६ श्री प्रवचनो रत्नो-१ ‘चरित्तदंसणणाण..... ठिदो’ थी वात लीधी छे. पदमां पहेला चरित्त लीधुं छे ए तो पदनी रचना माटे छे. पद्य छे ने आ... (गाथाओ) अने एनी रचना-पद्यनी माटे ‘चरित्त’ लीधुं पहेलुं. आम तो ‘दंसणणाणचरित्त’ छे. पण पाठमां आम आव्युं छे. ‘चरित्तदंसणणाण ठिदो’ ए गद्यनी रचनामांथी पद्यनी रचनामां ए रीते आव्युं छे. नहितर, वस्तुनी स्थितिमां तो दर्शनज्ञानचारित्र छे. छे ने..?
आहा..! जुओ...! अर्थ केम मूकी दीधो! जोयुं! पाठ... तो ‘चरित्तदंसणणाण’ थी छे.. छे? गाथामां! अर्थ केवो (टीकामां) थयो’ दर्शनज्ञानचारित्रमां स्थित रह्यो छे. त्यां एम कह्युं.
मूळगाथामां पहेलो शब्द ई, टीका नहीं-टीका नहीं. आहा..! माळा पंडितोय पण आ पंडितो कहेवाय! जे आशय कहेवानो छे ते आशय काढे ने समजे! आ... कोरा व्याकरणवाळा नहीं काढी शके!
अरे! भगवान! एक वार सांभळतो खरो प्रभु तुं! विरोध करे ई ए.. एकांत छे, एकांत छे! पण एकवार सांभळतो खरो! भाई..! निश्चयनयनो अर्थ ज सम्यक्एकांत छे नय सम्यक्एकांत छे. प्रमाणमां अनेकान्त छे! आहा हा! सम्यक्एकांतमां... जेवो जीव छे तेवो जेणे ‘दंसण’ -प्रतीत कर्यो-ए दर्शनमां स्थिर थयो! दर्शन आत्माने आश्रये थयुं एम न कहेतां... दर्शनमां आत्मा स्थिर थयो. पर्यायमां आत्मा-निर्मळ पर्यायमां आत्मा आव्यो! ध्रुव तो हतुं! समजाणुं कांई..?
आहा.. हा! आवो मारग छे प्रभु! बहु जुदी वात भाई..! आ एक एक गाथा! एक-एक शब्द! गजब काम कर्यां छे आहा.. हा!
(श्रोताः) कहते हैं कि पर्याय छूती नहीं, यह तो आ गया! (उत्तरः) पर्यायमां जणाणो त्यारे तेने आत्मा कहेवामां आव्यो. न जणाणो एने आत्मा छे क्यां? आहा.. हा! घरमां हीरो पडयो छे पण खबर नथी कोलसो छे के हीरो!
आहा.. हा! एम चीज जे छे ए छे जेटली ने जेवडी, एटली प्रतीत कर्या विना, ई छे एम आव्युं कोने? आहा.. हा!
विशेष कहेशे...
पडी होवाथी त्यां एकत्व करतो थको, “जाणनार ज जणाय छे” तेम नहीं मानतां
रागादि पर जणाय छे एम अज्ञानी पर साथे एकत्वपूर्वक जाणतो-मानतो होवाथी
तेने वर्तमान अवस्थामां अखंडनो प्रतिभास थतो नथी अने ज्ञानी तो “आ
जाणनार जणाय छे ते ज हुं छुं” एम जाणनार ज्ञायकने एकत्वपूर्वक जाणतो-
मानतो होवाथी तेनी वर्तमान अवस्थामां (ज्ञानकळामां) अखंडनो सम्यक्
प्रतिभास थाय छे. (आत्मधर्म अंक-३९२)