Pravach Ratno Part 1-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२ श्री प्रवचन रत्नो -१

वळी ते केवो छे? पोताना अने परद्रव्योना आकारोने प्रकाशवानुं सामर्थ्य होवाथी जेणे समस्त रूपने प्रकाशनारुं एकरूपपणुं प्राप्त कर्यु छे. (अर्थात् जेमां अनेक वस्तुओना आकार प्रतिभासे छ एवा एक ज्ञानना आकाररूप ते छे.) आ विशेषणथी, ज्ञान पोताने ज जाणे छे, परने नथी जाणतुं एम एकाकार ज माननारनो, तथा पोतानेनथी जाणतुं पण परने जाणे छे एम अनेकाकार माननारनो, व्यवच्छेद थयो.

वळी ते केवो छे? अन्य द्रव्योना जे विशिष्ट गुणो-अवगाहन-गति-स्थिति-वर्तनाहेतुपणुं अने रूपीपणुं-तेमना अभावने लीधे अने असाधारण चैतन्यरूपता-स्वभावना सद्भावने लीधे आकाश, धर्म, अधर्म, काळ अने पुद्गल-ए पांच द्रव्योथी जे भिन्न छे. आ विशेषणथी, एक ब्रह्मवस्तुने ज माननारनो व्यवच्छेद थयो.

वळी ते केवो छे? अनंत अन्यद्रव्यो साथे अत्यंत एकक्षेत्रावगाहरूप होवा छतां पण पोताना स्वरूपथी नहि छूटवानी जे टंकोत्कीर्ण चैतन्यस्वभावरूप छे. आ विशेषणथी, वस्तुस्वभावनो नियम बताव्यो-आवो जीव नामनो पदार्थ समान छे.

ज्यारे आ (जीव), सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशवामां समर्थ एवा केवळज्ञानने उत्पन्न करनारी भेदज्ञानज्योतिनो उदय थवाथी, सर्व परद्रव्योथी छूटी दर्शनज्ञानस्वभावमां नियत वृत्तिरूप (अस्तित्वरूप) आत्मतत्त्व साथे एकत्वगतपणे वर्ते छे त्यारे दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित होवाथी युगपद् अने एकत्वपूर्वक जाणतो तथा स्व-रूपे एकत्वपूर्वक परिणमतो एवो ते ‘स्वसमय’ एम प्रतीतरूप करवामां आवे छे; पण ज्यारे ते अनादि अविद्यारूपी जे केळ तेना मूळनी गाठ जेवो जे (पुष्टथयेलो) मोह तेना उदय अनुसार प्रवृत्तिना आधीनपणाथी, दर्शनज्ञानस्वभावमां नियत वृत्तिरूप आत्मतत्त्वथी छूटी परद्रव्यना निमित्तथी उत्पन्न मोहरागद्वेषादिभावो साथे एकत्व गतपणे (एकपणुं मानीने) वर्ते छे त्यारे पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां स्थित होवाथी युगपद् परने एकत्वपूर्वक जाणतो तथा पररूपे एकत्वपूर्वक परिणमतो एवो ते ‘परसमय’ एम प्रतीतरूप करवामां आवे छे.

आ रीते जीव नामना पदार्थने स्वसमय अने परसमय-एवुं द्विविधपणुं प्रगट थाय छे. भावार्थः- जीव नामनी वस्तुने पदार्थ कहेल छे.’ जीव’ एवो अक्षरोनो समूह ते ‘पद’ छे अने ते पदथी जे द्रव्यपर्यायरूप अनेकांतस्वरूपपणुं निश्चित करवामां आवे ते पदार्थ छे, ए जीवपदार्थ उत्पादव्ययध्रौव्यमयी सत्तास्वरूप छे, दर्शनज्ञानमयी चेतनास्वरूप छे, अनंतधर्मस्वरूप द्रव्य छे, द्रव्य होवाथी वस्तु छे, गुणपर्यायवाळो छे, तेनुं स्वपरप्रकाशकज्ञान अनेकाकाररूप एक छे, वळी ते (जीवपदार्थ) आकाशादिथी भिन्न असाधारण चैतन्यगुणस्वरूप छे अनेअन्य द्रव्यो साथे एक क्षेत्रमां रहेवा छतां पोताना स्वरूपने छोडतो नथी. आवो जीव नामनो पदार्थ समय छे. ज्यारे ते पोताना स्वभावमां स्थित होय त्यारे तो स्वसमय छे अने परस्वभाव -रागद्वेषमोहरूप थईने रहे त्यारे परसमय छे. ए प्रमाणे जीवने द्विविधपणुं आवे छे.

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