Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 27.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञानतत्त्व-प्रज्ञापन
४५
अथात्मज्ञानयोरेकत्वान्यत्वं चिन्तयति

णाणं अप्प त्ति मदं वट्टदि णाणं विणा ण अप्पाणं

तम्हा णाणं अप्पा अप्पा णाणं व अण्णं वा ।।२७।।
ज्ञानमात्मेति मतं वर्तते ज्ञानं विना नात्मानम्
तस्मात् ज्ञानमात्मा आत्मा ज्ञानं वा अन्यद्वा ।।२७।।

अर्थाकारा अप्यर्था भण्यन्ते ते च ज्ञाने तिष्ठन्तीत्युच्यमाने दोषो नास्तीत्यभिप्रायः ।।२६।। अथ ज्ञानमात्मा भवति, आत्मा तु ज्ञानं सुखादिकं वा भवतीति प्रतिपादयतिणाणं अप्प त्ति मदं ज्ञानमात्मा भवतीति मतं सम्मतम् कस्मात् वट्टदि णाणं विणा ण अप्पाणं ज्ञानं कर्तृ विनात्मानं जीवमन्यत्र

नैमित्तिकभूत ज्ञेयाकारोने आत्मस्थ (आत्मामां रहेला) देखीने ‘सर्व पदार्थो आत्मगत

(-आत्मामां) छे’ एम उपचार करवामां आवे छे; परंतु परमार्थे तेमनुं एक- बीजामां गमन नथी, कारण के सर्व द्रव्यो स्वरूपनिष्ठ (पोतपोताना स्वरूपमां निश्चळ रहेलां) छे.

आ क्रम ज्ञानमां पण नक्की करवो. (आत्मा अने ज्ञेयो विषे निश्चय -व्यवहारथी कह्युं तेम ज्ञान अने ज्ञेयो विषे पण समजवुं.) २६.

हवे आत्मा अने ज्ञाननुं एकत्व -अन्यत्व विचारे छेः

छे ज्ञान आत्मा जिनमते; आत्मा विना नहि ज्ञान छे,
ते कारणे छे ज्ञान जीव, जीव ज्ञान छे वा अन्य छे. २७.

अन्वयार्थः[ज्ञानं आत्मा] ज्ञान आत्मा छे [इति मतं] एम जिनदेवनो मत छे. [आत्मानं विना] आत्मा विना (बीजा कोई द्रव्यमां) [ज्ञानं न वर्तते] ज्ञान होतुं नथी [तस्मात्] तेथी [ज्ञानं आत्मा] ज्ञान आत्मा छे; [आत्मा] अने आत्मा तो [ज्ञानं वा] (ज्ञानगुण द्वारा) ज्ञान छे [अन्यत् वा] अथवा (सुखादि अन्य गुण द्वारा) अन्य छे.

१. नैमित्तिकभूत ज्ञेयाकारो = ज्ञानमां थता (ज्ञाननी अवस्थारूप) ज्ञेयाकारो. (आ ज्ञेयाकारोने ज्ञानाकारो पण कहेवामां आवे छे, कारण के ज्ञान आ ज्ञेयाकाररूपे परिणमे छे. आ ज्ञेयाकारो नैमित्तिक
छे अने पर पदार्थोनां द्रव्य -गुण -पर्यायो तेमनां निमित्त छे. आ ज्ञेयाकारोने आत्मामां देखीने ‘समस्त
पर पदार्थो आत्मामां छे’ एम उपचार करवामां आवे छे. आ वात ३१मी गाथानी टीकामां
दर्पणना द्रष्टांतथी समजावशे.)