Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
२०१

तयैकमेव वस्तु, न वस्त्वन्तरं; तथा द्रव्यं स्वयमेव पूर्वावस्थावस्थितगुणादुत्तरावस्थावस्थित- गुणं परिणमत्पूर्वोत्तरावस्थावस्थितगुणाभ्यां ताभ्यामनुभूतात्मसत्ताकं पूर्वोत्तरावस्थावस्थित- गुणाभ्यां सममविशिष्टसत्ताकतयैकमेव द्रव्यं, न द्रव्यान्तरम् यथैव चोत्पद्यमानं पाण्डुभावेन व्ययमानं हरितभावेनावतिष्ठमानं सहकारफलत्वेनोत्पादव्ययध्रौव्याण्येकवस्तुपर्यायद्वारेण सहकारफलं, तथैवोत्पद्यमानमुत्तरावस्थावस्थितगुणेन व्ययमानं पूर्वावस्थावस्थितगुणेनावतिष्ठमानं द्रव्यत्वगुणेनोत्पादव्ययध्रौव्याण्येकद्रव्यपर्यायद्वारेण द्रव्यं भवति ।।१०४।। गुणात् केवलज्ञानोत्पत्तिबीजभूतात्सकाशात्सकलविमलकेवलज्ञानगुणान्तरम् कथंभूतं सत्परिणमति सदविसिट्ठं स्वकीयस्वरूपत्वाच्चिद्रूपास्तित्वादविशिष्टमभिन्नम् तम्हा गुणपज्जाया भणिया पुण दव्वमेव त्ति तस्मात् कारणान्न केवलं पूर्वसूत्रोदिताः द्रव्यपर्यायाः द्रव्यं भवन्ति, गुणरूपपर्याया गुणपर्याया भण्यन्ते तेऽपि द्रव्यमेव भवन्ति अथवा संसारिजीवद्रव्यं मतिस्मृत्यादिविभावगुणं त्यक्त्वा श्रुतज्ञानादि-


पीतभावनी साथे अविशिष्टसत्तावाळुं होवाथी एक ज वस्तु छे, अन्य वस्तु नथी; तेम द्रव्य पोते ज पूर्व अवस्थाए अवस्थित गुणमांथी उत्तर अवस्थाए अवस्थित गुणे परिणमतुं थकुं, पूर्व अने उत्तर अवस्थाए अवस्थित ते गुणो वडे पोतानी सत्ता अनुभवतुं होवाने लीधे, पूर्व अने उत्तर अवस्थाए अवस्थित गुणो साथे अविशिष्टसत्तावाळुं होवाथी एक ज द्रव्य छे, द्रव्यांतर नथी. (केरीना द्रष्टांतनी जेम, द्रव्य पोते ज गुणना पूर्व पर्यायमांथी उत्तर पर्याये परिणमतुं थकुं, पूर्व अने उत्तर गुणपर्यायो वडे पोतानी हयाती अनुभवतुं होवाने लीधे, पूर्व अने उत्तर गुणपर्यायो साथे अभिन्न हयाती होवाथी एक ज द्रव्य छे, द्रव्यांतर नथी; अर्थात् ते ते गुणपर्यायो अने द्रव्य एक ज द्रव्यरूप छे, भिन्नभिन्न द्रव्यो नथी.)

वळी जेम पीतभावे ऊपजतुं, हरितभावथी नष्ट थतुं अने आम्रफळपणे टकतुं होवाथी, आम्रफळ एक वस्तुना पर्याय द्वारा उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य छे, तेम उत्तर अवस्थाए अवस्थित गुणे ऊपजतुं, पूर्व अवस्थाए अवस्थित गुणथी नष्ट थतुं अने द्रव्यत्वगुणे टकतुं होवाथी, द्रव्य एकद्रव्यपर्याय द्वारा उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य छे.

भावार्थःआना पहेलांनी गाथामां द्रव्यपर्याय द्वारा (अनेकद्रव्यपर्याय द्वारा) द्रव्यनां उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य बताववामां आव्यां हतां. आ गाथामां गुणपर्याय द्वारा (एकद्रव्य- पर्याय द्वारा) द्रव्यनां उत्पाद -व्यय -ध्रौव्य बताव्यां छे. १०४. प्र. २६

१. अविशिष्टसत्तावाळुं = अभिन्न सत्तावाळुं; एक ज सत्तावाळुं. (केरीनी सत्ता लीला तथा पीळा भावनी सत्ताथी अभिन्न छे, तेथी केरी अने लीलो भाव तथा पीळो भाव एक ज वस्तुओ छे, भिन्न
वस्तुओ नथी.

२. पूर्व अवस्थाए अवस्थित गुण = पहेलांनी अवस्थामां रहेलो गुण; गुणनो पूर्व पर्याय; पूर्व गुणपर्याय.