Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 242.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
चरणानुयोगसूचक चूलिका
४४९

मत्यन्तविनाश इति मोहाभावात् सर्वत्राप्यनुदितरागद्वेषद्वैतस्य, सततमपि विशुद्धदृशिज्ञप्ति- स्वभावमात्मानमनुभवतः, शत्रुबन्धुसुखदुःखप्रशंसानिन्दालोष्टकाञ्चनजीवितमरणानि निर्विशेषमेव ज्ञेयत्वेनाक्रम्य ज्ञानात्मन्यात्मन्यचलितवृत्तेर्यत्किल सर्वतः साम्यं तत्सिद्धागमज्ञानतत्त्वार्थश्रद्धान- संयतत्वयौगपद्यात्मज्ञानयौगपद्यस्य संयतस्य लक्षणमालक्षणीयम् ।।२४१।।

अथेदमेव सिद्धागमज्ञानतत्त्वार्थश्रद्धानसंयतत्वयौगपद्यात्मज्ञानयौगपद्यसंयतत्वमैकाग्र्य- लक्षणश्रामण्यापरनाम मोक्षमार्गत्वेन समर्थयति दंसणणाणचरित्तेसु तीसु जुगवं समुट्ठिदो जो दु एयग्गगदो त्ति मदो सामण्णं तस्स पडिपुण्णं ।।२४२।।

दर्शनज्ञानचरित्रेषु त्रिषु युगपत्समुत्थितो यस्तु
ऐकाग्र्यगत इति मतः श्रामण्यं तस्य परिपूर्णम् ।।२४२।।

ज्ञानानुष्ठानरूपनिर्विकल्पसमाधिसमुत्पन्ननिर्विकारपरमाह्लादैकलक्षणसुखामृतपरिणतिस्वरूपं यत्परमसाम्यं तदेव परमागमज्ञानतत्त्वार्थश्रद्धानसंयतत्वानां यौगपद्येन तथा निर्विकल्पात्मज्ञानेन च परिणततपोधनस्य लक्षणं ज्ञातव्यमिति ।।२४१।। अथ यदेव संयततपोधनस्य साम्यलक्षणं भणितं तदेव श्रामण्यापरनामा (


उपयोगी) छे’, (५) ‘आ मारुं टकवुं छे, आ अत्यंत विनाश छे’ एम मोहना अभावने लीधे सर्वत्र रागद्वेषनुं द्वैत जेने प्रगट थतुं नथी, सतत विशुद्धदर्शनज्ञानस्वभावी आत्माने जे अनुभवे छे, (ए रीते) शत्रु -बंधु, सुख -दुःख, प्रशंसा -निंदा, लोष्ट -कांचन अने जीवित- मरणने निर्विशेषपणे ज (तफावत विना ज) ज्ञेयपणे जाणीने ज्ञानात्मक आत्मामां जेनी परिणति अचलित थई छे, ते पुरुषने जे खरेखर सर्वतः साम्य छे ते (साम्य) संयतनुं लक्षण जाणवुंके जे संयतने आगमज्ञान-तत्त्वार्थश्रद्धान-संयतत्वना युगपदपणानुं अने आत्मज्ञाननुं युगपदपणुं सिद्ध थयुं छे. २४१.

हवे एम समर्थन करे छे के आगमज्ञान-तत्त्वार्थश्रद्धान-संयतत्वना युगपदपणानी साथे आत्मज्ञानना युगपदपणानी सिद्धिरूप जे आ संयतपणुं ते ज मोक्षमार्ग छे, के जेनुं बीजुं नाम एकाग्रतालक्षणवाळुं श्रामण्य छेः

द्रग, ज्ञान ने चारित्र त्रणमां युगपदे आरूढ जे,
तेने कह्यो ऐकाग्रयगत; श्रामण्य त्यां परिपूर्ण छे. २४२.

अन्वयार्थः[यः तु] जे [दर्शनज्ञानचरित्रेषु] दर्शन, ज्ञान अने चारित्र[त्रिषु] त्रणमां [युगपद्] युगपद् [समुत्थितः] आरूढ छे, ते [ऐकाग्र्यतः] एकाग्रताने पामेलो छे [इति] एम [मतः] (शास्त्रमां) कह्युं छे. [तस्य] तेने [श्रामण्यं] श्रामण्य [परिपूर्णम्] परिपूर्ण छे.

प्र. ५७