श्री प्रवचन रत्नो-१ ७
‘जीव चरित-दर्शन-ज्ञानस्थित’ ए तो पद्यनी रचना माटे चारित्र पहेलुं आव्युं छे. खरेखर तो दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित रह्यो छे. तेने निश्चयथी स्वसमय जाण. अहींयां तो त्रण बोल लीधां छे. दर्शन, ज्ञान ने चारित्र! छे तो अनंतगुणनी पर्याय! दर्शन-ज्ञान-चारित्रनी साथे. निर्मळपणे थई छे (बधी पर्यायो) पण मुख्यपणे अहीं दर्शन-ज्ञान-चारित्र-मोक्षनो मारग जे दुःखथी मुक्त थवानो, एने मुख्यपणे कह्युं छे.
एटले के... दर्शन, ज्ञान, चारित्र! आत्मा अनंत गुणस्वरूप, तो अहींयां अनंत अनंत गुणनी वर्तमान पर्याय पणे-व्यक्तपणे स्थित थाय, तेने अहींयां स्वसमय नाम आत्मा कह्यो छे. आत्मा तो आत्मा छे! पण जेने श्रद्धाज्ञानने चारित्रमां ए आव्यो आत्माध्रुव, परिणमन थयुं, तेना ख्यालमां आव्यो एने आत्मा स्वसमय कहेवामां आवे छे. आत्मा तो आत्मा ज छे. पण आंहीयां दर्शनज्ञानचारित्रमां (जे स्थित थयो ते आत्मा छे)
झीणी वात छे भाई..! एना-आत्मामां गुण तो अनंत छे. राते कह्युं’ तुं. जेम आ आकाश छे एना आंहीना प्रदेशथी शरू करीए, आंहीना आकाशथी.. शरूआत करीए तो अंत नथी, शरूआत आंहीथी लेवाय पण ई प्रदेशनो अंत नथी. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत एम आंहीथी शरूआत करीने आम लई जाय तोय अनंत अनंत अने बेयनुं भेगुं करीए तोय अनंत.
एक समयना एक श्रेणीना प्रदेश, एवीतो अनंती श्रेणी छे. एवो एक प्रदेश, एक प्रदेशमां श्रेणी, एनो आदि अने अंत नथी. एवी अनंती श्रेणीओ छे. हवे आंही तो एम कहेवुं छे के जेना अनंत-अनंत प्रदेश आकाशना, जेनो अंत नथी, जेनो छेडो शुं? छेडो शुं? पछी शुं? एम काळनी पण आदि नथी. वर्तमान एनो अंत आवे! अनादि-अनंत! आदि नहीं ने अंत आवे. भविष्यनो अंत नहीं. पण शरूआत आंहीथी कहेवाय तो सादि-अनंत छे! अने समुचित कहेवाय तो अनादि-अनंत कहेवाय.
आहा.. हहा! एम आत्मामां अने परमाणुओमां एटला गुणो छे, ए आकाशना प्रदेशथी पण अनंतगुण. एनो अर्थ शुं थयो! आहा..! गंभीर गजब वात छे? आत्मामां अनंत संख्याए गुण छे. एमां आंही त्रणमां स्थित कह्युं पण छे तो अनंतगुणमां (स्थित) ए अनंतगुण छे एमां पहेलो पछी नथी. पण ई अनंतगुणा छे... एमां गणत्री करवा जाय के आ एक, बे, त्रण, चार, पांच तो एनो छेल्लो क्यो गुण? ए आवे नहीं एमां आहाहा! क्षेत्र भले शरीर प्रमाणे! अने क्षेत्र एटले पोतानुं क्षेत्र (आत्मानुं) असंख्य प्रदेश प्रमाणे! पण एना जे गुणोनी संख्या... अनंत! एमां पहेलो-पछी एवुं नहीं. पहेलुं ज्ञानने पछी दर्शनने एवुं नहीं, (बधां गुणो) एक साथे! पण एकसाथे होवा छतां एने गणतरीथी गणवा मांडे... के आ एक, बे, त्रण, चार आ तो छेल्लो गुण क्यो? आहा.. हा! छेल्लो छे ज नहीं! आहा..! आ ते कांई वात कहे छे ए शुं कहे छे!