Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 85.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञानतत्त्व-प्रज्ञापन
१४५
अथामी अमीभिर्लिङ्गैरुपलभ्योद्भवन्त एव निशुम्भनीया इति विभावयति

अट्ठे अजधागहणं करुणाभावो य तिरियमणुएसु विसएसु य प्पसंगो मोहस्सेदाणि लिंगाणि ।।८५।।

अर्थे अयथाग्रहणं करुणाभावश्च तिर्यङ्मनुजेषु
विषयेषु च प्रसङ्गो मोहस्यैतानि लिङ्गानि ।।८५।।
रागद्वेषमोहपरिणतस्य जीवस्येत्थंभूतो बन्धो भवति ततो रागादिरहितशुद्धात्मध्यानेन ते रागद्वेष-
मोहा सम्यक् क्षपयितव्या इति तात्पर्यम्
।।८४।। अथ स्वकीयस्वकीयलिङ्गै रागद्वेषमोहान् ज्ञात्वा

भावार्थः(१) हाथीने पकडवा माटे घासथी ढांकेलो खाडो बनाववामां आवे छे; हाथी त्यां खाडो होवाना अज्ञानने लीधे ते खाडा उपर जतां तेमां पडे छे अने ए रीते पकडाई जाय छे. (२) वळी हाथीने पकडवा माटे, शीखवेली हाथणी मोकलवामां आवे छे; तेना देह प्रत्येना रागमां फसातां हाथी पकडाई जाय छे. (३) हाथीने पकडवानी त्रीजी रीत ए छे के ते हाथी सामे पाळेलो बीजो हस्ती मोकलवामां आवे छे अने पेलो हाथी आ शीखवी मोकलेला हस्ती सामे लडवा तेनी पाछळ दोडतां पकडनाराओनी जाळमां फसाई जाय छेपकडाई जाय छे.

उपर्युक्त रीते जेम हाथी (१) अज्ञानथी, (२) रागथी के (३) द्वेषथी अनेक प्रकारनां बंधनने पामे छे, तेम जीव (१) मोहथी, (२) रागथी के (३) द्वेषथी अनेक प्रकारनां बंधनने पामे छे. माटे मोक्षार्थीए मोह -राग -द्वेषनो पूरेपूरी रीते मूळमांथी क्षय करवो जोईए. ८४.

हवे, आ मोहरागद्वेषने आ लिंगो वडे (हवेनी गाथामां कहेवामां आवतां चिह्नो- लक्षणो वडे) ओळखीने उद्भवतां वेंत ज मारी नाखवायोग्य छे एम व्यक्त करे छेः

अर्थो तणुं अयथाग्रहण, करुणा मनुज -तिर्यंचमां,
विषयो तणो वळी संग,लिंगो जाणवां आ मोहनां. ८५.

अन्वयार्थः[अर्थे अयथाग्रहणं] पदार्थनुं अयथाग्रहण (अर्थात् पदार्थोने जेम छे तेम सत्य स्वरूपे न मानतां तेमना विषे अन्यथा समजण) [च] अने [तिर्यङ्मनुजेषु करुणाभावः] तिर्यंच -मनुष्यो प्रत्ये करुणाभाव, [विषयेषु प्रसंगः च] तथा विषयोनो संग (अर्थात् इष्ट विषयो प्रत्ये प्रीति अने अने अनिष्ट विषयो प्रत्ये अप्रीति)[एतानि] [मोहस्य लिंगानि] मोहनां लिंगो छे. प्र. १९