Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४९८प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
नियत्यनियमितौष्ण्यपानीयवदनियतस्वभावभासि २७ स्वभावनयेनानिशिततीक्ष्णकण्टक-
वत्संस्कारानर्थक्यकारि २८ अस्वभावनयेनायस्कारनिशिततीक्ष्णविशिखवत्संस्कारसार्थक्य-
कारि २९ कालनयेन निदाघदिवसानुसारिपच्यमानसहकारफलवत्समयायत्तसिद्धिः ३०
अकालनयेन कृत्रिमोष्मपाच्यमानसहकारफलवत्समयानायत्तसिद्धिः ३१ पुरुषकारनयेन
पुरुषकारोपलब्धमधुकुक्कुटीकपुरुषकारवादिवद्यत्नसाध्यसिद्धिः ३२ दैवनयेन पुरुषकार-
निर्विकल्पसमाधिप्रस्तावे निर्विकारस्वसंवेदनज्ञानेनापि जानातीति ।। पुनरप्याह शिष्यःज्ञातमेवात्म-
द्रव्यं हे भगवन्निदानीं तस्य प्रा प्त्युपायः कथ्यताम् भगवानाहसकलविमलकेवलज्ञान-
अग्निने उष्णतानो नियम होवाथी अग्नि नियतस्वभाववाळो भासे छे तेम.] २६.

आत्मद्रव्य अनियतिनये अनियत स्वभावे भासे छे, जेने उष्णता नियतिथी (नियम वडे) नियमित नथी एवा पाणीनी माफक. [आत्मा अनियतिनये अनियत- स्वभाववाळो भासे छे, जेम पाणीने (अग्निना निमित्ते थती) उष्णता अनियत होवाथी पाणी अनियतस्वभाववाळुं भासे छे तेम.] २७.

आत्मद्रव्य स्वभावनये संस्कारने निरर्थक करनारुं छे (अर्थात् आत्माने स्वभावनये संस्कार निरुपयोगी छे), जेने कोईथी अणी काढवामां आवती नथी (पण जे स्वभावथी ज अणीवाळो होय छे) एवा तीक्ष्ण कांटानी माफक. २८.

आत्मद्रव्य अस्वभावनये संस्कारने सार्थक करनारुं छे (अर्थात् आत्माने अस्वभावनये संस्कार उपयोगी छे), जेने (स्वभावथी अणी होती नथी पण संस्कार करीने) लुहार वडे अणी काढवामां आवी होय छे एवा तीक्ष्ण तीरनी माफक. २९.

आत्मद्रव्य काळनये जेनी सिद्धि समय पर आधार राखे छे एवुं छे, उनाळाना दिवस अनुसार पाकता आम्रफळनी माफक. [काळनये आत्मद्रव्यनी सिद्धि समय पर आधार राखे छे, उनाळाना दिवस अनुसार पाकती केरीनी माफक.] ३०.

आत्मद्रव्य अकाळनये जेनी सिद्धि समय पर आधार राखती नथी एवुं छे, कृत्रिम गरमीथी पकववामां आवता आम्रफळनी माफक. ३१.

आत्मद्रव्य पुरुषकारनये जेनी सिद्धि यत्नसाध्य छे एवुं छे, जेने पुरुषकारथी *लींबुनुं झाड प्राप्त थाय छे (ऊगे छे) एवा पुरुषकारवादीनी माफक. [पुरुषार्थनये आत्मानी सिद्धि प्रयत्नथी थाय छे, जेम कोई पुरुषार्थवादी मनुष्यने पुरुषार्थथी लींबुनुं झाड प्राप्त थाय छे तेम.] ३२.

आत्मद्रव्य दैवनये जेनी सिद्धि अयत्नसाध्य छे (यत्न विना थाय छे) एवुं छे, पुरुषकारवादीए दीधेला *लींबुना झाडनी अंदरथी जेने (यत्न विना, दैवथी) माणेक *अहीं ‘मधुकुक्कुटी’नो अर्थ ‘लींबुनुं झाड’ कर्यो छे. श्री पांडे हेमराजजीए हिंदी प्रवचनसारमां

तेनो अर्थ ‘मधुछत्ता (अर्थात् मधपूडो)’ कर्यो छे.