Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 175.

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अथ भावबन्धस्वरूपं ज्ञापयति

उवओगमओ जीवो मुज्झदि रज्जेदि वा पदुस्सेदि

पप्पा विविधे विसये जो हि पुणो तेहिं सो बंधो ।।१७५।। तथापि पूर्वोक्तदृष्टान्तेन संश्लेषसंबन्धोऽस्तीति नास्ति दोषः ।।१७४।। एवं शुद्धबुद्धैकस्वभाव- जीवकथनमुख्यत्वेन प्रथमगाथा, मूर्तिरहितजीवस्य मूर्तकर्मणा सह कथं बन्धो भवतीति पूर्वपक्षरूपेण


मूर्तिक पदार्थोने केम जाणे छे? जे रीते ते मूर्तिक पदार्थोने जाणे छे ते ज रीते मूर्तिक कर्मपुद्गलो साथे बंधाय छे.

खरेखर अरूपी आत्माने रूपी पदार्थो साथे कांई संबंध नहि होवा छतां अरूपीने रूपी साथे संबंध होवानो व्यवहार पण विरोध पामतो नथी. ‘आत्मा मूर्तिक पदार्थने जाणे छे’ एम कहेवामां आवे छे त्यां परमार्थे अमूर्तिक आत्माने मूर्तिक पदार्थ साथे कांई संबंध नथी; आत्माने तो मात्र मूर्तिक पदार्थना आकारे थतुं जे ज्ञान तेनी साथे ज संबंध छे अने ते पदार्थाकार ज्ञान साथेना संबंधने लीधे ज ‘अमूर्तिक आत्मा मूर्तिक पदार्थने जाणे छे’ एवो अमूर्तिक -मूर्तिकना संबंधरूप व्यवहार सिद्ध थाय छे. एवी ज रीते, ‘अमुक आत्माने मूर्तिक कर्मपुद्गलो साथे बंध छे’ एम कहेवामां आवे छे त्यां परमार्थे अमूर्तिक आत्माने मूर्तिक कर्मपुद्गलो साथे कांई संबंध नथी; आत्माने तो कर्मपुद्गलो जेमां निमित्त छे एवा रागद्वेषादिभावो साथे ज संबंध (बंध) छे अने ते कर्मनिमित्तक रागद्वेषादिभावो साथे संबंध (बंध) होवाने लीधे ज ‘आ आत्माने मूर्तिक कर्मपुद्गलो साथे बंध छे’ एवो अमूर्तिक -मूर्तिकना बंधरूप व्यवहार सिद्ध थाय छे.

जोके मनुष्यने स्त्री -पुत्र -धनादिक साथे खरेखर कांई संबंध नथी, तेओ ते मनुष्यथी तद्दन भिन्न छे, तोपण स्त्री -पुत्र -धनादिक प्रत्ये राग करनारा मनुष्यने रागनुं बंधन होवाथी अने ते रागमां स्त्री -पुत्र -धनादिक निमित्त होवाथी ‘आ मनुष्यने स्त्री -पुत्र -धनादिकनुं बंधन छे’ एम व्यवहारथी जरूर कहेवामां आवे छे; तेवी ज रीते, जोके आत्माने कर्मपुद्गलो साथे खरेखर कांई संबंध नथी, तेओ आत्माथी तद्दन भिन्न छे, तोपण रागद्वेषादिभावो करनारा आत्माने रागद्वेषादिभावोनुं बंधन होवाथी अने ते भावोमां कर्मपुद्गलो निमित्त होवाथी ‘आ आत्माने कर्मपुद्गलोनुं बंधन छे’ एम व्यवहारथी जरूर कही शकाय छे. १७४.

हवे भावबंधनुं स्वरूप जणावे छेः

विधविध विषयो पामीने उपयोग -आत्मक जीव जे
प्रद्वेष -राग -विमोहभावे परिणमे, ते बंध छे. १७५.

३३प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-