Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 126.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
२४७
भवतीति तमभिनन्दन् द्रव्यसामान्यवर्णनामुपसंहरति

कत्ता करणं कम्मं फलं च अप्प त्ति णिच्छिदो समणो

परिणमदि णेव अण्णं जदि अप्पाणं लहदि सुद्धं ।।१२६।।
कर्ता करणं कर्म कर्मफलं चात्मेति निश्चितः श्रमणः
परिणमति नैवान्यद्यदि आत्मानं लभते शुद्धम् ।।१२६।।

यो हि नामैवं कर्तारं करणं कर्म कर्मफलं चात्मानमेव निश्चित्य न खलु परद्रव्यं परिणमति स एव विश्रान्तपरद्रव्यसंपर्कं द्रव्यान्तःप्रलीनपर्यायं च शुद्धमात्मानमुपलभते, न कत्ता स्वतन्त्रः स्वाधीनः कर्ता साधको निष्पादकोऽस्मि भवामि स कः अप्प त्ति आत्मेति आत्मेति कोऽर्थः अहमिति कथंभूतः एकः कस्याः साधकः निर्मलात्मानुभूतेः किंविशिष्टः निर्विकार- परमचैतन्यपरिणामेन परिणतः सन् करणं अतिशयेन साधकं साधक तमं क रणमुपक रणं क रणकारक महमेक एवास्मि भवामि क स्याः साधकम् सहजशुद्धपरमात्मानुभूतेः केन कृत्वा

‘कर्ता, करम, फळ, करण जीव छे’ एम जो निश्चय करी
मुनि अन्यरूप नव परिणमे, प्राप्ति करे शुद्धात्मनी.१२६.

अन्वयार्थः[यदि] जो [श्रमणः] श्रमण [कर्ता करणं कर्म कर्मफलं च आत्मा] ‘कर्ता, करण, कर्म अने कर्मफळ आत्मा छे’ [इति निश्चितः] एवा निश्चयवाळो थयो थको [अन्यत्] अन्यरूपे [न एव परिणमति] न ज परिणमे, [शुद्धम् आत्मानं] तो ते शुद्ध आत्माने [लभते] उपलब्ध करे छे.

टीकाःजे पुरुष ए रीते ‘कर्ता, करण, कर्म अने कर्मफळ आत्मा ज छे’ एम निश्चय करीने खरेखर परद्रव्यरूपे परिणमतो नथी, ते ज पुरुष, परद्रव्य साथे संपर्क जेने अटकी गयो छे अने द्रव्यनी अंदर पर्यायो जेने प्रलीन थया छे एवा शुद्ध आत्माने उपलब्ध करे छे; परंतु अन्य कोई (पुरुष) एवा शुद्ध आत्माने उपलब्ध करतो नथी.

ते स्पष्ट रीते समजाववामां आवे छेः

१. ‘कर्ता, करण वगेरे आत्मा ज छे’ एवो निश्चय थतां बे वात नक्की थई जाय छेः एक वात तो ए के ‘कर्ता, करण वगेरे आत्मा ज छे, पुद्गलादि नथी अर्थात् आत्माने परद्रव्य साथे संबंध नथी’; बीजी वात ए नक्की थाय छे के अभेदद्रष्टिमां कर्ता, करण वगेरे भेदो नथी, ए
बधुंय एक आत्मा ज छे अर्थात्
पर्यायो द्रव्यनी अंदर डूबी गयेला छे.’