Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
चरणानुयोगसूचक चूलिका
३८९
लिङ्गग्रहणे तेषां गुरुरिति प्रव्रज्यादायको भवति
छेदयोरुपस्थापकाः शेषा निर्यापकाः श्रमणाः ।।२१०।।

यतो लिङ्गग्रहणकाले निर्विकल्पसामायिकसंयमप्रतिपादकत्वेन यः किलाचार्यः प्रव्रज्यादायकः स गुरुः, यः पुनरनन्तरं सविकल्पच्छेदोपस्थापनसंयमप्रतिपादकत्वेन छेदं प्रत्युपस्थापकः स निर्यापकः, योऽपि छिन्नसंयमप्रतिसन्धानविधानप्रतिपादकत्वेन छेदे सत्युपस्थापकः सोऽपि निर्यापक एव ततश्छेदोपस्थापकः परोऽप्यस्ति ।।२१०।। सूत्रद्वयं गतम् अथास्य तपोधनस्य प्रव्रज्यादायक इवान्योऽपि निर्यापकसंज्ञो गुरुरस्ति इति गुरुव्यवस्थां निरूपयतिलिंगग्गहणे तेसिं लिङ्गग्रहणे तेषां तपोधनानां गुरु त्ति होदि गुरुर्भवतीति कः पव्वज्जदायगो निर्विकल्पसमाधिरूपपरमसामायिकप्रतिपादको योऽसौ प्रव्रज्यादायकः स एव दीक्षागुरुः, छेदेसु अ वट्टगा छेदयोश्च वर्तकाः ये सेसा णिज्जावगा समणा ते शेषाः श्रमणा निर्यापका भवन्ति शिक्षागुरवश्च भवन्तीति अयमत्रार्थःनिर्विकल्पसमाधिरूपसामायिकस्यैकदेशेन च्युतिरेकदेशच्छेदः,

अन्वयार्थः[लिंगग्रहणे] लिंगग्रहण वखते [प्रव्रज्यादायकः भवति] जे प्रव्रज्यादायक (दीक्षा देनार) छे ते [तेषां गुरुः इति] तेमना गुरु छे अने [छेदयोः उपस्थापकाः] जे छेदद्वये उपस्थापक छे [एटले के (१) जे भेदोमां स्थापित करे छे तेम ज (२) जे संयममां छेद थतां फरी स्थापित करे छे] [शेषाः श्रमणाः] ते शेष श्रमणो [निर्यापकाः] निर्यापक छे.

टीकाःजे आचार्य लिंगग्रहणकाळे निर्विकल्प सामायिकसंयमना प्रतिपादक होवाथी प्रव्रज्यादायक छे, ते गुरु छे; अने त्यार पछी तुरत जे (आचार्य) सविकल्प छेदोपस्थापनसंयमना प्रतिपादक होवाथी ‘छेद प्रत्ये उपस्थापक (भेदमां स्थापनार)’ छे, ते निर्यापक छे; तेम ज जे (आचार्य) छिन्न संयमना प्रतिसंधाननी विधिना प्रतिपादक होवाथी ‘छेद थतां उपस्थापक (संयममां छेद थतां फरी तेमां स्थापित करनार)’ छे, ते पण निर्यापक ज छे. तेथी छेदोपस्थापक पर पण होय छे. २१०. १. छेदद्वय = बे प्रकारना छेद. [अहीं, (१) संयममां जे २८ मूळगुणरूप भेद पडे तेने पण छेद कहेल

छे अने (२) खंडनने अथवा दोषने पण छेद कहेल छे.] २. निर्यापक = निर्वाह करनार; सदुपदेशथी द्रढ करनार; शिक्षागुरु; श्रुतगुरु. ३. छिन्न = छेद पामेलो; खंडित; तूटेलो; दोषप्राप्त. ४. प्रतिसंधान = फरीने सांधवुं ते; संधान; संधाण; जोडी देवुं ते; दोष टाळीने सरखुं (दोष विनानुं)

करी देवुं ते. ५. छेदोपस्थापकना बे अर्थ छेः (१) जे ‘छेद (भेद) प्रत्ये उपस्थापक’ छे अर्थात् जे २८ मूळगुणरूप

भेदो समजावी तेमां स्थापित करे छे ते छेदोपस्थापक छे; तेम ज (२) जे ‘छेद थतां उपस्थापक’
छे एटले के संयम छिन्न (खंडित) थतां फरी तेमां स्थापित करे छे ते पण छेदोपस्थापक छे.