लोकनमेकदेशावलोकनं, द्विचक्षुरवलोकनं सर्वावलोकनम् । ततः सर्वावलोकने द्रव्यस्या- न्यत्वानन्यत्वं च न विप्रतिषिध्यते ।।११४।।
सर्वद्रव्येषु यथासंभवं ज्ञातव्यमित्यर्थः ।।११४।। एवं सदुत्पादासदुत्पादकथनेन प्रथमा, सदुत्पाद- विशेषविवरणरूपेण द्वितीया, तथैवासदुत्पादविशेषविवरणरूपेण तृतीया, द्रव्यपर्याययोरेकत्वानेकत्व- प्रतिपादनेन चतुर्थीति सदुत्पादासदुत्पादव्याख्यानमुख्यतया गाथाचतुष्टयेन सप्तमस्थलं गतम् । अथ समस्तदुर्नयैकान्तरूपविवादनिषेधिकां नयसप्तभङ्गीं विस्तारयति — अत्थि त्ति य स्यादस्त्येव । स्यादिति
त्यां, एक चक्षु वडे अवलोकन ते एकदेश अवलोकन छे अने बे चक्षुओ वडे अवलोकन ते सर्व अवलोकन ( – संपूर्ण अवलोकन) छे. माटे सर्व अवलोकनमां द्रव्यनां अन्यत्व अने अनन्यत्व विरोध पामतां नथी.
भावार्थः — दरेक द्रव्य सामान्य -विशेषात्मक छे. तेथी दरेक द्रव्य तेनुं ते ज पण रहे छे अने बदलाय पण छे. द्रव्यनुं स्वरूप ज आवुं उभयात्मक होवाथी द्रव्यना अनन्यपणामां अने अन्यपणामां विरोध नथी. जेमके, मरीचि अने श्री महावीरस्वामीनुं जीवसामान्यनी अपेक्षाए अनन्यपणुं अने जीवना विशेषोनी अपेक्षाए अन्यपणुं होवामां कोई प्रकारनो विरोध नथी.
द्रव्यार्थिकनयरूपी एक चक्षुथी जोतां द्रव्यसामान्य ज जणाय छे तेथी द्रव्य अनन्य अर्थात् तेनुं ते ज भासे छे अने पर्यायार्थिकनयरूपी बीजा एक चक्षुथी जोतां द्रव्यना पर्यायोरूपी विशेषो जणाय छे तेथी द्रव्य अन्य – अन्य भासे छे. बन्ने नयोरूपी बन्ने चक्षुओथी जोतां द्रव्यसामान्य तथा द्रव्यना विशेषो बन्ने जणाय छे तेथी द्रव्य अनन्य तेम ज अन्य -अन्य बन्ने भासे छे. ११४.
हवे सर्व विरोधने दूर करनारी सप्तभंगी प्रगट करे छेः —