक्तिप्राप्त करनारने परद्रव्यथी भिन्न पाडीने, पोताना पूरण स्वभावमां, (पूर्ण) पर्याय प्रगट करवा माटे, पोताना पूरणस्वभावमां एकाग्र थतां ते भेदज्ञानज्योतिनो उदय थवाथी केवळज्ञान उत्पन्न थाय छे) ईश्वरनी भक्ति ने करोडोना दान ने माळा जपे-माळा ए बधुं तो शुभ राग छे- विकल्प छे एनाथी भेद पाडे जुदु पाडे, केमके स्वरूपमां ए राग नथी स्वरूप तो ज्ञान दर्शनने आनंदथी भरेलुं छे.
आहा... हा! ‘सर्व पदार्थोना स्वभवने प्रकाशवामां समर्थ एवुं केवळज्ञान’ ए केवळज्ञाननी सिद्धि करी. कोई एम कहे के त्रणकाळनुं ज्ञान थाय नहीं आत्माने... सर्व पदार्थोना स्वभावने जाणवानी शक्ति आत्मामां छे ज नहीं, एने आंही जूठ्ठो ठराव्यो छे.
आहा... हा! भाई...! खरेखर तो तारो ज्ञस्वभाव छे ने ‘हा’ - जाणवुं’ ए स्वभाव छे ने...! ई कोनो स्वभाव छे? शरीरनो? रागनो? कर्मनो? ई तो ‘जाणवुं’ चैतन्यनो स्वभाव छे, आत्मानो (स्वभाव छे) जेनो जे स्वभाव छे ए ज्ञस्वभाव ए अपूर्ण न होय. एनो स्व.. भाव छे पोतानो भाव, ए अपूर्ण न होय, विपरीत न होय. ए पूरणस्वरूप छे!! ए पूरण शक्तिरूपे पूरणस्वरूप छे. एने... राग-दया-दानना विकल्पोथी जुदो पाडी केमके पूरण थवानी शक्ति एनामां (रागादिमां) नथी, रागमां-व्यवहारमां, पूर्ण थवानी शक्ति तो स्वभावमां छे. एथी स्वभावमां एकाग्र थतां त्रिकाळी चैतन्यस्वभावमां एकाग्र थतां अने रागनी-पुण्यपापनी क्रियाथी भिन्न पडतां, जे सर्वज्ञस्वभाव, सर्वपदार्थना स्वभावने प्रकाशवां समर्थ छे, ते भेदज्ञानज्योतिथी केवळज्ञान थाय छे.
आहा... हा! आमां केटलुं याद राखवुं! बधा नवा सिद्धांत लागे! नवा नथी बापु! तारुं स्वरूप ज ए छे. तें जाण्यो नथी तने! ए चीज अत्यारे बधी गूम थई गई छे. ई हवे बहार आवे छे!
आहा... हा! भाई... तुं कोण छो? जेम पीपर चोसठप्होरी एटले रूपिये रूपियो सोळआना! सोळआना एटले चोसठ पैसा कहो के रूपियो कहो (पूरण) स्वभावथी भरेली वस्तु छे एम आ भगवान आत्मा वस्तु छे ए सोळआना नाम पूरण ज्ञानने आनंदथी भरेली शक्तिवाळुं तत्त्व छे. ए शक्तिमां एकाग्र थतां/ज्यारे ए शक्तिमां एकाग्र थवुं छे त्यारे परथी खसी जवुं छे, परतरफथी भिन्न पडया विना,
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श्री प्रवचन रत्नो-१ ३३ स्वमां एकाग्र थवाय नहीं... आहा! अने स्वमां एकाग्र थया विना, स्वमां शक्ति जे छे एमां एकाग्र थया विना एनी दशामां परिपूर्ण ज्ञानने परिपूर्ण आनंद कोई दि’ प्रगट न थाय. समजाणुं कांई...?
ए भाई? आवी वातुं छे! ‘छे’ दुनियाने एवुं लागे एवुं छे! पागल जेवुं लागे एवुं छे. आखी लाईन फेर! हें? आखो मारग फेर छे बापु! तने खबर नथी भाई! अनंतकाळनो अजाण्यो मारग! एने आंही जाणवानुं कहीने, पूरणनी प्राप्ति एनाथी थशे. पूरण परमात्मा दशा-जनम- मरणसहित दशा ए रागथी भिन्न, अने पूरण स्वभावमां एकाग्रता एनाथी थशे.
