Pravach Ratno Part 1-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२ श्री प्रवचन रत्नो-१ ‘गोमट्टसार’ मां पाठ छे. तिर्यंच केम थाय? ‘तिर्यंच’ छे ने शब्द!! तिर्यंच एटले तीरछुं, तीरछुं एटले आडुं! घणी संख्या तो ई ज छे.

आहा... हा! पण कोने पडी आ! आ बहारमां थोडी अनुकूळता रहे! मरी जईने पछी क्यां जईए, कोण जाणे? ए कांई (खबर) नहीं, गोलण गाडां भरे!

अहींयां कहे छे. एक श्लोकमां केटलुं समाडी दीधुं छे! अने ते कर्मना प्रदेश कीधां छे. ते.. कर्मना प्रदेश तो परमाणु, जड छे. पण एनो अनुभाग जे छे एनो-प्रदेशनो भाग कहेवाय! एना तरफना लक्षमां जईने, जे विकारपणे परिणम्यो छे ते अणात्मा-परसमय कहेवामां आवे छे.

आहा... हा! आवी वात छे! कर्मपणे पण परमाणुना अनंतगुणो परिणम्या नथी. आहा... हा! एम भगवान आत्माना अनंता गुणो, मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय आदिमां–एमां अनंत गुणो परिणम्या नथी. केटला’ क गुणो... बहु विचार करीने काढयां’ता घणां वरस पहेलां! तो य वधारे न नीकळ्‌या एकवीस गुण काढया’ ता वीपरीतपणाना. काढयां’ता... घणां वरस पहेलां, गामडामां होय ने एकांत..! विपरीत आत्मामां... मिथ्यात्व, चारित्र, आनंद, प्रदेशत्व एवा एवा कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान (अधिकरण) एवां एवां गुणो विकारपणे थया छे. बधां गुणो नथी थयां समजाणुं?

विचार तो बधा आव्या होय ने एक्केएक घणां! आहा.. हा! आंही कहे छे के ‘जे जीव पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां’ एटले के, ए कर्मनो ज भाव छे विकार, आत्मानो स्वभाव नथी. विभाव-पुण्यने पाप, दया ने दान, व्रत ने भक्ति, काम ने क्रोध, रळवुं- कमावुं, ए बधुं पाप आहा..! एमां जे स्थित छे? ‘तेने परसमय जाण’ तेने अणात्मा जाण!

आहा.. हा! केमके एनी पर्यायमां विकारपणे थवुं, ए विकार आत्मा नथी. विकार ए आत्मानो कोई स्वभाव नथी. विकारपणे परिणम्यो छे-थयो छे, ते अणात्मा छे.

आहा.. हा! ए तो शब्दार्थ थयो! हवे एनी टीका. (टीकाः) ‘समय’ पहेलो समय उपाडयो! ‘सयम’ शब्दनो अर्थ आ प्रमाणे छे’ ‘सम्’ तो उपसर्ग छे- व्याकरणना नियम प्रमाणे ‘सम्’ उपसर्ग छे. तेनो एक अर्थ ‘एकपणुं’ एवो छे’ - तेनो अर्थ ‘एकपणुं’ एवो छे.’

‘सम्’ एकपणुं! (अने) ‘अय गतौ’ समय छे ने...! सम् ने अय बे शब्द भेगां छे. सम् नो अर्थ एकपणुं! ‘अयगतौ’ धातु छे धातु. परिणमन करवुं ए. आहा..! ए अय धातुनो गमन अर्थ पण छे.

‘अय’ एटले गमन करवुं - परिणमवुं, गमन करवुं’ अने ज्ञान अर्थ पण छे.’

आहा..! गमन करवुं अने परिणमवुं, ज्ञानरूपे हो! ‘गमन अर्थ पण छे अने ज्ञान अर्थ पण छे.’ ‘तेथी एकसाथे ज युगपद् जाणवुं अने परिणमवुं ए बे क्रियाओ, जे एकत्वपूर्वक करे... ते क्रियाओ एकसमयमां, एकत्वपूर्वक करे-परिणमे अने जाणे! परिणमे अने जाणे... एवी एक समयमां बे क्रियाने