Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 255.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
चरणानुयोगसूचक चूलिका
४६७
अथ शुभोपयोगस्य कारणवैपरीत्यात् फलवैपरीत्यं साधयति
रागो पसत्थभूदो वत्थुविसेसेण फलदि विवरीदं
णाणाभूमिगदाणिह बीजाणिव सस्सकालम्हि ।।२५५।।
रागः प्रशस्तभूतो वस्तुविशेषेण फलति विपरीतम्
नानाभूमिगतानीह बीजानीव सस्यकाले ।।२५५।।

यथैकेषामपि बीजानां भूमिवैपरीत्यान्निष्पत्तिवैपरीत्यं, तथैकस्यापि प्रशस्तरागलक्षणस्य शुभोपयोगस्य पात्रवैपरीत्यात्फलवैपरीत्यं, कारणविशेषात्कार्यविशेषस्यावश्यंभावित्वात् ।२५५। गतम् इत ऊर्ध्वं गाथाषटकपर्यन्तं पात्रापात्रपरीक्षामुख्यत्वेन व्याख्यानं करोति अथ शुभोपयोगस्य पात्रभूतवस्तुविशेषात्फलविशेषं दर्शयतिफलदि फलति, फलं ददाति स कः रागो रागः कथंभूतः पसत्थभूदो प्रशस्तभूतो दानपूजादिरूपः किं फलति विवरीदं विपरीतमन्यादृशं भिन्न- भिन्नफलम् केन करणभूतेन वत्थुविसेसेण जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदभिन्नपात्रभूतवस्तुविशेषेण अत्रार्थे


ज आश्रय छे. परंतु चारित्र -अपेक्षाए श्रमणने मुनियोग्य शुद्धात्मपरिणति मुख्य होवाथी शुभोपयोग गौण छे अने सम्यग्द्रष्टि गृहस्थने मुनियोग्य शुद्धात्मपरिणतिने नहि पहोंचातुं होवाथी अशुभवंचनार्थे शुभोपयोग मुख्य छे. सम्यग्द्रष्टि गृहस्थने अशुभथी (विशेष अशुद्ध परिणतिथी) छूटवा माटे वर्ततो जे आ शुभोपयोगनो पुरुषार्थ ते पण शुद्धिनो ज मंद पुरुषार्थ छे, कारण के शुद्धात्मद्रव्यना मंद आलंबनथी अशुभ परिणति पलटाईने शुभ परिणति थाय छे अने शुद्धात्मद्रव्यना उग्र आलंबनथी शुभ परिणति पण पलटाईने शुद्ध परिणति थाय छे. २५४.

हवे शुभोपयोगने कारणनी विपरीतताथी फळनी विपरीतता होय छे एम सिद्ध करे छेः

फळ होय छे विपरीत वस्तुविशेषथी शुभ रागने,
निष्पत्ति विपरीत होय भूमिविशेषथी ज्यम बीजने. २५५.

अन्वयार्थः[इह नानाभूमिगतानि बीजानि इव] जेम आ जगतमां अनेक प्रकारनी भूमिमां पडेलां बीज [सस्यकाले] धान्यकाळे विपरीतपणे फळे छे, तेम [प्रशस्तभूतः रागः] प्रशस्त राग [वस्तुविशेषेण] वस्तुभेदथी (पात्रना भेदथी) [विपरीतं फलति] विपरीतपणे फळे छे.

टीकाःजेम बीज तेनां ते ज होवा छतां पण भूमिनी विपरीतताथी निष्पत्तिनी विपरीतता होय छे (अर्थात् सारी भूमिमां धान्य सारुं पाके छे अने खराब भूमिमां धान्य खराब थई जाय छे अथवा पाकतुं ज नथी), तेम प्रशस्तरागस्वरूप शुभोपयोग तेनो ते ज होवा छतां पण पात्रनी विपरीतताथी फळनी विपरीतता होय छे केम के कारणना भेदथी कार्यनो भेद अवश्यंभावी (अनिवार्य) छे. २५५.