आहा... हा! माणसो तो कंईक माने ने कंईक माने! एम अज्ञानी अनादिथी भ्रमणामां पडया, परिभ्रमण करी, चोराशीना अवतार, कागडाना ने कूतरांना अवतार करी-कीरने, मांड मांड माणसपणुं मळ्युं होय, एमां जो आ रीते नहीं समजे, पाछा ई ना ई दोषे अवतार छे!
आहा... हा! आंही तो ई अवतारनो अभाव करवानी रीत बतावे छे! के जेमां ई भव ने भवनो भाव जेना स्वरूपमां नथी, जेना स्वभावमां तो परिपूर्ण ज्ञानआनंद छे. आहाहा! भाई तुं वस्तु छो! वस्तु छे तेमां शक्ति अने गुणो वसेलां-रहेलां छे. ए शक्ति-गुण विनानी चीज होई शके नहीं. अने ए शक्तिने गुण परिपूर्ण-आनंदज्ञानादि परिपूर्ण शक्ति छे. तो... जे तारी चीजमां नथी एवा आ शरीरवाणीमन, पुण्य-पापना भाव, एनाथी जुदो पडी अने तारामां जे पुरण पडयुं छे तेमां एनो आदर करी, तेमां एकाग्र थई, तने तारी दशामां केवळज्ञान मुक्तदशा, दुःखथी मुक्त अने आनंदने ज्ञानथी (परिपूर्ण) दशा थशे तारी.
आहा... हा! बे लीटीमां तो बहु भर्युं छे! एकला सिद्धांतो छे! आहाहा! ‘जयारे आ जीव’ एम कीधुं ने... जीवनी व्याख्या तो (पहेलां) करी. हवे जयारे आ जीव हवे पोते करे त्यारे! को’ क करी दे ने को’ क करावी दे ने? एम छे नहीं. आहा... हा! ‘जयारे आ आत्मा, सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशवामां समर्थ एवा केवळज्ञान-सर्वज्ञज्ञान’ ए पूरणज्ञान प्रगट करे तो एनो अर्थ छे के अंदर पूरण ज्ञान छे. आहा... हा! अंदर केवळ... एक... केवळ एक ज्ञानस्वरूप ज प्रभु छे. आहा...! अस्ति चैतन्यस्वरूप पूरण, ज्ञानने आनंदथी पूरण छे. ते चीजमां जेने एनो आदर करवो होय, एने रावादिनो आदर छोडी देवो, एटले एनाथी भिन्न पडवुं. आहा... हा! चाहे तो दया-दान-व्रतने भक्ति-पूजा (ना भाव) हो! ए पण एक राग छे विकल्प छे वृत्ति छे. (श्रोताः) आ सांभळवुं य राग? (उत्तरः) ई ए राग छे ने कहेवुं ई ए राग छे.
आहा... हा! आ तो... जनम-मरण रहित थवानी वातुं छे प्रभु! जनम-मरणने चोराशीना अवतार करी-करीने अनंता अवतार कर्यां! वस्तु छे ने पोते! ते रही क्यां अत्यार सुधी? छे तो छे आत्मा. ए रही चार गति रखडवामां रही अत्यारसुधी आ कागडामां ने कूतरामां ने भव करी-करी नरकनाने निगोदना ने मनुष्यना अने एक गतिमां गमे त्यां जाय दुःख ज छे! दुःख ज छे स्वर्ग होय तो छे पराधीनता अबजोपति, आ शेठियाव धूळना धणी! ए बधा दुःखी बचारा छे. आहा... हा... हा! दुःखी छे बिचारां!
