Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सतः सत्तायाश्च न तावद्युतसिद्धत्वेनार्थान्तरत्वं, तयोर्दण्डदण्डिवद्युतसिद्धस्यादर्शनात् अयुत- सिद्धत्वेनापि न तदुपपद्यते इहेदमिति प्रतीतेरुपपद्यत इति चेत् किंनिबन्धना हीहेदमिति प्रतीतिः भेदनिबन्धनेति चेत् को नाम भेदः प्रादेशिक अताद्भाविको वा तावत्प्रादेशिकः, पूर्वमेव युतसिद्धत्वस्यापसारणात् अताद्भाविकश्चेत् उपपन्न एव, यद्द्रव्यं तन्न गुण इति वचनात् अयं तु न खल्वेकान्तेनेहेदमिति प्रतीतेर्निबन्धनं, एव भवति, न च भिन्नसत्तासमवायात् अथवा यथा द्रव्यं स्वभावतः सिद्धं तथा तस्य योऽसौ सत्तागुणः सोऽपि स्वभावसिद्ध एव कस्मादिति चेत् सत्ताद्रव्ययोः संज्ञालक्षणप्रयोजनादिभेदेऽपि दण्डदण्डिवद्भिन्नप्रदेशाभावात् इदं के कथितवन्तः जिणा तच्चदो समक्खादा जिनाः कर्तारः तत्त्वतः सम्यगाख्यातवन्तः कथितवन्तः सिद्धं तह आगमदो सन्तानापेक्षया द्रव्यार्थिकनयेनानादिनिधनागमादपि तथा सिद्धं णेच्छदि जो सो हि परसमओ नेच्छति न मन्यते य इदं वस्तुस्वरूपं स हि स्फु टं परसमयो

प्रथम तो सत्थी सत्तानुं युतसिद्धपणा वडे अर्थांतरपणुं नथी, कारण के दंड अने दंडीनी माफक तेमनी बाबतमां युतसिद्धपणुं जोवामां आवतुं नथी. (बीजुं,) अयुतसिद्धपणा वडे पण ते (अर्थांतरपणुं) बनतुं नथी. ‘आमां आ छे (अर्थात् द्रव्यमां सत्ता छे)’ एवी प्रतीति थती होवाथी ते बनी शके छे एम कहेवामां आवे तो (पूछीए छीए के) ‘आमां आ छे’ एवी प्रतीति शाना आश्रये (शा कारणे) थाय छे? भेदना आश्रये थाय छे (अर्थात् द्रव्य अने सत्तामां भेद होवाना कारणे थाय छे) एम कहेवामां आवे तो (पूछीए छीए के), कयो भेद? प्रादेशिक के अताद्भाविक? प्रादेशिक तो नथी, कारण के युतसिद्धपणुं पूर्वे ज रद कर्युं छे. अताद्भाविक कहेवामां आवे तो ते उपपन्न ज (-उचित ज) छे, कारण के ‘जे द्रव्य छे ते गुण नथी’ एवुं (शास्त्रनुं) वचन छे. परंतु (अहीं पण ए ध्यानमां राखवुं के) आ अताद्भाविक भेद ‘एकांते आमां आ छे’ एवी प्रतीतिनो आश्रय

१८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

१. सत् = होतुंहयातहयातीवाळुं अर्थात् द्रव्य.

२. सत्ता = होवापणुं; हयाती.
३. युतसिद्ध = जोडाईने सिद्ध थयेलुं; समवायथी
संयोगथी सिद्ध थयेलुं. [जेम लाकडी अने माणस जुदां होवा छतां लाकडीना योगथी माणस ‘लाकडीवाळो’ थाय छे तेम सत्ता अने द्रव्य जुदां होवा
छतां सत्ता साथे जोडाईने द्रव्य ‘सत्तावाळुं’ (-सत्
) थयुं छे एम नथी. लाकडी अने माणसनी जेम सत्ता अने द्रव्य जुदां जोवामां ज आवतां नथी. आ रीते ‘लाकडी’ अने ‘लाकडीवाळा’नी
माफक ‘सत्ता’ अने ‘सत्
’नी बाबतमां युतसिद्धपणुं नथी.]

४. द्रव्य अने सत्तामां प्रदेशभेद नथी, कारण के प्रदेशभेद होय तो युतसिद्धपणुं आवेजे प्रथम ज रद करी बताव्युं छे.

५. द्रव्य ते गुण नथी अने गुण ते द्रव्य नथीआवा द्रव्य -गुणना भेदने (गुण -गुणीभेदने) अताद्भाविक भेद (ते -पणे नहि होवारूप भेद) कहे छे. द्रव्य अने सत्तामां आवो भेद कहेवामां
आवे तो ते योग्य ज छे.