श्री प्रवचनो रत्नो-१ ९ छेडो ज नथी. आहाहा.. हा! आ ते वात!!
(श्रोताः) व्याख्यानमां नहोती थई आपे राते वात करी हती! (उत्तरः) हा, बहेनोने काने पडे ने..! आ थई ते पहेलां वहेली करी छे. आटला वर्षमां पहेलीवार आ करी छे के अनंत भावमां, ए अनंतनी संख्यामां छेल्लो गुण क्यो? के छे ज नहीं एमां (छेल्लो!) आहा.. हा! एम.. अनंतगुणनी एकसमय काळमां एकसमय अने असंख्यप्रदेशनो छेल्लो अंश, क्षेत्रनो एमां थती अनंती पर्याय/गुणमां तो असंख्यप्रदेश छे, आखा! आम एक पर्याय छे एनो छेल्लो/असंख्य प्रदेशनो छेल्लो अंश एमां उत्पन्न थती अनंती पर्याय, क्षेत्र एटलुं अंश, काळ एक समय, ए पर्यायनी संख्या एटली अनंती.. आहा.. हा! के आ पर्याय छेल्ली! एम गणतरीनी गणतरामां छेल्ली पर्याय होय नहीं. आहा.. हा!
आम.. अनंत-अनंत तो कहे छे पण अनंत ए कई रीते एम. आहा.. हा! क्षे्रत्रनो अंत तो तो हजी एम कहे हशे! पण आ एटलामां भावनो अंत नहीं, भावनी संख्या जेटली छे एटली संख्यानो क्यांय अंत नहीं, समय एक, क्षेत्र असंख्यप्रदेश अने भावनी संख्यानो छेडो नहीं, छेल्लो ‘आ’ एवो छेडो नहीं! आहा.. हा! एवी ज अनंती पर्याय, प्रदेशनो एक अंश, समयनो एक समय अने संख्यामां अनंत! पर्याय. एमांय पहेली-पछी तो नथी क्यांय! एकसाथे छे अनंत, छतां अनंतमां आ, आ, आ, आ, आ... अनंत.. अनंत छेल्ली आ.. आवुं तत्त्व भगवान सर्वज्ञ सिवाय क्यांय कोईए जोयुं नथी अने कोईए कह्युं नथी.
एक समयनी अनंती पर्याय, एमां हवे एक पर्याय लेवो. ज्ञाननी एक पर्याय. अनंती पर्यायनी संख्यामां छेल्ली पर्याय नहीं, छेडो नहीं एटली पर्याय, आहा.. हा! केम? आकाशना प्रदेशनी संख्यानो अंत नथी आंही पर्यायनी संख्यानो अंत नथी. भाव.. आहा.. हा! हवे एक-एक पर्यायमां, ज्ञाननी एक पर्याय, एक ज्ञेयप्रमाणे. ज्ञाननी एक पर्याय ई ज्ञेय प्रमाणे. ज्ञेय केटलां? के अनंत आत्मा, अनंता परमाणुओ ए ज्ञेय! ज्ञान ज्ञेय प्रमाणे! ज्ञेय केटलां? के लोकालोक प्रमाणे. आहा.. हा!
एक समयनी पर्यायमां प्रमेय लोकालोक! जेना भावनो अंत नथी ते ते परमाणुना गुणनो तेनी पर्यायोनो! ए बधु अहींयां एक समयनी पर्यायमां जणाय जाय! श्रुतज्ञाननी पर्यायमां य हो! केवळ ज्ञाननी तो वात शुं करवी!
आहा.. हा! एवी एक समयनी पर्यायमां पण अनंता अविभागप्रतिच्छेद! ज्ञाननी एकसमयनी पर्यायमां अनंता द्रव्यो ने एक द्रव्यना अनंता गुणो, जेनी संख्यानो पार नहीं अने एक-एक गुणनी पर्याय, जेनो पार नहीं-एने आ श्रुतज्ञाननी पर्याये जाणी लीधुं.
आहा.. हा! ए ज्ञाननी एकसमयनी पर्यायमां आवा अनंता लोकालोक जाण्या, द्रव्य गुणोने पर्यायो! तो एटला भाग पडी गया एक पर्यायमां, अंशो एटला अंशो के ई अंशोनो छेडो नहीं. आहा.. हा! अनंत ने एम नहीं. (श्रोताः) छेडो नहीं (उत्तरः) एम भाषा करो एम काम न आवे! अनंत... अनंत... अनंततो द्रव्ये य छे अनंत! पण एनो अंत आवी जाय छे. क्षेत्र अनंत, काळ अनंत, भाव अनंत, पर्याय अनंत एनो कोई पार नथी! आहा.. हा! एनी संख्यामां केटली छे? अने एनो छेडो छेल्लो क्यो? एटली संख्याए एनी पर्याय अने एक-एक पर्यायमां, अनंत द्रव्यो अने अनंत