Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अन्तरेण वस्तु परिणामोऽपि न सत्तामालम्बते स्वाश्रयभूतस्य वस्तुनोऽभावे निराश्रयस्य परिणामस्य शून्यत्वप्रसङ्गात् वस्तु पुनरूर्ध्वतासामान्यलक्षणे द्रव्ये सहभाविविशेषलक्षणेषु गुणेषु क्रमभाविविशेषलक्षणेषु पर्यायेषु व्यवस्थितमुत्पादव्ययध्रौव्यमयास्तित्वेन निर्वर्तित- निर्वृत्तिमच्च अतः परिणामस्वभावमेव ।।१०।। कः कर्ता अत्थो परमात्मपदार्थः, सुवर्णद्रव्यपीतत्वादिगुणकुण्डलादिपर्यायस्थसुवर्णपदार्थवत् पुनश्च किंरूपः अत्थित्तणिव्वत्तो शुद्धद्रव्यगुणपर्यायाधारभूतं यच्छुद्धास्तित्वं तेन निर्वृत्तोऽस्तित्वनिर्वृत्तः, सुवर्णद्रव्यगुणपर्यायास्तित्वनिर्वृत्तसुवर्णपदार्थवदिति अयमत्र तात्पर्यार्थः यथा ---मुक्तजीवे द्रव्यगुण- पर्यायत्रयं परस्पराविनाभूतं दर्शितं तथा संसारिजीवेऽपि मतिज्ञानादिविभावगुणेषु नरनारकादि- विभावपर्यायेषु नयविभागेन यथासंभवं विज्ञेयम्, तथैव पुद्गलादिष्वपि एवं शुभाशुभ- शुद्धपरिणामव्याख्यानमुख्यत्वेन तृतीयस्थले गाथाद्वयं गतम् ।।१०।। अथ वीतरागसरागचारित्रसंज्ञयोः


के (१) परिणाम विनानी वस्तु गधेडानां शिंगडां समान छे (२) तथा तेने, जोवामां आवता गोरस वगेरेना (दूध, दहीं आदि) परिणामो साथे विरोध आवे छे. (जेम परिणाम विना वस्तु हयाती धरती नथी तेम) वस्तु विना परिणाम पण हयाती धरता नथी, कारण के स्व -आश्रयभूत वस्तुना अभावमां (अर्थात् पोताने आश्रयरूप जे वस्तु ते न होय तो) निराश्रय परिणामने शून्यपणानो प्रसंग आवे छे.

वळी वस्तु तो ऊर्ध्वतासामान्यस्वरूप द्रव्यमां, सहभावी विशेषस्वरूप (साथे साथे रहेनारा विशेषोभेदो जेमनुं स्वरूप छे एवा) गुणोमां अने क्रमभावी विशेषस्वरूप पर्यायोमां रहेली अने उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यमय अस्तित्वथी बनेली छे; माटे वस्तु परिणाम- स्वभाववाळी ज छे.

भावार्थःज्यां ज्यां वस्तु जोवामां आवे छे त्यां त्यां परिणाम जोवामां आवे छे; जेम केगोरस तेना दूध, दहीं, घी, छाश वगेरे परिणाम सहित ज जोवामां आवे छे. ज्यां परिणाम नथी त्यां वस्तु पण नथी; जेम केकाळाश, सुंवाळप वगेरे परिणाम नथी तो गधेडानां शिंगडांरूप वस्तु पण नथी. माटे सिद्ध थयुं के वस्तु परिणाम विना होती ज नथी. जेम वस्तु परिणाम विना होती नथी तेम परिणाम पण वस्तु विना होता नथी; कारण के वस्तुरूप आश्रय विना परिणाम कोना आधारे रहे? गोरसरूप आश्रय विना दूध, दहीं वगेरे परिणाम कोना आधारे थाय?

१. जो वस्तुने परिणाम विनानी मानवामां आवे तो गोरस वगेरे वस्तुओना दूध, दहीं आदि परिणामो प्रत्यक्ष देखाय छे तेनी साथे विरोध आवे.

२. काळनी अपेक्षाए टकवुं तेने अर्थात् काळ -अपेक्षित प्रवाहने ऊंचाई अथवा ऊर्ध्वता कहेवामां आवे छे. ऊर्ध्वतासामान्य अर्थात् अनादि -अनंत ऊंचो (काळ -अपेक्षित) प्रवाहसामान्य ते द्रव्य.

१६प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-