Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 98.

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अथ द्रव्यैर्द्रव्यान्तरस्यारम्भं द्रव्यादर्थान्तरत्वं च सत्तायाः प्रतिहन्ति

दव्वं सहावसिद्धं सदिति जिणा तच्चदो समक्खादा

सिद्धं तध आगमदो णेच्छदि जो सो हि परसमओ ।।९८।।
द्रव्यं स्वभावसिद्धं सदिति जिनास्तत्त्वतः समाख्यातवन्तः
सिद्धं तथा आगमतो नेच्छति यः स हि परसमयः ।।९८।।

स्तथा किंचिदूनचरमशरीराकारादिपर्यायैश्च संकरव्यतिकरपरिहाररूपजातिभेदेन भिन्नानामपि सर्वेषां सिद्धजीवानां ग्रहणं भवति, तथा ‘सर्वं सत्’ इत्युक्ते संग्रहनयेन सर्वपदार्थानां ग्रहणं भवति अथवा सेनेयं वनमिदमित्युक्ते अश्वहस्त्यादिपदार्थानां निम्बाम्रादिवृक्षाणां स्वकीयस्वकीयजातिभेदभिन्नानां युगपद्ग्रहणं भवति, तथा सर्वं सदित्युक्ते सति सादृश्यसत्ताभिधानेन महासत्तारूपेण शुद्धसंग्रह- नयेन सर्वपदार्थानां स्वजात्यविरोधेन ग्रहणं भवतीत्यर्थः ।।९७।। अथ यथा द्रव्यं स्वभावसिद्धं तथा


भिन्न भिन्न होवाथी स्वरूप -अस्तित्वनी अपेक्षाए तेमनामां अनेकपणुं छे, परंतु सत्पणुं (होवापणुं, ‘छे’ एवो भाव) के जे सर्व द्रव्योनुं सामान्य लक्षण छे अने जे सर्व द्रव्योमां साद्रश्य बतावे छे तेनी अपेक्षाए सर्व द्रव्योमां एकपणुं छे; आ एकपणाने मुख्य करीए त्यारे अनेकपणुं गौण थाय छे. वळी आ प्रमाणे ज्यारे सामान्य सत्पणाने मुख्यपणे लक्षमां लेतां सर्व द्रव्योना एकत्वनी मुख्यता थवाथी अनेकत्व गौण थाय छे, त्यारे पण ते (समस्त द्रव्योनुं स्वरूप -अस्तित्वसंबंधी) अनेकत्व स्पष्टपणे प्रकाशमान ज रहे छे.]

(आ प्रमाणे साद्रश्य -अस्तित्वनुं निरूपण थयुं.) ९७. हवे द्रव्योथी द्रव्यांतरनी उत्पत्ति होवानुं अने द्रव्यथी सत्तानुं *अर्थांतरपणुं होवानुं खंडन करे छे (अर्थात् कोई द्रव्यथी अन्य द्रव्यनी उत्पत्ति थती नथी अने द्रव्यथी अस्तित्व कोई जुदो पदार्थ नथी एम नक्की करे छे)ः

द्रव्यो स्वभावे सिद्ध ने ‘सत्तत्त्वतः श्री जिनो कहे;
ए सिद्ध छे आगम थकी, माने न ते परसमय छे. ९८.

अन्वयार्थः[द्रव्यं] द्रव्य [स्वभावसिद्धं] स्वभावथी सिद्ध अने [सत् इति] (स्वभावथी ज) ‘सत्’ छे एम [जिनाः] जिनोए [तत्त्वतः] तत्त्वतः [समाख्यातवन्तः] कह्युं छे; [तथा] ए प्रमाणे [आगमतः] आगम द्वारा [सिद्धं] सिद्ध छे; [यः] जे [न इच्छति] माने [सः] ते [हि] खरेखर [परसमयः] परसमय छे.

१८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

*अर्थांतर = अन्य पदार्थ; जुदो पदार्थ.