(श्रोताः) पैसा जोईएने बिचारा! (उत्तरः) पैसा जोईए छे ने एने! आत्मा जोतो नथी एने
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३४ श्री प्रवचन रत्नो-१ आ धूळ जोईए छे. आ लावो... आ लावो... आ मारुं ए मागण भिखारी छे. अंदरमां अनंतज्ञानने अनंतआनंद भर्यो छे. एवी लक्ष्मीवाळो प्रभु छे अंदर. एनी पासे जातो नथी! ज्यां मळे एवुं छे त्यां जातो नथी. जेमां आवे एवुं नथी त्यां जईने माग्या करे छे. अने ते पण पैसा आवे तो एनी पासे आवतो नथी. एनी पासे तो ममता आवे छे के पैसा आव्या ते मारा! ममता (छे) पैसो, पैसामां रहे छे जडमां आहा... हा... हा! आ तो एवी चीज छे! वस्तु छे ने...! आंही पुरणज्ञान प्रगट करवानो उपाय कहे छे ने...! पूरणज्ञान प्रगट करवानी समयनी दशा एवी तो अनंतीशक्ति जेनामां होय, एमां अकाग्र थाय तो केवळज्ञान थाय. ए केमके केवळज्ञान एक ज पर्याय एकसमये आवे ते बीजुं शुं थाय? आहा.. हा! एक सेकन्डना असंख्यभागमां-नानामां नाना सूक्ष्म काळमां त्रणकाळ-त्रणलोकने जाणे एवी एनी शक्ति पर्यायमां प्रगट थाय, एने केवळज्ञान कहे छे दशामां छे केवळज्ञान. एवी तो अनंती-अनंती शक्तिओ अंदरमां पडी छे (आत्मामां) जो एक ज पर्याय बहार आवी ने खाली थई जाय एवुं होय तो तो खलास थई जाय पछी शुं रह्युं! एम कोई दि’ बने नहीं.
आहा... हा! सत्यना सिद्धांतो बहु कठण छे बापु! आहा... हा! अत्यारे तो लोकोए, गुरु ए ने धरमना गुरुओए कंईकनुं कंईक चलावीने चलावी मार्युं छे! (अमने) बधी खबर छे दुनियानी!
आहा... हा! सत् प्रभु! ... ‘छे’ अने जे ‘छे’ ई शक्ति विनानो न होय, एटले एना गुण विनानो-स्वभाव विनानो न होय. जेम ‘छे’ एम एना गुणो पण, शक्ति पण त्रिकाळ छे. जेम द्रव्य पूरण छे एम एनां गुणो पण पूरण छे. एवो भगवान आत्मा,
आहा...! अरे, एने केम विश्वास बेसे?! आंही पांच-पचास हजार पैसा मळे त्यां राजी-राजी थई जाय! छे धूळ... एमां...!
मूढ छे तेथी खुशी थाय. मूढ छे ने मूढ! साधारण कोने कहेवुं? प्रभुतो अंदर आनंदथी भरेलो छे. एनी लक्ष्मीनो पार नथी! अमाप ने अमाप... अमापने... अपरिमित! अपरिमित नाम मर्यादा जेमां नथी एवो स्वभाव छे बापु! जे स्वभाव होय एने मर्यादा होय नहीं. ए शुं? आहा...!
एवुं जे आत्मतत्त्व! जेमां अपरिमित, मर्यादा विनाना स्वभाव ने शक्तिओ पडी छे. एनो विश्वास लावी अने पुण्य-पापना भाव अने एनां फळ बहारनां एनो विश्वास ऊठाडी दई आहाहा... हा! एमां हुं नथी, एमां मने कंई लाभ नथी आहा... हा! अने जेमां हुं छुं तेनाथी मने लाभ छे, एवो पोतानो स्वभाव स्वभाववान जेम छे अनादि... एम एनो स्वभाव, स्वभाववान होय ने स्वभाव न होय? साकर होय ने गळपण न होय? एम बने?
एम आत्मा स्वभाववान छे अने एनो स्वभाव अनंद ने ज्ञाननो (न होय) एम बने नहीं त्रणकाळमां! आहा... हा! अने जेनो स्वभाव छे ए परिपूर्ण छे. स्व... भाव! पोतानो भाव, पोतानुं सत्त्व, पोतानी शक्ति, पोतानो गुण पोतानो स्वभाव! आहा...! एवा आत्मामां एकाग्र थवाथी अने रागने शरीरनी क्रियाथी भिन्न पडवाथी एने केवळज्ञानज्योति सर्वपदार्थने प्रकाशवामां समर्थ एवी प्रगट थाय छे.
