पुनरसद्भावनिबद्ध एवोत्पादः । कस्मादिति चेत् । पूर्वपर्यायादन्यत्वादिति । यथेदं जीवद्रव्ये सदुत्पादा- सदुत्पादव्याख्यानं कृतं तथा सर्वद्रव्येषु यथासंभवं ज्ञातव्यमिति ।।१११।। अथ पूर्वोक्तमेव सदुत्पादं द्रव्यादभिन्नत्वेन विवृणोति — जीवो जीवः कर्ता भवं भवन् परिणमन् सन् भविस्सदि भविष्यति तावत् । क्रमप्रवृत्ति पामीने ते ते व्यतिरेकव्यकितपणाने पामती थकी सुवर्णने बाजुबंधआदि पर्यायमात्र ( – पर्यायमात्ररूप) करे छे तेम.
माटे द्रव्यार्थिक कथनथी सत् -उत्पाद छे, पर्यायार्थिक कथनथी असत् -उत्पाद छे — ते वात अनवद्य (निर्दोष, अबाध्य) छे.
भावार्थः — जे पहेलां हयात होय तेनी ज उत्पत्तिने सत् -उत्पाद कहे छे अने जे पहेलां हयात न होय तेनी उत्पत्तिने असत् -उत्पाद कहे छे. ज्यारे पर्यायोने गौण करीने द्रव्यनुं मुख्यपणे कथन करवामां आवे छे, त्यारे तो जे हयात हतुं ते ज उत्पन्न थाय छे (कारण के द्रव्य तो त्रणे काळे हयात छे); तेथी द्रव्यार्थिक नयथी तो द्रव्यने सत्- उत्पाद छे. अने ज्यारे द्रव्यने गौण करीने पर्यायोनुं मुख्यपणे कथन करवामां आवे छे, त्यारे जे हयात नहोतुं ते उत्पन्न थाय छे (कारण के वर्तमान पर्याय भूतकाळे हयात नहोतो), तेथी पर्यायार्थिक नयथी द्रव्यने असत् -उत्पाद छे.
अहीं ए लक्षमां राखवुं के द्रव्य अने पर्यायो जुदी जुदी वस्तुओ नथी; तेथी पर्यायोनी विवक्षा वखते पण, असत् -उत्पादमां, जे पर्यायो छे ते द्रव्य ज छे, अने द्रव्यनी विवक्षा वखते पण, सत् -उत्पादमां, जे द्रव्य छे ते पर्यायो ज छे. १११.
हवे (सर्व पर्यायोमां द्रव्य अनन्य छे अर्थात् तेनुं ते ज छे माटे तेने सत् -उत्पाद छे – एम) सत् -उत्पादने अनन्यपणा वडे नक्की करे छेः —