८ श्री प्रवचन रत्नो-१
अनंत जे संख्याए आत्मामां गुण छे. एगुण पहेलो, पछी नथी. एक हारे... छे! पण एक हारेमां आ एक-बे-त्रण-चार एम छेल्लो क्यो? आहा... हा! गणतरीमां छेल्लो आवता नथी. शुं कहे छे आ?
अरे! एणे निज तत्त्व केवुं, केवडुं छे? एवुं एणे अंतरथी सांभळ्युं नथी. आहा..! एना गुणो... ते भाव.. एनी संख्या अपार! तो गुण.. गुण.. गुण.. ज्ञान.. ज्ञान.. ज्ञान.. दर्शन.. चारित्र.. आनंद.. अस्तित्व.. वस्तुत्व.. एम करतां क्यांय छेल्लो गुण आवे एवो अंत नथी! आहा.. हा! जेमां अंत विनाना, छेल्लो नहीं एवा अनंतगुण! आ ते शुं कहे छे! आहा... हा! अरे! एणे निजतत्त्वने जाणवानो प्रयत्न कर्यो ज नथी. बाकी बधुं आ संसारना.. घोर पाप! आखो दि’ एणे कर्यां!
अहींयां तो कहे छे जीव चरित्तदंसणणाण-चरित्तदंसणणाण ठिदो’ तं हि स्वसमय जाण। एमां तो जेटला गुणो छे. ए गुणोनी संख्यानो छेडो, कोई अंत नथी. एटली संख्या.. एटली संख्या.. एटली संख्या अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत.. अनंत, एने अनंतने अनंतगुणा वर्ग करो तोपण छेल्लो आ गुण जेमां नथी. आहा.. हा!
एवडुं आ अस्तित्व एना जेटला गुणो छे तेटली ज एनी पर्याय छे. एकसमयमां अनंती पर्याय छे! एमां पहेली-पछी ई शब्द नथी. कारण के एकसमयमां ज अनंती साथे छे.
छतां ए पर्यायनी गणतरीथी गणवा मांडो एक, बे, त्रण, चार, संख्य, असंख्य, अनंत.. अनंत... अनंत ई अनंती पर्यायमां छेल्ली कई पर्याय? ई नहीं आवे एमां! झीणुं तत्त्व बहु बापु! आहा.. हा! आ गंभीर! सर्वज्ञ सिवाय कोईए जोयुं नथी, जाण्युं नथी कह्युं नथी.
आहा.. हा! एना अनंता गुणोनी संख्या! आकाश तो क्षेत्रथी अंत नहीं. आकाश.. आकाश.. आकाश दशेय दिशामां.. पछी शुं? ... पछी शुं? क्यांय आकाशनो अंत नथी. एटला बधा आकाशना प्रदेशोथी अनंत गुणा आंही (आत्मामां) गुण छे. जेनो-आकाशना प्रदेशनो अंत नथी! आहा.. हा! एथी अनंतगुणा गुण, संख्याए अनंतगुणा गुण, ए रह्या असंख्य प्रदेशमां, रह्या एकसमयमां! रह्या असंख्य प्रदेशमां रह्या एकसमयमां! रह्या अनंत.. तो अनंतनो आ छेल्लो गुण ‘आ’ .. आ ते कांई वात छे! शुं छे! ए छेल्लो ई शब्द ज नथी त्यां! अने ई भावमां ई नथी. आहा.. हा! एवा अनंत.. अनंत भावरूप गुण ए आंही कहेशे नीचे!
‘ए अनंतधर्मोमां रहेलुं एक धर्मीपणुं ते द्रव्य छे.’ -एम आवशे नीचे. भाषा साधारण छे एम जाणीने एनी गंभीरता न बेसे तो, भाषा-भाषा तो जड छे. ए अनंतगुण जे छे, एनो कोई छेडो नहीं. छेडो नहीं एटले? आ छेल्लो गुण... छेल्लो गुण.. छेल्लो गुण अनंत.. अनंत गणतां के आ छेल्लो, ई एमां छे ज नहीं. आ शुं कहे छे आ..!? आ वात पहेलीवहेली छे! कोई दि’ कहेवामां आवी नथी. समजाणुं कांई..? अनंत छे ने ए बधुं घणीवार कह्युं! पण अनंत छे.. ई अनंतनो.. अनंतनो.. छेल्लो, छेल्लो क्यो? आहाहा..!
असंख्यप्रदेशमां एक समयमां अनंतनी संख्यामां आ छेल्लो, ई छेल्लो आवतो ज नथी! छेल्लानो