ओला-शुभराग! दया-दान ने व्रत शुभराग! वृत्ति ऊठे छे वृत्ति, विकल्प ए राग छे.
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श्री प्रवचन रत्नो-१ ३प आहा...! एनाथी भिन्न पडतां, स्वरूपमां अभिन्नता थतां ‘परथी विभक्त ने स्वथी एकत्व’ त्रीजीगाथामां कहेशे. आहा... हा! समजाणुं कांई...?
हवे आमां देव-गुरु-शास्त्रथी य मळे एवुं नथी एम आंही आव्युं आंही तो! केमके जे आ गुणो छे ई एमां नथी. अने एना गुणो जे छे ई आमां नथी. तो... ज्यां गुण छे त्यां जाय तो वस्तु मळे! आ गुणो त्यां नथी, एनी पासे.
(श्रोताः) भले एना गुणो एनी पासे नथी पण बतावनार तो जोईए ने? (उत्तरः) बतावनार जोईए पण ‘जाणनारो जाणे’ त्यारे बतावनारे बताव्युं एम कहेवाय ने...! ‘ए आ नळियां सोनाना थया ल्यो! (लोको) सवारमां नथी कहेतां? कहेवतमां कहे छे. सूरज ऊगी ग्योने ओलो ऊठे नहीं. ओला नळियां धोळां थई ग्या होय ने सूरज ऊग्यो’ तो... (श्रोताः) ए तडको थयो होय! (उत्तरः) ए तडको थयो तो नळियां सोनाना थयां तो ते जुए एने के न जुए एने? ओलाए तो कह्युंः एला सोनाना नळियां थयां हवे तो ऊठ, क्यां सुधी सूई रहीश? एटले शुं? नळियां ऊजळां थयां सूर्यना प्रकाशथी पण ‘जोनार’ ने खबर पडे के आंख्युं (वींचीने सूतेलाने खबर पडे?)
ओरडो एक होय, बारणुं एक होय आही त्रण गोदडां ओढयां होय, आंख्युंमां चीपडां वळ्यां होय! हवे एने शीरीते जोवुं ई? समजाणुं कांई...?
आ बधा दाखला छे, शास्त्रमां छे हो? एके एक दाखला. एम अनादिथी मिथ्यादर्शनज्ञान अज्ञानने (भ्रमना) एमां चीपडां तो पडयां छे अंदर, आंख्युं तो बंध छे. अने ओरडो एक ज छे. बारणुं खुल्लु करवाने-जवाने एनी सामुं तो जोतो नथी तो नळियां धोळा क्यांथी देखाय एने आहा... हा! एम आ भगवान आत्मा अज्ञानने राग-द्वेषमां ऊंघे छे. एने एम कहे के आ चैतन्यप्रकाशनुं पूर अंदर पडयुं छे ने...! पण बतावनारे बताव्युं पण जोनारेत्रप जोया विना आस्था क्यांथी बेसे?
ए गुणनो तेज छे, चैतन्यना पूरनुं तेज छे प्रभु तो. आ सूर्यना प्रकाशना तेजने पोताना तेजनी खबर नथी (सूर्यना) प्रकाशनी खबर तो आ (आत्माना) प्रकाशने खबर छे चैतन्यप्रकाश जाणे छे के आ जडनो प्रकाश छे. हुं चैतन्य प्रकाश छुं.
आहा... हा! पण एनुं एने माहात्म्य आव्युं नथी ने...! आत्मा एटले शुं ने केवडो, केम? अने एनी दशा पूरण प्रगट थाय ते केवी, केवडी होय? कोई दि’ सांभळ्युं नथी, बेठुं नथी. नवरो नथी. बावीस बावीस कलाक त्रेवीस कलाक तो बायडी, छोकरां धंधो ने पाप-पाप बधुं! कलाक-बे कलाक मळे तो तेने मळी जाय एवा, रस्ते चडावी द्ये बीजे! ज्यां छे त्यां जाय नहीं, नथी त्यां जशे कुदेवने... ए पुण्य करो, दानकरो, व्रतकरो... जे एमां नथी आत्मा, अने एमांथी प्रगटे एवो नथी. एमां चडावी दीधां एने! आहा...! झीणुं तो पडे भाई...!
