Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
१८५

स्वयमेवोन्मग्ननिमग्नत्वात् तथाहियदैव पर्यायेणार्प्यते द्रव्यं तदैव गुणवदिदं द्रव्यमय- मस्य गुणः, शुभ्रमिदमुत्तरीयमयमस्य शुभ्रो गुण इत्यादिवदताद्भाविको भेद उन्मज्जति यदा तु द्रव्येणार्प्यते द्रव्यं तदास्तमितसमस्तगुणवासनोन्मेषस्य तथाविधं द्रव्यमेव शुभ्रमुत्तरीय- मित्यादिवत्प्रपश्यतः समूल एवाताद्भाविको भेदो निमज्जति एवं हि भेदे निमज्जति तत्प्रत्यया प्रतीतिर्निमज्जति तस्यां निमज्जत्यामयुतसिद्धत्वोत्थमर्थान्तरत्वं निमज्जति ततः समस्तमपि द्रव्यमेवैकं भूत्वावतिष्ठते यदा तु भेद उन्मज्जति, तस्मिन्नुन्मज्जति तत्प्रत्यया प्रतीति- रुन्मज्जति, तस्यामुन्मज्जत्यामयुतसिद्धत्वोत्थमर्थान्तरत्वमुन्मज्जति, तदापि तत्पर्यायत्वेनोन्मज्जज्जल- राशेर्जलकल्लोल इव द्रव्यान्न व्यतिरिक्तं स्यात् एवं सति स्वयमेव सद्द्रव्यं भवति यस्त्वेवं मिथ्यादृष्टिर्भवति एवं यथा परमात्मद्रव्यं स्वभावतः सिद्धमवबोद्धव्यं तथा सर्वद्रव्याणीति अत्र द्रव्यं केनापि पुरुषेण न क्रियते सत्तागुणोऽपि द्रव्याद्भिन्नो नास्तीत्यभिप्रायः ।।९८।। अथोत्पादव्ययध्रौव्यत्वे (-कारण) नथी, कारण के ते (अताद्भाविक भेद) स्वयमेव (पोते ज) उन्मग्न अने निमग्न थाय छे. ते आ प्रमाणेः ज्यारे द्रव्यने पर्याय प्राप्त कराववामां आवे (अर्थात् ज्यारे द्रव्यने पर्याय प्राप्त करे छेपहोंचे छे एम पर्यायार्थिक नयथी जोवामां आवे), त्यारे ज‘शुक्ल आ वस्त्र छे, आ आनो शुक्लत्वगुण छे’ इत्यादिनी माफक‘गुणवाळुं आ द्रव्य छे, आ आनो गुण छे’ एम अताद्भाविक भेद उन्मग्न थाय छे. परंतु ज्यारे द्रव्यने द्रव्य प्राप्त कराववामां आवे (अर्थात् द्रव्यने द्रव्य प्राप्त करे छेपहोंचे छे एम द्रव्यार्थिक नयथी जोवामां आवे), त्यारे समस्त गुणवासनाना उन्मेष जेने अस्त थई गया छे एवा ते जीवने‘शुक्ल वस्त्र ज छे’ इत्यादिनी माफक‘आवुं द्रव्य ज छे’ एम जोतां समूळो ज अताद्भाविक भेद निमग्न थाय छे. ए रीते भेद निमग्न थतां तेना आश्रये (-कारणे) थती प्रतीति निमग्न थाय छे. ते (प्रतीति) निमग्न थतां अयुतसिद्धत्वजनित अर्थांतरपणुं निमग्न थाय छे. तेथी बधुंय (आखुंय), एक द्रव्य ज थईने रहे छे. अने ज्यारे भेद उन्मग्न थाय छे, ते उन्मग्न थतां तेना आश्रये (-कारणे) थती प्रतीति उन्मग्न थाय छे, ते (प्रतीति) उन्मग्न थतां अयुतसिद्धत्वजनित अर्थांतरपणुं उन्मग्न थाय छे, त्यारे पण (ते) द्रव्यना पर्यायपणे उन्मग्न थतुं होवाथी,जेम जळराशिथी जळकल्लोल व्यतिरिक्त नथी (अर्थात् समुद्रथी तरंग जुदुं नथी) तेमद्रव्यथी व्यतिरिक्त होतुं नथी. प्र. २४

१. उन्मग्न थवुं = उपर आववुं; तरी आववुं; प्रगट थवुं. (मुख्य थवुं.)
२. निमग्न थवुं = डूबी जवुं. (गौण थवुं.)
३. गुणवासनाना उन्मेष = द्रव्यमां अनेक गुणो होवाना वलणनुं (अभिप्रायनुं) प्राकट्य; गुणभेद
होवारूप मनोवलणना (अभिप्रायना) फणगा.