४ श्री प्रवचन रत्नो-१ आत्माथाय एम कीधुं? (उत्तरः) साधु, कहेनार छे ने...! साधु कहेनार छे ते त्रण बोलथी उपाडयुं छे. कहेनार पोते साधु छे ने..! तेथी छठ्ठी गाथामां, प्रमत्त-अप्रमतनो निषेध कर्यो छे ने..! पोते, प्रमत- अप्रमत (गुणस्थानमां) छे. एनो निषेध करीने, ज्ञायकभाव छुं एम कह्युं छे.
कहेनार पोतानी स्थितिने... वर्णवती भाषाथी वर्णवी रह्या छे. आहा.. हा! एने जीव एटले स्वसमय-पोतामां आव्यो छे एने ए कहीए के जीवस्वरूप भगवान! एनी सन्मुख थईने जे सम्यग्दर्शन, एनुं ज्ञान, एमां स्थिरता, एवा जीवने स्वसमयमां आव्यो अने स्वसमयने जाण्यो, अने स्वसमयरूप थयो एम कहेवामां आवे छे.
आहा.. हा.. हा! गजब शैली छे! समयसार एटले... (श्रोताः) दिव्यध्वनि..! थडुं.. पण धीमे थी अंदर ओगाळीने..! (जेम) ढोर खायने पछी अंदर ओगाळे (वागोळे) निरांते बेसीने.. (वागोळे-ओगाळे) एम ‘आ’ ओगाळवुं जोईए. एटले वारंवार एनुं मंथन थवुं जोईए. आहा..!
आहा.. हा! जीव स्वसमय एने कहीए के जेनी पर्यायमां, जेनी दशामां, दशावाननी प्रतीति थई छे. जेनी दशामां, दशावाननुं ज्ञान थयुं छे जेनी दशामां, दशावानमां ठर्यो छे ए. आहा.. हा! ‘एने स्वसमय जाण’ कुंदकुंदाचार्य आदेश करे छे. (श्रोताः) पर्यायथी जाणे! (उत्तरः) जाण.. जाणीश ज. पाठ एवो छे आहा...!
एम रहेवा दे, संदेह रहेवा दे, न जाणी शकुं रहेवा दे. मने अघरुं पडे ई रहेवा दे. ‘छे’ तेने प्राप्त करवो एमां तने अघरुं क्रेम लागे छे एम कहे छे.
आहा... हा! भगवानने पराणे पोतानो करवो होय, तो न थई शके! अरे रागने कायम राखवो होय तो नहीं थई शके. पण आ तो करी शकीश. आहा.. हा.. हा! ‘जीवो चरित्तदंसणणाणठिदो’ पहेली लीटी छे. भाषा केवी लीधी छे. जीवमां ठर्यो, दर्शनज्ञानथी ठर्यो एम न लेतां ‘जीव दर्शनज्ञानचारित्रमां ठर्यो!’ शुं कीधुं? (श्रोताः) जीव ठर्यो! (उत्तरः) एम कीधुं! ध्येय तो आत्मा छे. एने ध्येय बनावीने जे दर्शनज्ञानचारित्र थयुं, तो ई तो द्रव्यने आश्रये थयुं छे. एमां आंही तो कहे छे के जे जीव दर्शनज्ञान चारित्रपर्यायमां ठरे तेने स्वसमय कहे छे. आंही ठर्यो आम... समजाय छे? आहा.. हा!
जीव जे अनादिथी कर्मना प्रदेशे एटले भाव एवो विकार एमां ठरे छे. ए तो अनादि छे. एतो जीव अजीव छे! अने जे जीव पोतानी संपदाने पूरण संपदाने ज्ञानमां जाणी.. प्रतीत करी अने एमां ठरे छे-जीव’ एमां ठरे छे! दर्शनज्ञानचारित्रमां जीव ठरे छे. दर्शनज्ञानचारित्र जीवने आश्रये थाय छे एम न लेतां.. ए आम रागमां ठरतो, ए हवे स्वभावमां ठरे छे एम बताववुं छे.
आहा.. हा! बहु थोडा शब्दो! आ तो निवृत्तिनो मारग छे बापा! आहा..! ‘स्वसमय जाण’ - जे भगवान प्रभु पूरण संपदाथी भरेल छे ए जीव पोते पोताना सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रमां ठरे छे आंही, ए अनादिथी रागमां विकारमां ठरतो, एनी वात पहेली न लेतां, ए पछी लेशे. पहेली तो आंही शरूआत करवी छे, अने थोडा करनाराओने करवी छे एथी एणे आ ज वात लीधी पहेली. पहेला पदमां आ लीधुं ‘जीवो चरित्तदंसणणाण ठिदो’ पछी ओली वात