आहा... हा! ‘भेदज्ञानज्योतिनो उदय थवाथी’ भाषा देखो! भाई... श्रीमद्वापरे छे ने.. ‘उदय थाय चारित्रनो’ उदय नाम प्रगट. आहा... हा! अस्ति छे वस्तु छे आत्मा! तो एनी शक्ति-कांईक स्वभाव छे के नहीं. तो जेनी वस्तुस्थिति एकरूपे छे, परना अभावस्वभावस्वरूप छे. एम एनी
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३६ श्री प्रवचन रत्नो-१ शक्तिओ एकरूपे पूरण छे. अने ते पण परना भावना अभावस्वभावस्वरूप छे.
आहा... हा! एवो भगवान आत्मा, सर्वोत्कृष्ट पोते परमात्मा स्वरूपज शक्तिए-स्वभावे छे, एमां एकाग्र थवाथी अने रागनी क्रिया ने शरीरनी क्रिया ने बहारनी क्रियाथी भेदपाडीने जुदो पाडीने, केवळज्ञान उत्पन्न करनारी भेदज्ञानज्योतिनो उदय थाय छे.
आहा... हा! आवुं छे! आ बहारमां शुं करवुं आमां? बहारनुं कांई करीश (तोपण) अंदरनुं मळे एवुं नथी ले! (श्रोताः) पण बहारनुं क्यां करी शके छे? (उत्तरः) बहारमां छे पण क्यां, बहारमां तुं छो क्यां? शरीरमां छे? वाणीमां, जडमां पैसामां? पुण्यपापना भाव थाय शुभअशुभ, एमां आत्मा छे?
आहा... हा! न्यायथी जरी, लोजिकथी... पकडशे के नहीं? हें? एमने एम आंधळे-आंधळुं अरेरे! आंख्युं वींचीने... क्यांय चाल्यो जशे! देहनी स्थिति पूरी थई जशे, थई रह्युं! आत्मा तो अविनाशी छे ते आत्मा भेगो नाश थाय एवो नथी. शरीर तो नाश थई जशे आंही.
अने (अज्ञानी) मारा, आ मारा ए मानीने चाल्यो जशे, रखडवा चोराशीमां...! आहा...! त्यां कांई धर्मशाळा नथी! पांजरापोळ त्यां नथी क्यांय! त्यां ‘माशीबा बेठां नथी के आवो भाई!
आहा...! जेमां तुं छो... तारो स्वभाव छे अने ते स्वभाथी स्वभावथी खाली होय नहीं प्रभु! ए स्वभाव पूरण छे. ए गुणो अनंतगुणोनी शी वातो करवी आहा...! जेने संख्याए गुणनो पार न मळे! आहा... हा... हा! ए दरेक गुण परिपूर्ण छे अने एवा परिपूर्ण गुणनो पुंज प्रभु ते आत्मा छे. ए आत्मामां रागथी भेदज्ञान करीने, मार्ग आ छे बापु! बीजा गमे ते रीते चडावे बीजे रस्ते! जीवन चाल्या जशे प्रभु! बापु, मनुष्यपणुं अनंत काळे मळवुं मुश्केल छे प्रभु!
आहा... हा! बे लीटीमां तो ओहोहोहो! पछी कहे छे, ‘सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशवामां समर्थ एवा केवळज्ञान’ एकली पर्याय पूर्ण ज्ञाननी प्रगट थाय एने ‘उत्पन्न करनारी भेदज्ञानज्योति’ एने परथी भिन्न पाडवानी भेदज्ञानदशा ते पूरणप्राप्तिनो उपाय छे. ए सर्व परद्रव्यथी छूटी/भेद कह्युं ने...? भेदज्ञान कीधुं ने..! तो सर्व परद्रव्यथी छूटी, पुण्यने पाप ना भाव, दया-दान आदिना भाव ए परद्रव्य राग छे एनाथी छूटी ‘दर्शनज्ञानस्वभावमां नियत वृत्तिरूप’ आहा.. हा!
