Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
२३९
आत्मा कर्ममलीमसः परिणामं लभते कर्मसंयुक्तम्
ततः श्लिष्यति कर्म तस्मात् कर्म तु परिणामः ।।१२१।।

यो हि नाम संसारनामायमात्मनस्तथाविधः परिणामः स एव द्रव्यकर्मश्लेषहेतुः अथ तथाविधपरिणामस्यापि को हेतुः, द्रव्यकर्म हेतुः, तस्य द्रव्यकर्मसंयुक्तत्वेनैवोपलम्भात् एवं सतीतरेतराश्रयदोषः न हि; अनादिप्रसिद्धद्रव्यकर्माभिसंबद्धस्यात्मनः प्राक्तनद्रव्यकर्मणस्तत्र हेतुत्वेनोपादानात् एवं कार्यकारणभूतनवपुराणद्रव्यकर्मत्वादात्मनस्तथाविधपरिणामो गाथाचतुष्टयेन द्वितीयस्थलं गतम् अथ संसारस्य कारणं ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म तस्य तु कारणं मिथ्यात्वरागादिपरिणाम इत्यावेदयतिआदा निर्दोषिपरमात्मा निश्चयेन शुद्धबुद्धैकस्वभावोऽपि व्यवहारेणानादिकर्मबन्धवशात् कम्ममलिमसो कर्ममलीमसो भवति तथाभवन्सन् किं करोति परिणामं

अन्वयार्थः[कर्ममलीमसः आत्मा] कर्मथी मलिन आत्मा [कर्मसंयुक्तं परिणामं] कर्मसंयुक्त परिणामने (द्रव्यकर्मना संयोगे थता अशुद्ध परिणामने) [लभते] पामे छे, [ततः] तेथी [कर्म श्लिष्यति] कर्म चोंटे छे (द्रव्यकर्म बंधाय छे); [तस्मात् तु] माटे [परिणामः कर्म] परिणाम ते कर्म छे.

टीकाः‘संसार’ नामनो जे आ आत्मानो तथाविध (ते प्रकारनो, तेवो) परिणाम ते ज द्रव्यकर्म वळगवानो हेतु छे. हवे, तथाविध परिणामनो कोण हेतु छे? द्रव्यकर्म तेनो हेतु छे, कारण के *द्रव्यकर्मथी संयुक्तपणे ज ते जोवामां आवे छे. (शंकाः) एम होय तो इतरेतराश्रय दोष आवे! (समाधानः) नथी आवतो; कारण के अनादिसिद्ध द्रव्यकर्म साथे संबद्ध एवा आत्मानुं जे पूर्वनुं द्रव्यकर्म तेने त्यां हेतुपणे ग्रहवामां (स्वीकारवामां) आव्युं छे.

आ रीते नवुं द्रव्यकर्म जेना कार्यभूत छे अने जूनुं द्रव्यकर्म जेना कारणभूत छे

द्रव्यकर्मनुं कारण अशुद्ध परिणाम कह्यो; पछी ते अशुद्ध परिणामना कारण विषे पूछवामां आवतां,

तेनुं कारण पाछुं द्रव्यकर्म कह्युं तेथी शंकाकारने शंका थाय छे के आ वातमां इतरेतराश्रय दोष आवे छे.

*द्रव्यकर्मना संयोगमां ज अशुद्ध परिणाम होय छे, द्रव्यकर्म विना कदी होतो नथी; तेथी द्रव्यकर्म
अशुद्ध परिणामनुं कारण छे.

१. एक असिद्ध बाबतने सिद्ध करवा माटे बीजी असिद्ध बाबतनो आश्रय लेवामां आवे अने वळी ते बीजी बाबतने सिद्ध करवा माटे पहेलीनो आश्रय लेवामां आवेए तर्कदोषने इतरेतराश्रय दोष कहेवामां आवे छे.

२. नवा द्रव्यकर्मनुं कारण अशुद्ध आत्मपरिणाम छे, अने ते अशुद्ध आत्मपरिणामनुं कारण तो तेनुं ते ज द्रव्यकर्म नहि (अर्थात् नवुं द्रव्यकर्म नहि) पण पहेलांनुं (जूनुं) द्रव्यकर्म छे; माटे त्यां इतरेतराश्रय दोष आवतो नथी.