१० श्री प्रवचनो रत्नो-१ एना गुणो-जेना गुणनो अंत नहीं, पर्यायनो अंत नहीं.. एटली संख्याए... काळे अनंत एम नहीं, काळे भले एकसमय हो! पण एकसयमनुं तेनुं गुणने पर्याय, एकसमयनी पर्यायमां जणाय जाय (तो) एक समयनी पर्यायना भाग केटला? एना भाग.. कटकां करतां, करतां, करतां अविभाग, जेनो बीजो विभाग न थई शके (ते अविभाग!) ओहो!
एवा एकसमयनी पर्यायमां अनंता अविभागप्रतिच्छेद! एना-अविभाग प्रतिच्छेदनो छेश्नो क्यो? अंत नथी.
हवे, आंही तो एम कहेवुं छे के जेटला गुणो छे एटला ज्यां दर्शनज्ञानचारित्रमां स्थित थाय छे-त्यारेवात त्रणनी लीधी छे आंही भाई..! पण अनंता गुणोनी पर्याय व्यक्त थईने स्थिर थाय छे त्यां! शुद्धिमां केटलीक शुद्धि थाय ने केटलीक न थाय एम नहीं.
पण अहींयां दर्शनज्ञानचारित्रनी मुख्यता गणीने, तेमां जीव जे आखो, अंनतगुणनो पिंड छे तेस्थिर थाय छे आम! रागमां स्थिर थाय छे, ए पछी कहेशे. आहा..! अने पोताना अनंता जे गुणो छे, एनुं एकरूप जे द्रव्य छे. अनंत धर्म ए गुणो एनुं धरनार एक तत्त्व!
ए (आत्म) तत्त्व ज्यारे पोतानी निर्मळपर्यामां स्थित थाय छे त्यारे तेना जेटला गुणो छे, तेटला गुणोनुं व्यक्ततामां अंशो बधा गुणोना प्रगट थाय छे. छतां आंही त्रण कह्या छे ई मुख्यपणे मोक्षमार्गनी अपेक्षाए... समजाणुं कांई...?
गंभीर छे भाई..! गंभीर दरियो छे! बीजां घणां विचारो आव्या छे! पार पडे एमां एवुं नथी!
आहा... हा! ‘अने जे जीव (कर्म) पुद्गलर्मना प्रदेशोमां स्थित थयेल छे. हवे आंही कर्म- पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां स्थित शब्द एम वापर्यो छे. वात ई छे के पुद्गलना निमित्ते थती विकारी अवस्था, तेमां स्थित छे. ए स्थितमां... अनंतगुणो विकारपणे नथी. अनंतागुणो निर्मळपणे हतां! समजाणुं कांई...?
पहेलाना जे दर्शनज्ञान चारित्र (गुण) त्रण मुख्य लीधां, पण तेमां जेटली संख्यामां गुण (आत्मामां) छे, जेनो छेडो नहीं! ए बधा गुणोनी अंशे व्यक्तता प्रगटमां स्थित छे. तेने अहीं स्वसमय आत्मा कहे छे.
आहा.. हा! आ तो ओगणीस (मी) वार वंचाय छे ‘आ’ ... ते ईनुंई आवे कांइ...? आहाहा! हवे आमां बीजुं कहेवुं छे. के ‘जे जीव पुद्गलकर्मोना प्रदेशोमां’ ए पुदग्लकर्मोना प्रदेशोमां’ ए पुद्गलकर्म जड-अजीव छे. पण तेना अनुभवमां ए एकाग्र थाय छे. एमां जेटला गुणो छे ई बधा गुणो, कर्मना प्रदेशमां स्थित थता नथी. केटलाय गुणोनी पर्याय निर्मळ सदाय रहे छे. समजाणुं कांई...?
ए एक वात! बीजुं, कर्मपणे परिणमेला जे परमाणु छे एमांय कर्म-परमाणुमां जेटला गुणो छे ए बधा गुणो कर्मपणे परिणमे छे एम नथी आहा..! क्यां नवराश! जगतना पाप आडे! एकलुं पाप, पोटला बांधी, हाल्या जवाना चार गतिमां रखडवा..!