श्री प्रवचनो रत्नो-१ प करशे अनादिनी. आहा.. हा! ‘तेने निश्चयथी हि (कह्युं) एटले खरेखर. जे जीव पोतानी निर्मळपर्यायमां ठरे छे! जे जीवनमां रहे छे, द्रव्यमां एम नहीं द्रव्य तो रहेलुं ज छे! अभेद द्रव्य- जीवद्रव्य, जे पोताना दर्शनज्ञानचारित्रमां जे जीव ठरे छे तेने स्वसमय नाम आत्मा जाण, तेने आत्मा कहेवामां आवे छे.
आहा.. हा! जीव, जीवमां रहे छे त्रिकाळी एम नहीं, त्रिकाळी तो रहेलो छे. अने रहेलाने जाण्युं कोणे? रह्यो छे ई अंदर छे एवुं जाण्या विना रह्यो छे एवुं जाण्युं कोणे? (श्रोताः) पर्याये. आहा.. हा! परमस्वभाव भाव भगवान आत्मा! पोतामां रह्यो छे. पण रह्यो छे एवुं जाण्युं कोणे! रह्यो छे ए रह्यो छे एवा ध्रुवे जाण्युं?
आहा.. हा! जीव त्रिकाळ परम स्वभावभावपणे रहेलो छे. एवुं जेणे सम्यक्-दर्शन प्रगट कर्युं, एनी जेणे प्रतीत करी, एनुं जेणे, छे एवुं प्रतीत कर्युं! आ ‘छे’ एम जाणीने प्रतीत कर्युं. ए आत्मा प्रतीतमां आव्यो! ए आत्मा, आत्माना द्रव्यमां तो हतो. पण एनी प्रतीतमां आव्यो!
आहा..आहा..हा! ‘दंसणणाण’मां आव्यो! ए एना ज्ञानमां आव्यो ई. आहा..! भगवान आत्मा पूरणज्ञानथी तो छे, पण ‘छे’ एम जाण्युं कोणे? जाण्या विना ए ‘छे’ एम मान्युं कोणे? आहा.. हा!
भाई...? आवुं झीणुं छे, ‘आ’ झीणुं! आहा..हा! गजब वात छे!! एक एक गाथा ने एक एक पद.. शिवपदना भणकारा वागे छे! आहाहा! ए... जीव... छे. अनंत अपरिमित गुणोनो भंडार पण जेणे जाण्युं नथी, मान्युं नथी एने क्यां छे? कह्युं तुं ने.. प्रश्न थयो हतो ने आंही हमणां! भाईए प्रश्न कर्यो हतो के प्रभु! आप कारण परमात्मा कहो छो जीवने.. ‘कारणपरमात्मा’ कारण जीव.. कारण प्रभु! तो कारण होय तो एनुं कार्य आववुं जोईए ने.. पण कार्य तो आवतुं नथी, कारण परमात्मा तो छे तमे कहो छो.
प्रश्न थयो’ तो काल. आ काठियावाडमां एमना पिताश्री विरजीभाईनो दिगम्बरना शास्त्रोनो अभ्यास पहेलो एमनो ज हतो. एमना दिकरानो प्रश्न हतो, कारण परमात्मा तमे कहो छो प्रभु! तो कारण छे तो कार्य आववुं जोईए ने अने कार्य तो आवतुं नथी.
कीधुं, कोने पण...? कारणपरमात्मा छे.. एवो जेणे स्वीकार कर्यो छे.. तेने कार्य थया विना रहेतुं नथी! पण स्वीकार नथी त्यां कार्य क्यांथी आवे एने? एनी द्रष्टिमां कारणपरमात्मा छेज नहि. द्रष्टिमां तो पर्याय ने राग छे. एने कार्य आवे क्यांथी? समजाय छे आमां?
आहा.. हा! कारण.. परमात्मा.. छे, ई कोने? जेणे ‘छे’ एवुं मान्युं जाण्युं तेने..! ई जाण्युं- मान्युं तेने जीव छे ई परिणमती पर्याय छे. एनी पर्यायमां आनी कबुलात करी छे, त्यारे आंही पर्याय थई छे. एनी पर्याय विना, ई कार्य आवे नहीं. सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रनो मारग मोक्षनो, ई त्रिकाळी चीजनी मान्यतामां अने तेना ज्ञानना ज्ञेय विना, ए वात आवे ज नहीं. ए ज्ञानमां ई ज्ञेय आवुं छे एम जाण्युं तो ई ज्ञान आव्युं. ‘आवुं छे’ एम प्रसिद्ध कर्युं तो सम्यग्दर्शनमां आत्मा आवो छे एम मान्युं. आहा.. हा.. हा! आंही आ त्रण बोलथी वात करी छे मुनि छे ने! प्रथम पदमां