द्रव्यस्वरूपमुपादाय प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तैरुत्पादव्ययध्रौव्यैर्निष्पादितनिष्पत्तियुक्तस्य द्रव्यस्य मूल-
साधनतया तैर्निष्पादितं यदस्तित्वं स स्वभावः ।।९६।।
इह विविहलक्खणाणं लक्खणमेगं सदित्ति सव्वगयं ।
उवदिसदा खलु धम्मं जिणवरवसहेण पण्णत्तं ।।९७।।
पर्यायव्ययतदुभयाधारभूतमुक्तात्मद्रव्यत्वलक्षणध्रौव्याणां स्वभाव इति । एवं यथा मुक्तात्मद्रव्यस्य
स्वकीयगुणपर्यायोत्पादव्ययध्रौव्यैः सह स्वरूपास्तित्वाभिधानमवान्तरास्तित्वमभिन्नं व्यवस्थापितं तथैव
जोवामां आवतुं नथी, *कर्ता -करण -अधिकरणरूपे द्रव्यना स्वरूपने धारण करीने प्रवर्ततां उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यो वडे जेनी निष्पत्ति थाय छे, — एवा द्रव्यनुं, मूळसाधनपणे तेमनाथी निष्पन्न थतुं, जे अस्तित्व छे, ते स्वभाव छे. (उत्पादोथी, व्ययोथी अने ध्रौव्योथी भिन्न नहि जोवामां आवता द्रव्यनुं अस्तित्व ते उत्पादो, व्ययो अने ध्रौव्योनुं ज अस्तित्व छे; कारण के द्रव्यना स्वरूपने उत्पादो, व्ययो अने ध्रौव्यो ज धारण करतां होवाथी उत्पादो, व्ययो अने ध्रौव्योना अस्तित्वथी ज द्रव्यनी निष्पत्ति थाय छे, उत्पादो, व्ययो अने ध्रौव्यो न होय तो द्रव्य पण न होय. आवुं अस्तित्व ते द्रव्यनो स्वभाव छे.)
भावार्थः — अस्तित्वने अने द्रव्यने प्रदेशभेद नथी; वळी ते अस्तित्व अनादि- अनंत छे तथा अहेतुक एकरूप परिणतिए सदाय परिणमतुं होवाने लीधे विभावधर्मथी पण भिन्न प्रकारनुं छे; आम होवाथी अस्तित्व द्रव्यनो स्वभाव ज छे.
गुण -पर्यायोनुं अने द्रव्यनुं अस्तित्व भिन्न नथी, एक ज छे; कारण के गुण -पर्यायो द्रव्यथी ज निष्पन्न थाय छे, अने द्रव्य गुण -पर्यायोथी ज निष्पन्न थाय छे. वळी एवी ज रीते उत्पाद -व्यय -ध्रौव्योनुं अने द्रव्यनुं अस्तित्व पण एक ज छे; कारण के उत्पाद -व्यय- ध्रौव्यो द्रव्यथी ज नीपजे छे, अने द्रव्य उत्पाद -व्यय -ध्रौव्योथी ज नीपजे छे.
आ प्रमाणे स्वरूप -अस्तित्वनुं निरूपण थयुं. ९६. हवे आ (नीचे प्रमाणे) साद्रश्य -अस्तित्वनुं कथन छेः —
*उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यो ज द्रव्यनां कर्ता, करण अने अधिकरण छे; तेथी उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यो ज द्रव्यना
स्वरूपने धारण करे छे.