Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 190.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
३५१
शुद्धत्वद्योतकत्वान्निश्चयनय एव साधकतमो, न पुनरशुद्धत्वद्योतको व्यवहारनयः ।।१८९।।
अथाशुद्धनयादशुद्धात्मलाभ एवेत्यावेदयति

ण चयदि जो दु ममत्तिं अहं ममेदं ति देहदविणेसु

सो सामण्णं चत्ता पडिवण्णो होदि उम्मग्गं ।।१९०।। जदीणं जितेन्द्रियत्वेन शुद्धात्मस्वरूपे यत्नपराणां गणधरदेवादियतीनाम् ववहारो द्रव्यकर्मरूपव्यहारबन्धः अण्णहा भणिदो निश्चयनयापेक्षयान्यथा व्यवहारनयेनेति भणितः किंच रागादीनेवात्मा करोति तानेव भुङ्क्ते चेति निश्चयनयलक्षणमिदम् अयं तु निश्चयनयो द्रव्यकर्मबन्धप्रतिपादकासद्भूतव्यवहार- नयापेक्षया शुद्धद्रव्यनिरूपणात्मको विवक्षितनिश्चयनयस्तथैवाशुद्धनिश्चयश्च भण्यते द्रव्यकर्माण्यात्मा (उत्कृष्ट साधक) होवाथी *


ग्रहण करवामां आव्यो छे; (कारण के) साध्य शुद्ध छे तेथी द्रव्यना शुद्धत्वनो द्योतक (प्रकाशक) होवाने लीधे निश्चयनय ज साधकतम छे, पण अशुद्धत्वनो द्योतक व्यवहारनय साधकतम नथी. १८९.

हवे अशुद्धनयथी अशुद्ध आत्मानी प्राप्ति ज थाय छे एम कहे छेः
‘हुं आ अने आ मारुं’ ए ममता न देह -धने तजे,
ते छोडी जीव श्रामण्यने उन्मार्गनो आश्रय करे.१९०.
पर्यायोनो स्वीकार करनार निश्चयनयने उपादेय केम कह्यो छे?

उत्तरः‘रागपरिणामनो करनार पण आत्मा ज छे अने वीतरागपरिणामनो करनार पण आत्मा ज छे, अज्ञानदशा पण आत्मा स्वतंत्रपणे करे छे अने ज्ञानदशा पण आत्मा स्वतंत्रपणे करे छे’आवा यथार्थ ज्ञाननी अंदर द्रव्यसामान्यनुं ज्ञान गर्भितपणे समाई ज जाय छे. जो विशेषोनुं बराबर यथार्थ ज्ञान होय तो ए विशेषो जेना विना होता नथी एवा सामान्यनुं ज्ञान होवुं ज जोईए. द्रव्यसामान्यना ज्ञान विना पर्यायोनुं यथार्थ ज्ञान होई शके ज नहि. माटे उपरोक्त निश्चयनयमां द्रव्यसामान्यनुं ज्ञान गर्भितपणे समाई ज जाय छे. जे जीव बंधमार्गरूप पर्यायमां तेम ज मोक्षमार्गरूप पर्यायमां आत्मा एकलो ज छे एम यथार्थपणे (द्रव्यसामान्यनी अपेक्षा सहित) जाणे छे, ते जीव परद्रव्य वडे संपृक्त थतो नथी अने द्रव्यसामान्यनी अंदर पर्यायोने डुबाडी दईने सुविशुद्ध होय छे. आ रीते पर्यायोना यथार्थ ज्ञानमां द्रव्यसामान्यनुं ज्ञान अपेक्षित होवाथी अने द्रव्य -पर्यायोना यथार्थ ज्ञानमां द्रव्यसामान्यना आलंबनरूप अभिप्राय अपेक्षित होवाथी उपरोक्त निश्चयनयने उपादेय कह्यो छे. [विशेष माटे १२६मी गाथानी टीका जुओ.]

*निश्चयनय उपादेय छे अने व्यवहारनय हेय छे.
प्रश्नः
द्रव्यसामान्यनुं आलंबन ज उपादेय होवा छतां, अहीं रागपरिणामना ग्रहणत्यागरूप