Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Parishisht 47 Nayo dvara atmadravyanu kathan.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
पि२शिष्ट
४९३

ननु कोऽयमात्मा कथं चावाप्यत इति चेत्, अभिहितमेतत् पुनरप्यभिधीयते आत्मा हि तावच्चैतन्यसामान्यव्याप्तानन्तधर्माधिष्ठात्रेकं द्रव्यमनन्तधर्मव्यापकानन्तनयव्याप्येकश्रुत- ज्ञानलक्षणप्रमाणपूर्वकस्वानुभवप्रमीयमाणत्वात् तत्तु द्रव्यनयेन पटमात्रवच्चिन्मात्रम् १ पर्यायनयेन तन्तुमात्रवद्दर्शनज्ञानादिमात्रम् २ अस्तित्वनयेनायोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्ति- संहितावस्थलक्ष्योन्मुखविशिखवत् स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैरस्तित्ववत् नास्तित्वनयेनानयोमया- गुणकार्मुकान्तरालवर्त्यसंहितावस्थालक्ष्योन्मुखप्राक्त नविशिखवत् परद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्नास्ति-

अत्राह शिष्यःपरमात्मद्रव्यं यद्यपि पूर्वं बहुधा व्याख्यातम्, तथापि संक्षेपेण पुनरपि कथ्यतामिति भगवानाहकेवलज्ञानाद्यनन्तगुणानामाधारभूतं यत्तदात्मद्रव्यं भण्यते तस्य च नयैः

[हवे टीकाकार श्री अमृतचंद्राचार्यदेव वडे परिशिष्टरूपे थोडुं कहेवामां आवे छेः]

‘आ आत्मा कोण छे (केवो छे) अने कई रीते प्राप्त कराय छे’ एवो प्रश्न करवामां आवे तो तेनो उत्तर (पूर्वे) कहेवाई गयो छे अने (अहीं) फरीने पण कहेवामां आवे छेः

प्रथम तो, आत्मा खरेखर चैतन्यसामान्य वडे व्याप्त अनंत धर्मोनुं अधिष्ठाता (स्वामी) एक द्रव्य छे, कारण के अनंत धर्मोमां व्यापनारा जे अनंत नयो तेमां व्यापनारुं जे एक श्रुतज्ञानस्वरूप प्रमाण ते प्रमाणपूर्वक स्वानुभव वडे (ते आत्मद्रव्य) प्रमेय थाय छे (जणाय) छे.

ते आत्मद्रव्य द्रव्यनये, पटमात्रनी माफक, चिन्मात्र छे (अर्थात् आत्मा द्रव्यनये चैतन्यमात्र छे, जेम वस्त्र वस्त्रमात्र छे तेम). १.

आत्मद्रव्य पर्यायनये, तंतुमात्रनी माफक, दर्शनज्ञानादिमात्र छे (अर्थात् आत्मा पर्यायनये दर्शनज्ञानचारित्रादिमात्र छे, जेम वस्त्र तंतुमात्र छे तेम). २.

आत्मद्रव्य अस्तित्वनये स्वद्रव्य -क्षेत्र -काळ -भावथी अस्तित्ववाळुं छे;लोहमय, दोरी ने कामठाना अंतराळमां रहेला, संधायेली अवस्थामां रहेला अने लक्ष्योन्मुख तीरनी माफक. (जेम कोई तीर स्वद्रव्यथी लोहमय छे, स्वक्षेत्रथी दोरी ने कामठाना वचगाळामां रहेलुं छे, स्वकाळथी संधान -दशामां छे अर्थात् धनुष्य पर चडावीने खेंचायेली स्थितिमां छे अने स्वभावथी लक्ष्योन्मुख छे अर्थात् निशाननी सन्मुख छे, तेम आत्मा अस्तित्वनये स्वचतुष्टयथी अस्तित्ववाळो छे.) ३.

आत्मद्रव्य नास्तित्वनये परद्रव्य -क्षेत्र -काळ -भावथी नास्तित्ववाळुं छे;अलोहमय, दोरी ने कामठाना अंतराळमां नहि रहेला, संधायेली अवस्थामां नहि रहेला अने अलक्ष्योन्मुख एवा पहेलांना तीरनी माफक. (जेम पहेलांनुं तीर अन्य तीरना द्रव्यनी अपेक्षाथी अलोहमय छे, अन्य तीरना क्षेत्रनी अपेक्षाथी दोरी ने कामठाना वचगाळामां नहि रहेलुं छे, अन्य तीरना काळनी अपेक्षाथी संधायेली स्थितिमां नहि रहेलुं छे अने