‘जे दर्शनज्ञानस्वभाव छे एमां नियत-निश्चय परिणतिरूप, अस्तित्वरूप आत्मतत्त्व साथे एकत्वगतपणे वर्ते छे’ आहा... हा! जयारे भगवान आत्मा परद्रव्यथी छूटी पोताना ज्ञानदर्शन स्वभावमां स्थिर रहे-नियतवृत्ति-निश्चयवृत्तिरूप छे एवुं अस्तित्व रूप आत्मतत्त्व साथे एकत्वगतपणे वर्ते त्यारे दर्शनज्ञानचारित्रपणुं कह्युं छेने पाछुं पाठमां ‘चरित्तदंसणणाण’ हतुं (अहींयां) पाछुं लई लीधुं हतुं ई. (ओलुं तो) पद्यमां गोठववा साटु!
आहा... हा! ‘सर्व परद्रव्योथी छूटी’ एमां कयुं बाकी रह्युं? परमात्मा, देव-गुरु-शास्त्र, एनाथी छूटी! ए भाई...! केवळी गुरुए परद्रव्य? एना बापे प्रश्न कर्यो’ तो! दसनी साल, बोटादमां म्युनिसिपलमां व्याख्यान चालतुं हतुं आ प्रश्न, देवगुरुशास्त्र ई पर? शुद्ध छे ई पर? लाखवार पर. आंही परद्रव्य कीधां ने...! ‘सर्वपरद्रव्यो’ कीधुं तो एमां देवगुरुशास्त्र बाकी राख्यां?
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श्री प्रवचन रत्नो-१ ३७
आहा... हा! ‘सर्व परद्रव्योथी छूटी’ दर्शनज्ञानस्वभाव पोतानो... एमां ज्ञानदर्शन चारित्र छे ने...! ‘नियत वृत्तिरूप एवुं अस्तित्वरूप आत्मतत्त्व साथे एकत्वगतपणे वर्ते त्यारे ते दर्शनज्ञानचारित्रमां स्थित होवाथी’ आहा... हा... हा! अंर्त स्वरूपमां श्रद्धामां वर्ते! ज्ञानमां वर्ते ने स्थिरतामां वर्ते त्यारे ते आत्मा ज्ञानदर्शन-चारित्रमां आव्यो, एथी तेने स्वसमय नाम आत्मा कहेवामां आवे छे. स्वसमय एने कहीए! एने आत्मा कहीए.
आहा... हा! ‘छे’ तो ‘छे’ पण परिणतिमां श्रद्धाज्ञानचारित्रमां आवे त्यारे एने ‘छे’ आत्मा एने स्वसमय कहीए एम कहे छे.
शुं कह्युं ई...? छे तो छे आहा...! वस्तु तो छे अनंत आत्माओ पडया छे ने! पण एनुं- एनी तरफनी प्रतीति, ज्ञान ने रमणता, पूर्णानंदनानाथमां श्रद्धाज्ञानने चारित्रनी परिणति करतां तेने आत्मा साचो कहेवामां आवे छे. अने ते स्वसमय नाम आत्मा आत्मारूपे थयो एम एने कहेवामां आवे छे. अने तेने धर्मी कहेवामां आवे छे.
विशेष कहेवाशे... (प्रमाणवचनगुरुदेव!)
गंभीर वात छे. पोतानी विशेष पर्यायमां जे पर
जणाय छे ते खरेखर पोतानी पर्याय जणाय छे;
एटले सामान्य अने विशेषने जोनारा एम बे चक्षु
कह्यां छे पण परनी वात लीधी नथी.
-सामान्यनुं यथार्थ ज्ञान थाय तो विशेषनुं
लीधी केमके आत्मा जे परने जाणे छे ए खरेखर
तो पोतानी पर्यायमां पर्यायने जाणे छे. ल्यो, आवी
सूक्ष्म वात! परने जाणे छे, एम कहेवुं ए तो
असद्भूत व्यवहार छे. खरेखर तो त्रिकाळ सामान्य
आत्मानुं जे विशेष छे ते विशेषमां विशेषनेज
जाणवानुं छे, परने नहि.