Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
२७१

सूत्रयिष्यते हि स्वयमाकाशस्य प्रदेशलक्षणमेकाणुव्याप्यत्वमिति इह तु यथाकाशस्य प्रदेशास्तथा शेषद्रव्याणामिति प्रदेशलक्षणप्रकारैकत्वमासूत्र्यते ततो यथैकाणुव्याप्येनांशेन गण्यमानस्याकाशस्यानन्तांशत्वादनन्तप्रदेशत्वं तथैकाणुव्याप्येनांशेन गण्यमानानां धर्माधर्मैक- जीवानामसंख्येयांशत्वात् प्रत्येकमसंख्येयप्रदेशत्वम् यथा चावस्थितप्रमाणयोर्धर्माधर्मयोस्तथा संवर्तविस्ताराभ्यामनवस्थितप्रमाणस्यापि शुष्कार्द्रत्वाभ्यां चर्मण इव जीवस्य स्वांशाल्प- बहुत्वाभावादसंख्येयप्रदेशत्वमेव अमूर्तसंवर्तविस्तारसिद्धिश्च स्थूलकृशशिशुकुमारशरीरव्यापि- त्वादस्ति स्वसंवेदनसाध्यैव पुद्गलस्य तु द्रव्येणैकप्रदेशमात्रत्वादप्रदेशत्वे यथोदिते सत्यपि उत्पत्तिर्भणिता परमाणुव्याप्तक्षेत्रं प्रदेशो भवति तदग्रे विस्तरेण कथयति इह तु सूचितमेव ।।१३७।। एवं पञ्चमस्थले स्वतन्त्रगाथाद्वयं गतम् अथ कालद्रव्यस्य द्वितीयादिप्रदेशरहितत्वेनाप्रदेशत्वं व्यवस्थापयतिसमओ समयपर्यायस्योपादानकारणत्वात्समयः कालाणुः दु पुनः स च कथंभूतः

टीकाः(भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव) पोते ज (१४०मा) सूत्र द्वारा कहेशे के आकाशना प्रदेशनुं लक्षण एकाणुव्याप्यत्व छे (अर्थात् एक परमाणुथी व्याप्यपणुं ते प्रदेशनुं लक्षण छे); अने अहीं (आ सूत्रमां, आ गाथामां) ‘जे रीते आकाशना प्रदेशो छे ते ज रीते बाकीनां द्रव्योना प्रदेशो छे’ एम प्रदेशना लक्षणनी एकप्रकारता कहेवामां आवे छे.

माटे, जेम एकाणुव्याप्य (एक परमाणुथी व्याप्य होय एवडा) अंश वडे गणतां आकाशना अनंत अंशो होवाथी आकाश अनंतप्रदेशी छे, तेम एकाणुव्याप्य (एक परमाणुथी व्यपावायोग्य) अंश वडे गणतां धर्म, अधर्म अने एक जीवना असंख्यात अंशो होवाथी ते दरेक असंख्यातप्रदेशी छे. वळी जेम अवस्थित प्रमाणवाळां धर्म तथा अधर्म असंख्यातप्रदेशी छे, तेम संकोचविस्तारने लीधे अनवस्थित प्रमाणवाळा जीवनेसूका- भीना चामडानी माफकनिज अंशोनुं अल्पबहुत्व नहि थतुं होवाथी असंख्यातप्रदेशीपणुं ज छे. (अहीं ए प्रश्न थाय छे के अमूर्त एवा जीवना संकोचविस्तार केम संभवे? तेनुं समाधान करवामां आवे छेः) अमूर्तना संकोचविस्तारनी सिद्धि तो पोताना अनुभवथी ज साध्य छे, कारण के (सर्वने स्वानुभवथी प्रगट छे के) जीव स्थूल तेम ज कृश शरीरमां, तथा बाळक तेम ज कुमारना शरीरमां व्यापे छे.

पुद्गल तो द्रव्ये एकप्रदेशमात्र होवाथी यथोक्त रीते (पूर्वे जेम कह्युं तेम) अप्रदेशी

१. अवस्थित प्रमाण = नियत परिमाण; निश्चित माप. (धर्मद्रव्य तथा अधर्मद्रव्यनुं माप लोक जेटलुं नियत छे.)

२. अनवस्थित = अनिश्चित. (सूका -भीना चामडानी माफक जीव परक्षेत्रनी अपेक्षाए संकोचविस्तार पामतो होवाथी अनिश्चित मापवाळो छे. आम होवा छतां, जेम चामडाना स्व -अंशो घटता -वधता
नथी, तेम जीवना स्व -अंशो घटता -वधता नथी; तेथी ते सदाय नियत असंख्यप्रदेशी ज छे.)