Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 11.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञानतत्त्व-प्रज्ञापन
१७

अथ चारित्रपरिणामसंपर्कसम्भववतोः शुद्धशुभपरिणामयोरुपादानहानाय फल- मालोचयति धम्मेण परिणदप्पा अप्पा जदि सुद्धसंपओगजुदो पावदि णिव्वाणसुहं सुहोवजुत्तो य सग्गसुहं ।।११।।

धर्मेण परिणतात्मा आत्मा यदि शुद्धसंप्रयोगयुतः
प्राप्नोति निर्वाणसुखं शुभोपयुक्तो वा स्वर्गसुखम् ।।११।।

शुद्धशुभोपयोगपरिणामयोः संक्षेपेण फलं दर्शयति ---धम्मेण परिणदप्पा अप्पा धर्म्मेण परिणतात्मा परिणतस्वरूपः सन्नयमात्मा जदि सुद्धसंपओगजुदो यदि चेच्छुद्धोपयोगाभिधानशुद्धसंप्रयोग- परिणामयुतः परिणतो भवति पावदि णिव्वाणसुहं तदा निर्वाणसुखं प्राप्नोति सुहोवजुत्तो व सग्गसुहं शुभोपयोगयुतः परिणतः सन् स्वर्गसुखं प्राप्नोति इतो विस्तरम् ---इह धर्मशब्देनाहिंसालक्षणः सागारानगाररूपस्तथोत्तमक्षमादिलक्षणो रत्नत्रयात्मको वा, तथा मोहक्षोभरहित आत्मपरिणामः शुद्ध- वस्तुस्वभावश्चेति गृह्यते स एव धर्मः पर्यायान्तरेण चारित्रं भण्यते ‘चारित्तं खलु धम्मो’ इति वचनात् तच्च चारित्रमपहृतसंयमोपेक्षासंयमभेदेन सरागवीतरागभेदेन वा शुभोपयोगशुद्धोपयोगभेदेन

वळी वस्तु तो द्रव्य -गुण -पर्यायमय छे. त्यां त्रैकालिक ऊर्ध्व प्रवाहसामान्य ते द्रव्य छे, साथे साथे रहेनारा भेदो ते गुणो छे अने क्रमे क्रमे थता भेदो ते पर्यायो छे. आवां द्रव्य, गुण ने पर्यायनी एकता विनानी कोई वस्तु होती नथी. बीजी रीते कहीए तो, वस्तु उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यमय छे अर्थात् ते ऊपजे छे, विणसे छे अने टके छे. आम ते द्रव्य- गुण -पर्यायमय अने उत्पाद -व्यय -ध्रौव्यमय होवाथी, तेमां क्रिया (परिणमन) थया ज करे छे. माटे परिणाम वस्तुनो स्वभाव ज छे. १०.

हवे जेमने चारित्रपरिणाम साथे संपर्क (संबंध) छे एवा जे शुद्ध अने शुभ (बे प्रकारना) परिणामो तेमना ग्रहण तथा त्याग माटे (शुद्ध परिणामने ग्रहवा अने शुभ परिणामने छोडवा माटे) तेमनुं फळ विचारे छेः

जो धर्मपरिणतस्वरूप जीव शुद्धोपयोगी होय तो
ते पामतो निर्वाणसुख, ने स्वर्गसुख शुभयुक्त जो. ११.

अन्वयार्थः[धर्मेण परिणतात्मा] धर्मे परिणमेला स्वरूपवाळो [आत्मा] आत्मा [यदि] जो [शुद्धसंप्रयोगयुतः] शुद्ध उपयोगमां जोडायेलो होय तो [निर्वाणसुखं] मोक्षना सुखने [प्राप्नोति] पामे छे [शुभोपयुक्तः वा] अने जो शुभ उपयोगवाळो होय तो [स्वर्गसुखं] स्वर्गना सुखने (बंधने) पामे छे. प्र. ३