Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 216.

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माणे विहारकर्मणि, श्रामण्यपर्यायसहकारिकारणत्वेनाप्रतिषिध्यमाने केवलदेहमात्र उपधौ,
अन्योन्यबोध्यबोधकभावमात्रेण कथञ्चित्परिचिते श्रमणे, शब्दपुद्गलोल्लाससंवलनकश्मलित-
चिद्भित्तिभागायां शुद्धात्मद्रव्यविरुद्धायां कथायां चैतेष्वपि तद्विकल्पाचित्रितचित्तभित्तितया
प्रतिषेध्यः प्रतिबन्धः
।।२१५।।
अथ को नाम छेद इत्युपदिशति

अपयत्ता वा चरिया सयणासणठाणचंकमादीसु

समणस्स सव्वकाले हिंसा सा संतय त्ति मदा ।।२१६।। गाथात्रयं गतम् अथ शुद्धोपयोगभावनाप्रतिबन्धकच्छेदं कथयतिमदा मता मता सम्मता का हिंसा शुद्धोपयोगलक्षणश्रामण्यछेदकारणभूता हिंसा कथंभूता संतय त्ति संतता निरन्तरेति का वृत्तिना कारणभूत भिक्षाने अर्थे करवामां आवतुं जे विहारकार्य, (५) श्रामण्यपर्यायनुं सहकारी कारण होवाथी जेनो निषेध नथी एवो जे केवळ देहमात्र परिग्रह, (६) मात्र अन्योन्य (७) शब्दरूप पुद्गलोल्लास (पुद्गलपर्याय) साथे संबंधथी जेमां चैतन्यरूपी भींतनो भाग मलिन थाय छे एवी, शुद्धात्मद्रव्यथी विरुद्ध जे कथा, तेमनामां पण प्रतिबंध निषेधवायोग्य तजवायोग्य छे एटले के तेमना विकल्पोथी पण चित्तभूमि चित्रित थवा देवी योग्य नथी.

भावार्थःआगमविरुद्ध आहारविहारादि तो मुनिए प्रथम ज छोड्या छे. हवे संयमना निमित्तपणानी बुद्धिए मुनिने जे आगमोक्त आहार, अनशन, गुफा वगेरेमां निवास, विहार, देहमात्र परिग्रह, अन्य मुनिओनो परिचय अने धार्मिक चर्चावार्ता वर्ते छे, तेमना प्रत्ये पण रागादि करवायोग्य नथीतेमना विकल्पोथी पण मनने रंगावा देवुं योग्य नथी; ए रीते आगमोक्त आहारविहारादिमां पण प्रतिबंध पामवो योग्य नथी कारण के तेनाथी संयममां छेद थाय छे. २१५.

हवे छेद शुं छे (अर्थात् कोने छेद कहेवामां आवे छे) ते उपदेशे छेः

आसन -शयन -गमनादिके चर्या प्रयत्नविहीन जे,
ते जाणवी हिंसा सदा संतानवाहिनी श्रमणने.२१६.

३९प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

*बोध्यबोधकपणे जेमनो कथंचित् परिचय वर्ते छे एवा जे श्रमण (अन्य मुनि), अने

*बोध्य एटले जेने समजाववानो होय ते अर्थात् जेने उपदेश देवानो होय ते, अने बोधक एटले समजावनार अर्थात् उपदेश देनार. मात्र अन्य श्रमणो पासेथी पोते बोध लेवा माटे अथवा अन्य श्रमणोने बोध देवा माटे मुनिने अन्य श्रमणो साथे परिचय होय छे.