Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 122.

< Previous Page   Next Page >


Page 240 of 513
PDF/HTML Page 271 of 544

 

द्रव्यकर्मैव, तथात्मा चात्मपरिणामकर्तृत्वाद्द्रव्यकर्मकर्ताप्युपचारात् ।।१२१।।

अथ परमार्थादात्मनो द्रव्यकर्माकर्तृत्वमुद्योतयति परिणामो सयमादा सा पुण किरिय त्ति होदि जीवमया

किरिया कम्म त्ति मदा तम्हा कम्मस्स ण दु कत्ता ।।१२२।।
परिणामः स्वयमात्मा सा पुनः क्रियेति भवति जीवमयी
क्रिया कर्मेति मता तस्मात्कर्मणो न तु कर्ता ।।१२२।।

आत्मपरिणामो हि तावत्स्वयमात्मैव, परिणामिनः परिणामस्वरूपकर्तृत्वेन परिणामा- दनन्यत्वात् यश्च तस्य तथाविधः परिणामः सा जीवमय्येव क्रिया, सर्वद्रव्याणां परिणाम- लहदि परिणामं लभते कथंभूतम् कथंभूतम् कम्मसंजुत्तं कर्मरहितपरमात्मनो विसद्रशकर्मसंयुक्तं मिथ्यात्व- रागादिविभावपरिणामं तत्तो सिलिसदि कम्मं ततः परिणामात् श्लिष्यति बध्नाति किम् कर्म यदि पुनर्निर्मलविवेकज्योतिःपरिणामेन परिणमति तदा तु कर्म मुञ्चति तम्हा कम्मं तु परिणामो तस्मात् कर्म तु परिणामः यस्माद्रागादिपरिणामेन कर्म बध्नाति, तस्माद्रागादिविकल्परूपो भावकर्मस्थानीयः सरागपरिणाम एव कर्मकारणत्वादुपचारेण कर्मेति भण्यते ततः स्थितं रागादिपरिणामः कर्मबन्ध- कारणमिति ।।१२१।। अथात्मा निश्चयेन स्वकीयपरिणामस्यैव कर्ता, न च द्रव्यकर्मण इति प्रतिपादयति


एवो (आत्मानो तथाविध परिणाम) होवाथी आत्मानो तथाविध परिणाम उपचारथी द्रव्यकर्म ज छे, अने आत्मा पण पोताना परिणामनो कर्ता होवाथी द्रव्यकर्मनो कर्ता पण उपचारथी छे. १२१.

हवे परमार्थे आत्माने द्रव्यकर्मनुं अकर्तापणुं प्रकाशे छेः

परिणाम पोते जीव छे, ने छे क्रिया ए जीवमयी;
किरिया गणी छे कर्म; तेथी कर्मनो कर्ता नथी.१२२.

अन्वयार्थः[परिणामः] परिणाम [स्वयम्] पोते [आत्मा] आत्मा छे, [सा पुनः] अने ते [जीवमयी क्रिया इति भवति] जीवमयी क्रिया छे; [क्रिया] क्रियाने [कर्म इति मता] कर्म मानवामां आवी छे; [तस्मात्] माटे आत्मा [कर्मणः कर्ता तु न] द्रव्यकर्मनो कर्ता तो नथी.

टीकाःप्रथम तो आत्मानो परिणाम खरेखर पोते आत्मा ज छे, कारण के परिणामी परिणामना स्वरूपनो करनार होवाने लीधे परिणामथी अनन्य छे; अने जे तेनो (आत्मानो) तथाविध परिणाम छे ते जीवमयी ज क्रिया छे, कारण के सर्व द्रव्योने

२४०प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-