Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
३३१

जानाति चेत्यत्रापि पर्यनुयोगस्यानिवार्यत्वात् न चैतदत्यन्तदुर्घटत्वाद्दार्ष्टान्तिकीकृ तं, किं तु दृष्टान्तद्वारेणाबालगोपालप्रक टितम् तथाहियथा बालकस्य गोपालकस्य वा पृथगवस्थितं मृद्बलीवर्दं बलीवर्दं वा पश्यतो जानतश्च न बलीवर्देन सहास्ति संबन्धः, विषय- भावावस्थितबलीवर्दनिमित्तोपयोगाधिरूढबलीवर्दाकारदर्शनज्ञानसंबन्धो बलीवर्दसंबन्धव्यवहार- साधकस्त्वस्त्येव, तथा किलात्मनो नीरूपत्वेन स्पर्शशून्यत्वान्न कर्मपुद्गलैः सहास्ति संबन्धः, एकावगाहभावावस्थितकर्मपुद्गलनिमित्तोपयोगाधिरूढरागद्वेषादिभावसंबन्धः कर्मपुद्गलबन्ध- व्यवहारसाधकस्त्वस्त्येव ।।१७४।। जीवो विशेषभेदज्ञानरहितः सन् काष्ठपाषाणाद्यचेतनजिनप्रतिमां दृष्टवा मदीयाराध्योऽयमिति मन्यते यद्यपि तत्र सत्तावलोकदर्शनेन सह प्रतिमायास्तादात्म्यसंबन्धो नास्ति तथापि परिच्छेद्यपरिच्छेदक- लक्षणसंबन्धोऽस्ति यथा वा समवसरणे प्रत्यक्षजिनेश्वरं दृष्टवा विशेषभेदज्ञानी मन्यते मदीयाराध्योऽयमिति तत्रापि यद्यप्यवलोक नज्ञानस्य जिनेश्वरेण सह तादात्म्यसंबन्धो नास्ति तथाप्या- राध्याराधकसंबन्धोऽस्ति तह बंधो तेण जाणीहि तथा बन्धं तेनैव दृष्टान्तेन जानीहि अयमत्रार्थः यद्यप्ययमात्मा निश्चयेनामूर्तस्तथाप्यनादिकर्मबन्धवशाद्व्यवहारेण मूर्तः सन् द्रव्यबन्धनिमित्तभूतं रागादि- विकल्परूपं भावबन्धोपयोगं करोति तस्मिन्सति मूर्तद्रव्यकर्मणा सह यद्यपि तादात्म्यसंबन्धो नास्ति


के जो एम न होय तो अहीं पण (देखवा -जाणवानी बाबतमां पण) ए प्रश्न अनिवार्य छे के अमूर्त मूर्तने कई रीते देखे छे अने जाणे छे?

वळी एम नथी के आ वात (अरूपीनो रूपी साथे बंध थवानी वात) अत्यंत दुर्घट छे तेथी तेने दार्ष्टांतरूप बनावी छे (द्रष्टांतथी समजावी छे), परंतु द्रष्टांत द्वारा आबालगोपाल सौने प्रगट थाय तेथी द्रष्टांत वडे समजाववामां आवी छे. ते आ प्रमाणेः जेवी रीते बाळने अथवा गोपाळने पृथक् रहेला माटीना वृषभने अथवा (साचा) वृषभने देखतां अने जाणतां वृषभ साथे संबंध नथी, तोपण *विषयपणे रहेलो वृषभ जेमनुं निमित्त छे एवां जे उपयोगमां आरूढ वृषभाकार दर्शन -ज्ञान तेमनी साथेनो संबंध वृषभ साथेना संबंधरूप व्यवहारनो साधक जरूर छे; तेवी रीते आत्मा अरूपीपणाने लीधे स्पर्शशून्य होवाथी तेने कर्मपुद्गलो साथे संबंध नथी, तोपण एकावगाहपणे रहेलां कर्मपुद्गलो जेमनुं निमित्त छे एवा जे उपयोगमां आरूढ रागद्वेषादिभावो तेमनी साथेनो संबंध कर्मपुद्गलो साथेना बंधरूप व्यवहारनो साधक जरूर छे.

भावार्थः‘आत्मा अमूर्तिक होवा छतां मूर्तिक कर्मपुद्गलो साथे केम बंधाय छे?’ एवा प्रश्ननो आचार्य भगवाने उत्तर आप्यो छे केआत्मा अमूर्तिक होवा छतां

*वृषभ अर्थात् बळद वृषभाकार दर्शन -ज्ञाननुं निमित्त छे.