सर्वद्रव्याणां स्वकीयस्वकीयस्वरूपास्तित्वगुणेन सह ज्ञातव्यमित्यर्थः ।।१०६।। अथातद्भावं विशेषेण विस्तार्य कथयति — सद्दव्वं सच्च गुणो सच्चेव य पज्जओ त्ति वित्थारो सद्द्रव्यं संश्च गुणः संश्चैव पर्याय इति सत्तागुणस्य द्रव्यगुणपर्यायेषु विस्तारः । तथाहि — यथा मुक्ताफलहारे सत्तागुण- कारण के तद्भाव एकत्वनुं लक्षण छे. जे ‘ते’-पणे जणातुं नथी ते (सर्वथा) एक केम होय? नथी ज; परंतु गुण -गुणीरूपे अनेक ज छे एम अर्थ छे.
भावार्थः — भिन्नप्रदेशत्व ते पृथक्पणानुं लक्षण छे अने अतद्भाव ते अन्य- पणानुं लक्षण छे. द्रव्यने अन गुणने पृथक्पणुं नथी छतां अन्यपणुं छे.
अने तेना सफेदपणाना प्रदेशो जुदा नथी तेथी तेमने पृथक्पणुं तो नथी. आम होवा छतां सफेदपणुं तो मात्र आंखथी ज जणाय छे, जीभ, नाक वगेरे बाकीनी चार इन्द्रियोथी जणातुं नथी, अने वस्त्र तो पांचे इन्द्रियोथी जणाय छे. माटे (कथंचित्) वस्त्र ते सफेदपणुं नथी अने सफेदपणुं ते वस्त्र नथी. जो एम न होय तो वस्त्रनी माफक सफेदपणुं पण जीभ, नाक वगेरे सर्व इन्द्रियोथी जणावुं जोईए; पण एम तो बनतुं नथी. माटे वस्त्र अने सफेदपणाने अपृथक्पणुं होवा छतां अन्यपणुं छे एम सिद्ध थाय छे.
ए ज प्रमाणे द्रव्यने अने सत्तादिगुणोने अपृथक्त्व होवा छतां अन्यत्व छे; कारण के द्रव्यना अने गुणना प्रदेशो अभिन्न होवा छतां द्रव्यमां अने गुणमां संज्ञा – संख्या – लक्षणादि भेद होवाथी (कथंचित्) द्रव्य ते गुणपणे नथी अने गुण ते द्रव्यपणे नथी. १०६.