Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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त्ववत् अस्तित्वनास्तित्वनयेनायोमयानयोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्त्यगुणकार्मुकान्तराल- वर्तिसंहितावस्थासंहितावस्थलक्ष्योन्मुखालक्ष्योन्मुखप्राक्तनविशिखवत् क्रमतः स्वपरद्रव्यक्षेत्र- कालभावैरस्तित्वनास्तित्ववत् अवक्तव्यनयेनायोमयानयोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्त्यगुण- कार्मुकान्तरालवर्तिसंहितावस्थासंहितावस्थलक्ष्योन्मुखालक्ष्योन्मुखप्राक्त नविशिखवत् युगपत्स्वपर- द्रव्यक्षेत्रकालभावैरवक्त व्यम् ६ अस्तित्वावक्तव्यनयेनायोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्तिसंहितावस्थ- लक्ष्योन्मुखायोमयानयोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्त्यगुणकार्मुकान्तरालवर्तिसंहितावस्थासंहिता- प्रमाणेन च परीक्षा क्रियते तद्यथाएतावत् शुद्धनिश्चयनयेन निरुपाधिस्फ टिकवत्समस्तरागादि- विकल्पोपाधिरहितम् तदेवाशुद्धनिश्चयनयेन सोपाधिस्फ टिकवत्समस्तरागादिविकल्पोपाधिसहितम् शुद्धसद्भूतव्यवहारनयेन शुद्धस्पर्शरसगंंंंंधवर्णानामाधारभूतपुद्गद्गद्गद्गद्गलपरमाणुवत्केवलज्ञानादिशुद्धगुणानामाधार-


अन्य तीरना भावनी अपेक्षाथी अलक्ष्योन्मुख छे, तेम आत्मा नास्तित्वनये परचतुष्टयथी नास्तित्ववाळो छे.) ४.

आत्मद्रव्य अस्तित्वनास्तित्वनये क्रमशः स्वपरद्रव्य -क्षेत्र -काळ -भावथी अस्तित्व- नास्तित्ववाळुं छे;लोहमय तेम ज अलोहमय, दोरी ने कामठाना अंतराळमां रहेला तेम ज दोरी ने कामठाना अंतराळमां नहि रहेला, संधायेली अवस्थामां रहेला तेम ज संधायेली अवस्थामां नहि रहेला अने लक्ष्योन्मुख तेम ज अलक्ष्योन्मुख एवा पहेलांना तीरनी माफक. (जेम पहेलांनुं तीर क्रमशः स्वचतुष्टयनी अने परचतुष्टयनी अपेक्षाथी लोहमयादि अने अलोहमयादि छे, तेम आत्मा अस्तित्वनास्तित्वनये क्रमशः स्वचतुष्टयनी अने परचतुष्टयनी अपेक्षाथी अस्तित्ववाळो अने नास्तित्ववाळो छे.) ५.

आत्मद्रव्य अवक्तव्यनये युगपद् स्वपरद्रव्य -क्षेत्र -काळ -भावथी अवक्तव्य छे; लोहमय तेम ज अलोहमय, दोरी ने कामठाना अंतराळमां रहेला तेम ज दोरी ने कामठाना अंतराळमां नहि रहेला, संधायेली अवस्थामां रहेला तेम ज संधायेली अवस्थामां नहि रहेला अने लक्ष्योन्मुख तेम ज अलक्ष्योन्मुख एवा पहेलांना तीरनी माफक. (जेम पहेलांनुं तीर युगपद् स्वचतुष्टयनी अने परचतुष्टयनी अपेक्षाथी युगपद् लोहमयादि अने अलोहमयादि होवाथी अवक्तव्य छे, तेम आत्मा अवक्तव्यनये युगपद् स्वचतुष्टयनी अने परचतुष्टयनी अपेक्षाथी अवक्तव्य छे.) ६.

आत्मद्रव्य अस्तित्व -अवक्तव्यनये स्वद्रव्य -क्षेत्र -काळ -भावथी तथा युगपद् स्वपरद्रव्य -क्षेत्र -काळ -भावथी अस्तित्ववाळुं -अवक्तव्य छे;(स्वचतुष्टयथी) लोहमय, दोरी ने कामठाना अंतराळमां रहेला, संधायेली अवस्थामां रहेला अने लक्ष्योन्मुख एवा तथा (युगपद् स्वपरचतुष्टयथी) लोहमय तेम ज अलोहमय, दोरी ने कामठाना अंतराळमां रहेला तेमज दोरीने कामठाना अंतराळमां नहि रहेला, संधायेली अवस्थामां रहेला तेम ज संधायेली अवस्थामां नहि रहेला अने लक्ष्योन्मुख तेम ज अलक्ष्योन्मुख एवा पहेलांना

४९४प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-