श्री प्रवचन रत्नो-१ ३ गाथा–२ प्रवचनक्रमांक–८ दिनांकः १५–६–७८
‘प्रथम गाथामां समयनुं प्राभृत कहेवानी प्रतिज्ञा करी’, सिद्धांत-पदार्थने कहेवानी प्रतिज्ञा करी, त्यां ए आकांक्षा थाय-ईच्छा थाय ‘के समय एटले शुं?’ समय कहेवो कोने? तमे समयप्राभृत कहेवा मागो छो... तो्र समय कहेवो कोने? शुं तमे कहेवा मागो छो? समय एटले शुं?
आहा...! के ‘तेथी हवे पहेलां समयने ज कहे छे’ -कोने समय कहेवो एनी व्याख्या बीजी गाथाथी शरू करे छे.
‘जीवो’ उपाडयुं आंहीथी पहेलुं जीवो! ‘जीवो’ एटले जीव छे ने...! जीवने कहेवुं छे आंही! अने तेथी ४७ शक्तिमां पहेली शक्ति ‘जीवत्वशक्ति’ लीधी छे. ए आंहीथी उपाडी छे. जीव जीवत्वशक्तिथी बिराजे छे त्रिकाळ! भगवान आत्मा त्रिकाळ भाव! जीवत्वशक्ति एटले? अनंतज्ञान, अनंत दर्शन, अनंतआनंद, अनंत बळ, एनाथी एनुं जीवन अनादिथी छे.
एवो ‘जीवो’ एम उपाडयुं! आम संस्कृतमां विसर्ग थई ग्यो! ‘जीवो’ आम कहीए तो जीवो! जे जीव छे ते रीते जीवो! ए जीवतरशक्ति कीधी! जे रीते जीव छे वस्तु! आहा. हा! ते रीते जीवो! एने जीव कहीए.
आहा.. हा! आ शरीरथी ने.. ईंद्रियोथी ने दशप्राणथी जीवे ए जीव नहीं. (तत्र तावत्समय एवाभिधीयते-)
जीवो चरित्तदंसणणाणठिदो- न्यां ‘जीवो’ आव्युं ने आंही ‘ठिदो’ आव्युं! तं हि ससमयं जाण। तेने स्वसमय जाण. आहा.. हा! आदेश कर्यो छे. भगवान कुंदकुंदाचार्य ‘जाण’ एम कहे छे. ‘जाणे’ तो एनो अर्थ ई के अजाणने जाण बतावे छे. जे जाणतो नथी एने कहे छे के ‘जाण’ .
आहा..! ‘पोग्गलकम्मदेसछिदं’ च तं जाण परसमयं।। आहा... आहा.. हा!
जीव चरित-दर्शन-ज्ञानस्थित स्वसमय निश्चय जाणवो.. एम जीवो जीव एम अहीं कहे छे. पण दर्शनज्ञानचारित्रथी जीवे ते जीव छे. त्यारे एणे जीव जाण्यो कहेवाय. आहा.. हा! शुं कह्युं? ‘जे छे’ ए अनंतदर्शन ज्ञान आनंदने वीर्यथी जीवे छे! त्रिकाळ..!! पण ए जीवने ए रीते जेणे जाण्यो, मान्यो, अनुभव्यो एने स्वसमय कहेवामां आवे छे. आहा.. हा! एणे आत्माने जाण्यो एम कहेवामां आवे छे. आहा... हा!
गाथार्थ लईए पहेले... गाथार्थः ‘हे भव्य!’ छेल्ली लीटीमां ‘जाण’ (कह्युं) छे खरुं ने..! ‘जाण’ त्यारे को’ कने कहे छे ने..! ’ हे भव्य! जे जीव दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित रहे छे स्थित थई रह्यो छे, पर्यायमां हो! आहा..! जीव त्रिकाळशक्तिथी तो जीवी रह्यो छे. पण एने जीवी रह्यो छे एनुं ज्ञान जेने थाय, एनी श्रद्धा थाय. ठरे! ए साचो जीव छे. आहा.. हा! ‘चारित्रमां स्थित थई रह्यो छे’ एम छे ने..’ ‘तेने निश्चयथी स्वसमय जाण’ -एने खरो आत्मा जाण. जेने सम्यग्दर्शन... (श्रोताः) साधे, ए खरो