Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 241.

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अथास्य सिद्धागमज्ञानतत्त्वार्थश्रद्धानसंयतत्वयौगपद्यात्मज्ञानयौगपद्यसंयतस्य कीदृग्लक्षण- मित्यनुशास्ति समसत्तुबंधुवग्गो समसुहदुक्खो पसंसणिंदसमो समलोट्ठुकं चणो पुण जीविदमरणे समो समणो ।।२४१।।

समशत्रुबन्धुवर्गः समसुखदुःखः प्रशंसानिन्दासमः
समलोष्टकाञ्चनः पुनर्जीवितमरणे समः श्रमणः ।।२४१।।

संयमः सम्यग्दर्शनज्ञानपुरःसरं चारित्रं, चारित्रं धर्मः, धर्मः साम्यं, साम्यं मोहक्षोभ- विहीनः आत्मपरिणामः ततः संयतस्य साम्यं लक्षणम् तत्र शत्रुबन्धुवर्गयोः सुखदुःखयोः प्रशंसानिन्दयोः लोष्टकाञ्चनयोर्जीवितमरणयोश्च समम् अयं मम परोऽयं स्वः, अयमाह्लादोऽयं परितापः, इदं ममोत्कर्षणमिदमपकर्षणमयं ममाकिञ्चित्कर इदमुपकारकमिदं ममात्मधारणमय- क्वापि क्वापि यथासंभवमितिशब्दस्यार्थो ज्ञातव्यःस श्रमणः संयतस्तपोधनो भवति यः किंविशिष्टः शत्रुबन्धुसुखदुःखनिन्दाप्रशंसालोष्टकाञ्चनजीवितमरणेषु समः समचित्तः इति ततः एतदायातिशत्रु- बन्धुसुखदुःखनिन्दाप्रशंसालोष्टकाञ्चनजीवितमरणसमताभावनापरिणतनिजशुद्धात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धान-

हवे आगमज्ञान-तत्त्वार्थश्रद्धान-संयतत्वना युगपदपणानुं अने आत्मज्ञाननुं युगपद- पणुं जेने सिद्ध थयुं छे एवा आ संयतनुं कयुं लक्षण छे ते उपदेशे छेः

निंदा -प्रशंसा, दुःख -सुख, अरि -बंधुमां ज्यां साम्य छे,
वळी लोष्ट -कनके, जीवित -मरणे साम्य छे, ते श्रमण छे. २४१.

अन्वयार्थः[समशत्रुबन्धुवर्गः] शत्रु अने बंधुवर्ग जेने समान छे, [समसुखदुःखः] सुख अने दुःख जेने समान छे, [प्रशंसानिन्दासमः] प्रशंसा अने निंदा प्रत्ये जेने समता छे, [समलोष्टकाञ्चनः] लोष्ट (माटीनुं ढेफुं) अने कांचन जेने समान छे [पुनः] तेम ज [जीवितमरणे समः] जीवित अने मरण प्रत्ये जेने समता छे, [श्रमणः] ते श्रमण छे.

टीकाःसंयम सम्यग्दर्शनज्ञानपूर्वक चारित्र छे; चारित्र धर्म छे; धर्म साम्य छे; साम्य मोहक्षोभरहित आत्मपरिणाम छे. तेथी संयतनुं, साम्य लक्षण छे.

त्यां, (१) शत्रु -बन्धुवर्गमां, (२) सुख -दुःखमां, (३) प्रशंसा -निंदामां, (४) लोष्ट- कांचनमां अने (५) जीवित -मरणमां एकीसाथे, (१) ‘आ मारो पर (दुश्मन) छे, आ स्व (स्वजन) छे’, (२) ‘आ आह्लाद छे, आ परिताप छे’, (३) ‘आ मारुं उत्कर्षण (कीर्ति) छे, आ अपकर्षण (अपकीर्ति) छे’, (४) ‘आ मने अकिंचित्कर छे, आ उपकारक

४४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-