Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 211-212.

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३९०प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
अथ छिन्नसंयमप्रतिसन्धानविधानमुपदिशति
पयदम्हि समारद्धे छेदो समणस्स कायचेट्ठम्हि
जायदि जदि तस्स पुणो आलोयणपुव्विया किरिया ।।२११।।
छेदुवजुत्तो समणो समणं ववहारिणं जिणमदम्हि
आसेज्जालोचित्ता उवदिट्ठं तेण कायव्वं ।।२१२।। (जुगलं)
प्रयतायां समारब्धायां छेदः श्रमणस्य कायचेष्टायाम्
जायते यदि तस्य पुनरालोचनपूर्विका क्रिया ।।२११।।
छेदोपयुक्तः श्रमणः श्रमणं व्यवहारिणं जिनमते
आसाद्यालोच्योपदिष्टं तेन कर्तव्यम् ।।२१२।। (युगलम्)
सर्वथा च्युतिः सक लच्छेद इति देशसकलभेदेन द्विधा छेदः तयोश्छेदयोर्ये प्रायश्चित्तं दत्वा संवेग-
वैराग्यजनकपरमागमवचनैः संवरणं कुर्वन्ति ते निर्यापकाः शिक्षागुरवः श्रुतगुरवश्चेति भण्यन्ते
दीक्षादायकस्तु दीक्षागुरुरित्यभिप्रायः ।।२१०।। अथ पूर्वसूत्रोक्तच्छेदद्वयस्य प्रायश्चित्तविधानं कथयति
पयदम्हि समारद्धे छेदो समणस्स कायचेट्ठम्हि जायदि जदि प्रयतायां समारब्धायां छेदः श्रमणस्य कायचेष्टायां
जायते यदि चेत् अथ विस्तरःछेदो जायते यदि चेत् स्वस्थभावच्युतिलक्षणः छेदो भवति कस्याम्
कायचेष्टायाम् कथंभूतायाम् प्रयतायां स्वस्थभावलक्षणप्रयत्नपरायां समारब्धायां अशनशयनयान-
हवे छिन्न संयमना प्रतिसंधाननी विधि उपदेशे छेः
जो छेद थाय प्रयत्न सह कृत कायनी चेष्टा विषे,
आलोचनापूर्वक क्रिया कर्तव्य छे ते साधुने.२११.
छेदोपयुक्त मुनि, श्रमण व्यवहारविज्ञ कने जई,
निज दोष आलोचन करी, श्रमणोपदिष्ट करे विधि.२१२.

अन्वयार्थः[यदि] जो [श्रमणस्य] श्रमणने [प्रयतायां] *प्रयत्नपूर्वक [समारब्धायां] करवामां आवती [कायचेष्टायां] कायचेष्टाने विषे [छेदः जायते] छेद थाय छे तो [तस्य पुनः] *मुनिने (मुनित्वोचित) शुद्धोपयोग ते अंतरंग अथवा निश्चय प्रयत्न छे अने ते शुद्धोपयोगदशामां वर्ततो जे (हठ वगरनो) देहचेष्टादिकसंबंधी शुभोपयोग ते बहिरंग अथवा व्यवहार प्रयत्न छे. [शुद्धोपयोगदशा न होय त्यां शुभोपयोग हठ सहित होय छे; ते शुभोपयोग व्यवहार -प्रयत्नपणाने पण पामतो नथी.]