Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
१७७
द्रव्यस्वरूपमुपादाय प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तैर्गुणैः पर्यायैश्च निष्पादितनिष्पत्तियुक्तस्य द्रव्यस्य
मूलसाधनतया तैर्निष्पादितं यदस्तित्वं स स्वभावः

किंचयथा हि द्रव्येण वा क्षेत्रेण वा कालेन वा भावेन वा कार्तस्वरा- त्पृथगनुपलभ्यमानैः कर्तृकरणाधिकरणरूपेण कुण्डलाङ्गदपीतताद्युत्पादव्ययध्रौव्याणां स्वरूप- एव पीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायाणां स्वभावो भवति, तथा स्वकीयद्रव्यक्षेत्रकालभावैः केवल- ज्ञानादिगुणकिंचिदूनचरमशरीराकारपर्यायेभ्यः सकाशादभिन्नस्य मुक्तात्मद्रव्यस्य संबन्धि यदस्तित्वं स एव केवलज्ञानादिगुणकिंचिदूनचरमशरीराकारपर्यायाणां स्वभावो ज्ञातव्यः अथेदानीमुत्पादव्यय- ध्रौव्याणामपि द्रव्येण सहाभिन्नास्तित्वं कथ्यते यथा स्वकीयद्रव्यादिचतुष्टयेन सुवर्णादभिन्नानां कटकपर्यायोत्पादकङ्कणपर्यायविनाशसुवर्णत्वलक्षणध्रौव्याणां संबन्धि यदस्तित्वं स एव सुवर्णसद्भावः,

कर्ता -करण -अधिकरणरूपे द्रव्यना स्वरूपने धारण करीने प्रवर्तता गुणो अने पर्यायो वडे जेनी

निष्पत्ति थाय छे,एवा द्रव्यनुं, मूळसाधनपणे तेमनाथी निष्पन्न थतुं, जे अस्तित्व छे, ते स्वभाव छे. (पीळाशादिकथी अने कुंडळादिकथी भिन्न नहि जोवामां आवता सुवर्णनुं अस्तित्व ते पीळाशादिक अने कुंडळादिकनुं ज अस्तित्व छे, कारण के सुवर्णना स्वरूपने पीळाशादिक अने कुंडळादिक ज धारण करता होवाथी पीळाशादिकना अने कुंडळादिकना अस्तित्वथी ज सुवर्णनी निष्पत्ति थाय छे, पीळाशादिक अने कुंडळादिक न होय तो सुवर्ण पण न होय; तेवी रीते गुणोथी अने पर्यायोथी भिन्न नहि जोवामां आवता द्रव्यनुं अस्तित्व ते गुणो अने पर्यायोनुं ज अस्तित्व छे, कारण के द्रव्यना स्वरूपने गुणो अने पर्यायो ज धारण करता होवाथी गुणो अने पर्यायोना अस्तित्वथी ज द्रव्यनी निष्पत्ति थाय छे, गुणो अने पर्यायो न होय तो द्रव्य पण न होय. आवुं अस्तित्व ते द्रव्यनो स्वभाव छे.)

(जेवी रीते द्रव्यनुं अने गुण -पर्यायनुं एक ज अस्तित्व छे एम सुवर्णना द्रष्टांत- पूर्वक समजाव्युं, तेवी रीते हवे द्रव्यनुं अने उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यनुं पण एक ज अस्तित्व छे एम सुवर्णना द्रष्टांतपूर्वक समजाववामां आवे छे.)

जेम द्रव्ये, क्षेत्रे, काळे के भावे सुवर्णथी जेओ पृथक् जोवामां आवतां नथी, कर्ता- करण -अधिकरणरूपे कुंडळादि -उत्पादोना, बाजुबंधआदिव्ययोना अने पीळाशआदिध्रौव्योना प्र. २३

१. गुण -पर्यायो ज द्रव्यना कर्ता (करनार), करण (साधन) अने अधिकरण (आधार) छे; तेथी गुण- पर्यायो ज द्रव्यनुं स्वरूप धारण करे छे.

२. जेओ = जे कुंडळ आदि उत्पादो, बाजुबंध आदि व्ययो अने पीळाश आदि ध्रौव्यो
३. सुवर्ण ज कुंडळादि -उत्पादो, बाजुबंधादिव्ययो अने पीळाशआदिध्रौव्योनुं कर्ता, करण तथा अधिकरण
छे; तेथी सुवर्ण ज तेमनुं स्वरूप धारण करे छे (सुवर्ण ज कुंडळादिरूपे ऊपजे छे, बाजुबंधआदिरूपे
नष्ट थाय छे अने पीळाशआदिरूपे टकी रहे छे).